Friday 9 October 2015

इस्लामिक जिहाद ?





जिहाद इस्लाम का केन्द्र बिन्दु है। जिहाद के बिना इस्लाम का कोई अस्तित्व नहीं है या यह कहना/ज्यादा उचित है कि जिहाद ही इस्लाम है और इस्लाम ही जिहाद है। जिहाद से विश्व भर के गैर-मुसलमान सबसे अधिक प्रभावित हैं। इसलिए गैर-मुसलमानों के सन्दर्भ में जिहाद के सही स्वरूप को समझना बहुत आवश्यक है। 

कुरान में जिहाद:-


जिहाद शब्द की उत्पत्ति-‘
जिहाद’ शब्द अरबी भाषा के ‘जुहद’ शब्द से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘कोशिश करना’। मगर इस्लाम के धार्मिक अर्थों में जो शब्द प्रयोग होता है वह है-‘जिहाद फीसबी लिल्लाह’ यानी ‘अल्लाह के लिए’ या ‘अल्लाह के मार्ग में जिहाद करना’। (जिहाद फिक्जेशन, पृ. ११)। जिहाद का कोई पर्यायवाची या समानार्थक शब्द नहीं है। इसलिए इसका शाब्दिक अर्थ नहीं किया जा सकता है बल्कि इसकी व्याखया ही की जा सकती है।

जिहाद का अर्थ-
इस्लाम के समर्थक बार-बार यही तर्क देते हैं कि जिहाद का अर्थ तो ‘कोशिश’ या ‘प्रयास करना’ है। जबकि साउदी अरेबिया की हज्ज मिनिस्ट्री से हिजरी १४१३ में प्रमाणित कुरान के अंग्रेजी भाष्य में ‘अल्लाह के मार्ग में जिहाद’ की ८३ आयतों में ‘स्ट्राइब’ का शाब्दिक अर्थ ‘युद्ध करना’ या ‘कत्ल करना’ किया गया है।

पांच आयतों (२ः१९१;३ः१५६;३ः१५७; ३ः१९५) और १९ः५ क्रमशः पृष्ठ संखया ८०, १८८, १८९, २०२ और ४९५-४९७) में तो स्ट्राइव शब्द का अर्थ फाइट (युद्ध करना) और स्ले (कत्ल करना) दोनों अर्थ एक ही आयत में साथ-साथ किए गए हैं। इतना ही नहीं, कुरान में मुसलमानों को गैर-मुसलमानों से अल्लाह के मार्ग में युद्ध करने के लिए अनेकों आदेश दिए गए हैं-(सभी आयतों का प्रमाणिक हिन्दी अनुवाद’कुरान मजीद’ से लिया गया है जिसमें अरबी कुरान के साथ मारमाड्‌यूक पिक्थल का अंग्रेजी और मुहम्मद फ़ारुख खाँ का हिन्दी अनुवाद साथ-साथ दिया गया है।

जिहाद का अर्थ नीचे लिखी आयतों में सुस्पष्ट है :
(i) सबसे पहले अल्लाह ने मानव समाज को दो गुओं में बांटा(कुरान, ५८ः१९-२२)। जो अल्लाह और मुहम्मद पर ईमान लाते हैं वे अल्लाह की पार्टी वाले (मोमिन)हैं और जो ऐसा नहीं करते, वे शैतान की पार्टी वाले काफ़िर हैं, और मोमिनों का कर्त्तव्य है कि वे कफ़िरों के देश (दारूल हरब) को जिहाद द्वारा दारुल इस्लाम बनायें। साथ अल्लाह ने कहा ”निस्ंसदेह काफ़िर तुम्हारे(ईमानवालों के) खुले दुश्मन हैं” (४ः१०१, पृ. २३९)।

(ii) ”तुम पर (गैर-मुसलमानों से) युद्ध फर्ज़ किया गया है और वह तुम्हें अप्रिय है औरहो सकता है एक चीज़ तुम्हें बुरी लगे और वह तुम्हारे लिए अच्छी हो, और हो सकता है कि एक चीज़ तुम्हें प्रिय हो ओर वह तुम्हारे लिए बुरी हो। अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।” (२ : २१६, पृ. १६२)

(iii) ”हे नबी ! ‘काफ़िरों’ और ‘मुनाफ़िकों’ से जिहाद करो और उनके साथ सखती से पेश आओ। उनका ठिकाना ‘जहन्नम’ है ओर वह क्या ही बुरा ठिकाना है” (९ः७३, पृ. ३८०)

(iv) ”किताब वाले’ (ईसाई, यहूदी आदि) जो न अल्लाह पर ‘ईमान’ लाते हैं और न ‘आख़िरत’ पर और न उसे ‘हराम’ करते हैं जिसे अल्भ्लाह और उसके ‘रसूल’ ने ‘हराम’ ठहराया है और वे न सच्चे ‘दीन’ को अपना ‘दीन’ बनाते हैं, उनसे लड़ो यहाँ तक कि अप्रतिष्ठित होकर अपने हाथ से ज़िज़िया देने लगें।” (९ः२९, पृत्र ३७२)।

(v) ”फिर हराम महीने बीत जाऐं तो मुश्रिकों (मूर्ति पूजकों) को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़द्यों और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। यदि वे तौबा कर लें और ‘नमाज’ क़ायम करें और ‘जकात’ दें तो उनका मार्ग छोड़ दो।” (९ः५, पृ ३६८)।

(vi) ”निःसन्देह अल्लाह ने ‘ईमान वालों से उनके प्राणों और उनके मालों को इसके बदले में खरीद लिया है कि उनके लिए जन्नत है। वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो वे मारते भी हैं और मारे भी हैं और मारे भी जाते हैं। वह अल्लाह के ज़िम्मे (जन्नत का) एक पक्का वादा है कि ‘तौरात’ और ‘इंजील’ और कुरान में; और अल्लाह से बड़कर अपने वादे को पूरा करने वाला कौन हो सकता है ? ।” (९.१११, पृ. ३८८)।

(vii) ”वही है जिसने अपने ‘रसूल’ को मार्गदर्शन और सच्चे’दीन’ (सत्य धर्म) के साथ भेजा ताकि उसे समस्त ‘दीन’ पर प्रभुत्व प्रदान करें, चाहे मुश्रिकों को यह नापसन्द ही क्यों नह हो।” (९ः३३, पृत्र ३७३)।

(viii) इतना ही नहीं, जिहाद न करने वाले के लिए अल्लाह की धमकी भी है-” यदि तुम (जिहाद के लिए) न निकलोगे तो अल्लाह तुम्हें दुख देने वाली यातनाएँ देगा और तुम्हारे सिवा किसी और गिरोह को लाएगा और तुम अल्लाह का कुछ न बिगाड़ पाओगे।” (९ः३९, पृ. ३७४)।

उपरोक्त आयतों से सुस्पष्ट है कि ”जिहाद ”फी सबी लिललाह”, यानी ”अल्लाह के लिए जिहाद’ का अर्थ है-१) गैर-मुसलमानों से युद्ध करना, उन्हें कत्ल करना और उनके धर्म को नष्ट करके सारी दुनिया में अल्लाह के सच्चे ‘दीन’ (धर्म) इस्लाम को स्थापित करना। (२) इसके लिए अल्लाह ने मुसलमानों की सम्पत्ति सहित उनकी जिन्दगी इस शर्त पर खरीद ली है कि यदि वे मारे गए तो उन्हें ”जन्नत’ दी जाएगी। (३) गैर-मुसलमानों से युद्ध करना तुम्हारा फ़र्ज है चाहे तुम्हें बुरा ही क्यों न लगे।
अतः प्रत्येक मुसलमान का तन मन धन से गैर-मुसलमानों को इस्लाम में धर्मान्तरित करने और उनके देश को इस्लामी राज्य बनाने के लिए युद्ध करना ही ‘जिहाद फी सबी, लिल्लाह’ या ‘अल्लाह के लिए जिहाद’ का असली मतलब है।

इस्लाम में पैगम्बर मुहम्मद का स्थान:-
इस्लाम में पैगम्बर मुहम्मद प्रत्येक मुसलमान के लिए एक आदर्श व्यक्ति है-”निश्चय ही तुम लोगों के लिए रसूल में एक उत्तम आदर्श है।”
(३३ः२१, पृ. ७४८)।
मुहम्मद अल्लाह का सन्देशवाहक या रसूल है। इसलिए उसकी आज्ञा मानना अल्लाह की आज्ञा मानने के समान है और उसकी अवज्ञा करना अल्लाह की अवज्ञा करना है। देखिए प्रमाण:

(i) ”हे ईमान वालो ! अल्लाह का आदेश मानो और रसूल का आदेश मानो।” (४ः५९, पृत्र २३२)।

(ii) ”(हे मुहम्मद) हमने तुम्हें लोगों के लिए ‘रसूल’ बनाकर भेजा है और (इस पर) गवाह की हैसियत से अल्लाह काफ़ी है। जिसने ‘रसूल’ का आदेश माना, वास्तव में उसने अल्लाह का आदेश माना है।” (४ः७९-८०, पृत्र २३५)।

(iii) पैगम्बर मुहम्मद स्वयं कहता है ”जो कोई मेरी आज्ञा पालन करता है वास्तव में वह अललाह की आज्ञा का पालन करता है और जो कोई मेरी अवज्ञा करता है, वास्तव में वह अल्लाह की अवज्ञा करता है।” (बुखारी, खं. ९ : २५१, पृ. १८९; माजाह, खं. ४ः२८५९, पृ. १९१)

अतः इस्लाम में पैगम्बर मुहम्मद का स्थान अल्लाह के बराबर है। मगर अल्लाह निाकार है और मुहम्मद साक्षात लोगों के बीच मौजूद है। इसलिए उसका आदेश अल्लाह के समान अपने आप पालनीय हो जाता है।

हदीसों में जिहाद:-

पैगम्बर मुहम्मद की कथनी, करनी, आचार-विचार, जीवन पद्धति ओर निर्णयों को, जो उसके साथियों ने देखा और सुना, के संग्रहों का नाम हीदस है। पैगम्बर मुहम्मद के कथनों और इन संग्रहों, दोनों के लिए हदीस शब्द का प्रयोग होता है। इस्लाम में, विशेषकर सुन्नी सम्प्रदाय में, इमाम बुखारी, मुस्लिम, माजाह, दाऊद, नासाई, और तिरमिज़ी की इन छः हरीसों को कुरान के समान प्रामाणिक माना जाता है क्योंकि ये पैगम्बर मुहम्मद के वचन हैं और प्रत्येक हीस में जिहाद सम्बन्धी सैकड़ों सन्देश हैं, जैसे :

(i) ”शाब्दिक रूप से जिहाद का अर्थ युद्ध, कठोर तथा श्रमसाध्य प्रयास करना है। इस्लामी परिप्रेक्ष्य में इसका अर्थ मूर्तीपूजकों के खिलाफ इस्लाम के लिए लड़ना है। व्यापक अर्थ में अल्लाह के मार्ग में किए जाने वाले सभी प्रयास जिहाद के अन्तर्गत आते हैं, जिनका उद्‌देश्य मज़हब का विस्तार करना है। यह युद्ध क्षेत्र? में लड़ाई करना, स्कूलों में शिक्षा देना, सार्वजनिक भाषण देना और इस्लाम पर साहित्य सृजन करना हो सकता है।” (दाऊद, खं. २, नोट. १८०९, पृ. ६८४)

(ii) स्वयं पैगम्बर मुहम्मद ने भी यह कहा-”आप लोगों (ईमान लाने वालों) में से जो भी व्यक्ति कुछ भी बुराई देखें तो वह उसे अपने कर्म से दुरुस्त करें ओर यदि वह इसे दूर नहीं कर पाता है तो उसे चाहिए कि वह इसे अपनी वाणी से दूर करें तथा वह ऐसा भी करने में असमर्थ हो तो वह इसे अपने मन से दूर करें और यही जिहाद है।” (मुस्लिम, खं. १ः७९-८०, पृ. ४०)।

(iii) ”मुहम्मद का कथन है कि अल्लाह के नाम पर और अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो। जो इस्लाम में विश्वास न रखते हों उनके विरुद्ध युद्ध करो। पवित्र युद्ध करो।” (मुस्लिम, खं. ३ः४२९३, पृ. ११३७)।
पैगम्बर ने कहा ”शासक चाहे सदाचारी हो या न हो, उसकी आज्ञानुसार जिहाद करना तुम्हारा अनिवाय्र कर्त्तव्य है।”
(दाऊद, खं. २ः२५२७, पृ. ७०३)।

(iv) पैगम्बर मुहम्मद का जिहाद के विषय में गैर-मुसलमानों के विरुद्ध आदेश है-”मुसलमान, गैर-मुसलमानों के सामने तीन शर्तें रखें; पहली-उनको इस्लाम कबूल करने को कहें, यदि वे इसे न मानें तो उनसे इस्लामी राज्य की अधीनता स्वीकारते हुए ज़िजिया टेक्स देने को कहें। यदि वे इन दोनों शर्तों को न माने तो उनसे जिहाद यानी सशस्त्र युऋ करो।” (मुस्लिम खं. ३ः४२४९, पृ. ११३७; माजाह खं. ४ः२८५८, पु. १८९-१९०; दाऊद, खं. २ : २६०६, पृ. ७२२)।


(v) ”जिहाद, अल्लाह के बाद, सबसे उत्तम काम है”। (मुस्लिम, खं. १ः१५२, पृ. ७२२)।

(vi) ”जिहाद, अल्लाह के बाद, सबसे उत्तम काम है”। (मुस्लिम, खं. १ः१५२, पृ. ५९)। इसी प्रकार ”सर्वोत्तम जिहाद वह है जिसमें घोड़ा और सवार दोनों ही घायल हो जायें।” (माजाह, खं. ४ : २७९४, पृ. १५७) तथा ”सर्वोत्तम जिहादी वह है जो अल्लाह के मजहब को बढ़ाने के लिए जिहाद करता है।”
(बुखारी, खं. ४ : ३५५, पृ. २२८)।


कुरान की तरह, हदीसों में भी विजित गैर-मुसलमानों के धन, सम्पत्ति व स्त्रियों पर विजेता मुसलमानों का अधिकार होगा, मारे जाने पर वे शहीद कहलायेंगे तथा उन्हें जन्नत मिलेगा जहाँ वे कम से कम बहत्तर युवा कुंवारी सुन्दरियों (हूरों) का पत्नी रूप में अनन्त काल तक भोग विलास का आनन्द लेते रहेंगे। इसके लिए उन्हें एक सौ पुरुषों के बराबर काम शक्ति दी जाएगी।
(बयात मुफ्ती जुबे, मैडिन्स ऑफ़ पैराडाइज़, अनवर शेख-जिहाद के प्रलोभन)।

हदीसों में न केवल युद्ध करने वालों, बल्कि जिहाद के लिए धन, हथियार, अन्य सामान की सहायता करने वाले, यहाँ तक कि सच्चे मन से जिहाद करने का संकल्प लेने वाले को भी जन्नत का आश्वासन दिया गया है। (मुस्लिम, खं. ३ः४६९५ पृत्र १२७२)। यह दूसरी बात है कि हदीवों के अनुसार शहीदों व जिहादियों को जन्नत क़ियामत (प्रलय) बाद ही मिलेगी (मुस्लिम, खं. ४ः६८५८, पृत्र १७९५; मिश्कत, खं. ४ः२३, पृत्र १६७) (पालीवाल, जिहादियों को जन्नत कियामत बाद)।

यहाँ तक कि ”पैगम्बर मुहम्मद पहले व्यक्ति होंगे जो क़ियामत (प्रलय)बाद ही मिलेगी (मुस्मि, खं. १ः३८४, पृ. १६११)। इसके अलावा जिहाद न करने वाले मुसलमानों को अल्लाह सखत सज़ा देगा।” (मुस्लिम, खं. ३ः४६९६, पृ. १२७२; मिश्कत, खं. २ः३२, पृ. ३४८)। अतः हदीसों में भी गैर-मुसलमानों के लिए जिहाद का मतलब, इस्लाम और युद्ध में से एक को चुनना है।

इस्लामी फ़िकह (कानून की किताबों) में जिहाद-
इस्लाम में मुखयतया चार प्रकार की काननू व्यवस्था है: इनके अनुसार जिहाद का अर्थ गैर-मुसलमानों को मुसलमान बनाने के लिए युद्ध करना है।

१. हनीफ़ी फिक़ह (६९९-७६७ ए. डी.)-  ”जिहाद का मतलब है अपनी जान, माल और वाणी से अल्लाह के मार्ग में लड़ने के लिए शामिल होना” तथा ”गैर-मुसलमानों को सच्चे मज़हब इस्लाम की ओर आने का निमंत्रण देना और यदि वे इस सच्चे मज़हब को स्वीकारने के लिए तैयार न हों तो उनके विरुद्ध युद्ध करना है।”

२. मलिकी फिक़ह (७१५-७९५ ए. डी.)-जिहाद का अर्थ है ”मुसलमान अल्लाह के मज़हब को बढ़ाने के लिए ‘काफ़िरों’ से युद्ध करें।”

३. शफी फिक़ह (७६७-८२० ए. डी.)-”शरियाह के अनुसार जिहाद का मतलब है ”अल्लाह के मार्ग में लड़ने के लिए जी तोड़ कोशिश करना।”

४. हमबाली फिक़ह (७८०-८५५ ए. डी.)-”जिहाद का मतलब है ”गैर-मुसलमानों से युद्ध करना।” (जिहाद फिक्जे़शन, पृ. २१)

शब्दकोशों में जिहाद-

(i) वेब्सटर्स थर्ड न्यू इन्टरनेशनल डिक्शनरी (पृ. 1216) “A holy war waged on behalf of Islam as a religious duty; a bitter strife or crusade undertaken in the spirit of a holy war.”
जिहाद-‘ ‘इस्लाम के नाम पर धार्मिक कर्त्तव्य के रूप में लड़ा जाने वाला एक पवित्र युद्ध है। यह कठोर प्रयास या युद्ध, पवित्र युद्ध की भावना से किया जाता है।”

(ii) वेब्सटर्स न्यू ट्‌वेन्टीथ सेन्चुरी डिक्शनरी (पृ. ९८५)“A Moslem holy war; compaign against unbelievers or enemies of Islam.”
जिहाद-”मुसलमानों का पवित्र युद्ध; इस्लाम के दुश्मनों अथवा गैर-मुस्लिमों के विरुद्ध अभियान।”

(iii) वेब्सटर्स न्यू इन्टरनेशनल डिक्शनरी (पृ. १३३६)” religious war against infidels or Muhammadan heretics.”
जिहाद– ”मुहम्मडनों के विधर्मी और अविश्वासियों के विरुद्ध, एक धार्मिक युद्ध।”

(iv) दी अमेरिकन कॉलेज डिक्शनरी(पृ. ६५७) ” A war of Muhammadans upon others, with a religious object.”
जिहाद– ”मुसलमानों का धार्मिक उद्‌देश्य से दूसरों (गैर-मुसलमानों)के विरुद्ध एक युद्ध।”

(v) दी अमेरिकन हैरिटेज डिक्शनरी ऑफ दी इंगलिश लैंग्वेज़ (पृ. ७०४) “A Moslem holy war against infidels.”
जिहाद-”गैर-मुसलमानों के विरुद्ध एक पवित्र युद्ध।”
(vi) दी ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी(खंड. ५, पृ. ५८३) “Struggle, contest, specially one for the propagation of Islam, a religious war of Muhammadans against unbelievers in Islam inculcated as religious duty by the Quran and the ‘Traditions.”
जिहाद-”संघर्ष, युद्ध, विशेषकर इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए; मुहम्मदियों का इस्लाम में अश्विासियों केविरुद्ध धार्मिक युद्ध जिसे कि कुरान और हदीसों में एक धार्मिक कर्त्तव्य कहा गया है।”

(vii) दीरेंडम हाउस डिक्शनरी ऑफ दी इंगलिश लैंग्वेज (पृ. १०२०) “A holy war undertaken as a sacred duty to Muslims.”
जिहाद-”मुसलमानों के पवित्र कर्त्तव्य के रूप में किए जाने वाला पवित्र युद्ध।”

(x) कॉलिन्स को-बिल्ड इंगलिश लैंग्वेज डिक्शनरी (पृ. ७८१) “A holy war which Islam allows merely to fight against those who reject its teachings.”
जिहाद-”एक पवित्र युद्ध जिसकी मान्यता इस्लाम ने उनके विरुद्ध दी है जो कि इसकी शिक्षाओं को नहीं मानते हैं।”

(xi) लौंगमेन डिक्शनरी आूफ दी इंगलिश लैंग्वेज (पृ. ८४९) “A holy war waged on behalf of Islam as a religious duty.”
जिहाद– ”इस्लाम के लिए, एक धार्मिक कर्त्तव्य के रूप में लड़ा जाने वाला पवित्र युद्ध।”

(xii) दी हार्पर डिक्शनरी ऑफ मॉडर्न थॉट, (पृ. ३२७) (“Holy War”) “A fundamental tenet of traditional Islam obliging the believer to fight the unbeliever until the latter embraces either Islam or the protected status accorded only to those whose religions are based on written scriptures (i.e. Jews, Christians, Sebaeans), the “People of the Book”. A Jihad must be officially proclaimed by a recognized spiritual leader.”

जिहाद- (पवित्र युद्ध)- परम्परागत इस्लाम का एक मौलिक सिद्धान्त जो ईमानलाने वाले को इस बात का आदेश देता है कि वह गैर-ईमानवाले के विरुद्ध तब तक संघर्ष करे जब तक कि वह इस्लाम स्वीकार न कर ले अथवा ऐसी सुरक्षित हैसियत न अपना ले जो केवल उन लोगों को दी जाती है (जैसे यहूदी, ईसाई, साबियन्स) जिनके मज़हब लिखित किताबोंपर आधारित हैं। जिहाद की आधिकारिक घोषणा किसी मान्यता प्राप्त धार्मिक नेता द्वारा की जानी चाहिए।
(xiii) डिक्शनरी ऑफ इस्लाम, ले. टी. पी. हूजेज़ (पृ.२४३)

“Jihad, ‘An effort, or a striving:. A religious war with those who are unbelievers in the mission of Muhammad. It is an incumbent religious duty, estalished in the Quran and in the Traditions as a divine institution, and enjoined specially for the purpose of advancing Islam and of repelling evil from Muslims.
When an infidel’s country is conquered by a Muslim ruler, its inhabitants are offered three alternatives :

(1) The reception of Islam, in which case the conquered become enfranchised citizens of the Muslim state.

(2) The payment of a poll-tax (Jizyah), by which unbelievers in Islam obtain protection, and become Zimmis, provided they are not the idolaters of Arabia.

(3) Death by the sword to those who will not pay the poll tax.”

जिहाद– ”एक प्रयास या कोशिश। मुहम्मद के मिशन में आस्था न रखने वाले लोगों के विरुद्ध एक धार्मिक युद्ध। कुरान और हदीसों के अनुसार यह एक आवश्यक धार्मिक कर्त्तव्य है जिसे विशेष रूप से इस्लाम के प्रसार के लिए तथा मुसलमानों में बुराईयों को दूर करने के लिये निभाया जाता है।
जब किसी मुस्लिम शासक द्वारा कोई गैर-इस्लामी देश जीत लिया जाता है तो उसके निवासियों के सामने तीन विकल्प रखे जाते हैं-

1. इस्लाम स्वीकारना– ऐसी हाल में जीते गए देश के लोग मुस्लिम देश के नागरिक बन जाते हैं।

2. पोल टेक्स– जिज़िया देना-इससे इस्लाम में आस्था न रखने वाले को संरक्षण मिल जाता है तथा वे ‘जिम्मी’ हो जाते हैं बशर्तेैं वे अरेबिया के मूर्ति-पूजक न हों।

3. ”ज़जिया’ की अदायगी न करने वालों की तलवार द्वारा हत्या।”

ADMIN- Manish Kumar (ARYA)

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