Sunday 4 October 2015

वेदो में वैज्ञानिक गलतियाँ?

१. पृथ्वी स्थिर है?

१. जेहादी दावा
वेदों के अनुसार पृथ्वी स्थिर है और ऐसा कई स्थान पर है. कुछ उदाहरण नीचे दिए जाते हैं
हे मनुष्य! जिसने इस कांपती हुई पृथ्वी को स्थिर किया है वह इंद्र है. [ऋग्वेद २/१२/१२]

अग्निवीर
वास्तविक अर्थ: सूर्य की सप्तरश्मियों का, वर्षा करने वाले बादलों का, बहने वाली वायु का, जीवन के लिए आवश्यक जलाशयों का, हमारे जीवन यापन हेतु समायोजन करने वाला इंद्र (ईश्वर) हमें सफलता देता है.
इस मंत्र में स्थिर पृथ्वी जैसा कुछ भी नहीं है.


२. जेहादी दावा
वह ईश्वर जिसने इस पृथ्वी को स्थायित्त्व प्रदान किया. [यजुर्वेद ३२/६]

अग्निवीर
दुर्भाग्य से महाविद्वान जेहादी लेखक को स्थिरता और स्थायित्व में भेद नहीं पता. भौतिक विज्ञान के “जड़त्त्व के नियम” (Law of Inertia) अनुसार कोई वस्तु चाहे रुकी हुई हो चाहे चलती हुई, अगर संतुलन में है तो उसको स्थायी कहते हैं. स्थायित्व का अर्थ गतिहीनता नहीं है.
बताते चलें कि यह मन्त्र हिंदुओं में रोज पढ़ा जाता है जिसका अर्थ है: हम उस परमेश्वर को अपने विचार और कर्म समर्पित कर दें जो सब सूर्य आदि प्रकाशमान लोकों, पृथ्वी, नक्षत्र और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को स्थायित्व प्रदान करता है कि जिससे सब प्राणी सुखी हों और मोक्ष को प्राप्त हो पूर्ण आनंद को भोगें.

मन्त्र में बहुत स्पष्ट है कि उस सूर्य को भी स्थायी कहा गया है जो प्रत्यक्ष चलता हुआ दिखाई देता है. अतः मन्त्र में स्थायित्व का अर्थ गति हीनता नहीं हो सकता.



३. जेहादी दावा
इन्द्र उस फैली हुई पृथ्वी की रक्षा करता है जो स्थिर है और कई रूप वाली है. [अथर्ववेद १२/१/११]

अग्निवीर
यह मन्त्र अथर्ववेद के प्रसिद्ध भूमि सूक्त का है जो सब देशभक्तों के अंदर देश पर मर मिटने की भावनाओं का मूल स्रोत है. परन्तु जैसा सबको विदित है कि देशभक्ति और वफादारी जेहादियों के लिए सदा ही दूर की कौड़ी रही है, इस बार भी ऐसा ही निकला. इस मन्त्र में जेहादियों को स्थिर पृथ्वी दीख पड़ी! अब इसका वास्तविक अर्थ देखिये
हे पृथ्वी! तू हिम से ढके पर्वतों, घने वनों, वर्षा, भोजन आदि को धारण करने वाली है कि जिससे में सदा प्रसन्नचित्त, रक्षित और पोषित होता हूँ. तू वह सब कुछ देती है जिससे मैं ऐश्वर्यों का स्वामी होता हूँ. अगला मन्त्र कहता है- हे पृथ्वी! तू मेरी माता है और मैं तेरा पुत्र हूँ! हम सब शुद्ध हों और अपने शुभ कर्मों से तेरा ऋण चुकाएं.


४. जेहादी दावा
हम सब फैली हुई स्थिर पृथ्वी पर चलें. [अथर्ववेद १२/१/१७]

अग्निवीर
वास्तविक अर्थ: हम सब इस पृथ्वी पर आवागमन करें जो हमें धन, सम्पन्नता, पोषण, औषधि आदि से तृप्त करती है. यह हमें आश्रय देती है.
इस मन्त्र में महाविद्वान जेहादी ने “ध्रुव” शब्द देखा और बस “स्थिर” शब्द दे मारा! उसको इतना पता ही न चला कि मन्त्र में यह शब्द आश्रय देने के लिए आया है न कि खुद के स्थिर होने के लिए!
इन सबके उलट वेद में बहुत से मन्त्र हैं जिनमें पृथ्वी के गतिमान होने का स्पष्ट वर्णन है. जैसे
ऋग्वेद १०.२२.१४- यह पृथ्वी विना हाथ और पैर के भी आगे बढती जाती है. यह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है.
ऋग्वेद १०.१४९.१- सूर्य ने पृथ्वी और अन्य ग्रहों को अपने आकर्षण में ऐसे बांधा है जैसे घोड़ों को साधने वाला अश्व शिक्षक नए शिक्षित घोड़ों को उनकी लगाम से अपने चारों ओर घुमाता है.
यजुर्वेद ३३.४३- सूर्य अपने सह पिंडों जैसे पृथ्वी को अपने आकर्षण में बाँधे अपनी ही परिधि में घूमता है.
ऋग्वेद १.३५.९- सूर्य अपनी परिधि में इस प्रकार घूमता है कि उसके आकर्षण में बंधे पृथ्वी और अन्य पिंड आपस में कभी नहीं टकराते.
ऋग्वेद १.१६४.१३- सूर्य अपनी परिधि में घूमता है जो स्वयं भी चलायमान है. पृथ्वी और अन्य गृह सूर्य के चारों ओर इसलिए घुमते हैं क्योंकि सूर्य उनसे भारी है.


२. सूर्य पृथ्वी के चारों ओर घूमता है?

५. जेहादी दावा
सूर्य प्रकाशमान है और सब मनुष्यों को जानता है, इसलिए उसके घोड़े उसे आकाश में ले जाते हैं कि जिससे वह विश्व को देख सके. [ऋग्वेद १/५०/१]

अग्निवीर
यह मन्त्र भी हिंदुओं के रोज की प्रार्थना का भाग है. इसका अर्थ है-
जिस प्रकार सूर्य की किरणें विश्व को देखने योग्य बनाती हैं, उसी प्रकार सब सज्जनों को उचित है कि वे अपने शुभ गुणों और कर्मों से श्रेष्ठता का प्रचार करें.
इस मन्त्र में कहीं घोड़ा नहीं आता और न ही सूर्य कहीं पृथ्वी के चारों ओर घूमा है!

६. जेहादी दावा
हे प्रकाशित सूर्य, सात घोड़ों वाले हरित नाम का एक रथ तुझे आकाश में ले जाता है. [ऋग्वेद १/५०/८]

अग्निवीर
वास्तविक अर्थ- जिस प्रकार सूर्य की सप्त रश्मियाँ इसके प्रकाश को दूर दूर तक पहुंचाती हैं उसी प्रकार तुम वेदों के सात प्रकार के छंदों को समझो.
इस मन्त्र से सूर्य का गतिमान होना समझा जा सकता है पर फिर रश्मियों का घोड़ों से कैसे सम्बन्ध रहेगा? क्योंकि किरणें तो सूर्य के चारों ओर निकलती हैं, केवल सूर्य के चलने की दिशा में नहीं, तो फिर किरणें सूर्य के घोड़े के समान कैसे होंगी? वेद तो सूर्य को गतिमान मानता ही है और इसी प्रकार कोई भी पिंड गतिमान होता है. परन्तु इस मन्त्र या किसी और में भी सूर्य का पृथ्वी के चारों ओर गति का कोई वर्णन नहीं है. वेद के अनुसार सूर्य की अपनी अलग परिधि है जिसमें वह घूमता है. [देखें ऋग्वेद १.३५.९]

७. जेहादी दावा
हे मनुष्य, सूर्य जो सबसे आकर्षक है, वह अपने स्वर्ण रथ पर सवार होकर पृथ्वी के चक्कर काटता है और पृथ्वी का अन्धकार दूर करता है. [यजुर्वेद ३३/४३]

अग्निवीर
वास्तविक अर्थ: सूर्य अपने आकर्षण से अन्य पिंडों को धारण करता हुआ अपनी परिधि में घूमता रहता है.
इस मन्त्र की बात को खगोल विज्ञानी भी स्वीकार करते हैं. खगोलशास्त्र विषय का आधार भी ऐसे तथ्य ही हैं. वास्तव में जेहादी विज्ञान में खगोलशास्त्र का वर्णन न होने के कारण उनके महाविद्वान इन मन्त्रों पर ही प्रश्न उठाने लगे हैं!


८. जेहादी दावा
बैल ने आकाश को धारण किया है. [यजुर्वेद ४.३०]

अग्निवीर
महाविद्वान जेहादी ने मन्त्र में वृषभ शब्द देखा और इसको बैल बनाने पर तुल गया! परन्तु संस्कृत भाषा से बेखबर जेहादी को यह पता नहीं कि “वृषभ” के यौगिक अर्थ “शक्तिशाली”, “सामर्थ्यवान” और “उत्तम” हैं. रूढ़ी अर्थों में बैल को वृषभ कहा जाता है क्योंकि बैल कृषि क्षेत्र में शक्ति का प्रतीक है.
वास्तविक अर्थ- हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! आप समस्त ब्रह्माण्ड में रम रहे हो. पृथ्वी की उत्पत्ति और पालन पोषण, सूर्य की स्थिरता, समस्त आकाशस्थ पिंडों और आकाश की व्यवस्था करने वाले हो, तथा एक आदर्श राजा की भांति सबको नियम में रखते हो. यह तो आपका स्वभाव ही है.


९. जेहादी दावा
बैल ने आकाश को धारण किया है. [यजुर्वेद १४.५]

अग्निवीर
इस मन्त्र में कोई शब्द ऐसा नहीं जिसका अर्थ बैल किया जा सके. यह मन्त्र पत्नी के कर्तव्यों पर प्रकाश डालता है.
वास्तविक अर्थ- हे पत्नी! तू अपने पति को सुख देने वाली हो और सदैव उत्तम कर्मों को करने वाली हो. तू अत्यंत बुद्धिमती हो और सदैव अपनी विद्या को सूर्य के समान बढाने वाली हो. तू सबको सूर्य के समान सुख देने वाली हो जैसे वह भोजन, प्रकाश और शुद्धता प्रदान करने वाला है. तू सबको जल के समान तृप्त करने वाली हो. तू सब ओर ज्ञान का प्रकाश करने वाली हो.
लगता यह है कि स्त्रियों को पशुओं व वस्तुओं की भांति उपयोग करने वाले जेहादियों से यह मन्त्र सहन ही नहीं हुआ!


ADMIN- Manish Kumar (arya)

1 comment:

  1. वैदिक काल मे ही 9 ग्रहों की खोज की गई और सभी को गतिमान बताया गया है यहा पर जेहादी शब्द का प्रयोग किया गया है जो दर्शाता है कि किसी ने गलत तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश किया है वैदिक विज्ञान मे सूर्य को भी अपनी धुरी पर गतिमान बताया गया है जिसे आधुनिक विज्ञान अब सही मानना शुरू कर रहा है

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