Friday 2 October 2015

वेदों में पैगम्बर ??


मुहम्मद के होने का यह दावा कितना पुख्ता है और कितना धोखे से मुसलमान बनाने की नापाक साजिश.
आज तक की वेद की तारीख (इतिहास) में किसी वेद के मानने वाले ने वेद में मुहम्मद तो क्या किसी पैगम्बर का नाम नहीं पाया. जितने ऋषि (वे पाकदिल इंसान जिन्होंने वेद के रूहानी मतलब अपने पाक दिल में ईश्वर/अल्लाह की मदद से समझे और दुनिया में फैलाए) अब तक हुए, सब ने वेद में किसी किस्म की तारीख (इतिहास) होने से साफ़ इनकार किया है. इससे किसी आदमी के चर्चे वेद में मिलना नामुमकिन है. 

१. अथर्ववेद में मुहम्मद 
(सल्लo)
जाकिर भाई:अथर्ववेद के २० वीं किताब के १२७ वें सूक्त के कुछ मन्त्र कुंताप सूक्त कहलाते हैं. कुंताप का मतलब होता है सब दुखों को दूर करने वाला. इसलिए जब इसको अरबी में तर्जुमा (अनुवाद) करते हैं तो इसका मतलब “इस्लाम” निकलता है.
अग्निवीर:
१. इस मन्तक (तर्क) के हिसाब से तो दुनिया की हर रूहानी (आध्यात्मिक) और हौंसला अफजाई करने वाली किताब का मतलब इस्लाम होगा!
२. इससे यह भी पता चलता है कि मुहम्मद पैगम्बर के चलाये हुए दीन और इसका अमन का पैगाम तो
 पहले ही वेदों की शक्ल में मौजूद था!
जाकिर भाई की यह बात काबिल ए तारीफ़ है कि उन्होंने इस्लाम की पैदाईश को वेदों से निकाल कर यह साबित कर दिया कि वेद ही असल में सब अच्छाइयों की जड़ हैं और सबको वेदों की तरफ लौटना चाहिए!
जाकिर भाई:
कुंताप का मतलब पेट में छुपे हुए पुर्जे (अंग) भी होता है. लगता है कि ये मंत्र कुंताप इसलिए कहलाते हैं कि इनके असली मतलब छिपे हुए थे और बाद में खुलने थे. कुंताप का एक और छिपा हुआ मतलब इस धरती की नाफ (नाभि, navel) यानी एकदम बीच की जगह से है. मक्का इस धरती की नाफ कही जाती है और ये सब जगहों की माँ है. बहुत सी आसमानी किताबों में मक्का का जिक्र उस घर की तरह हुआ है जिसमें अल्लाह ने सबसे पहले दुनिया को रूहानी (आध्यात्मिक) ताकत बख्शी. कुरान [३:९६] में आया है-
“मक्का पहला इबादत (पूजा) का घर है जो इंसानों के लिए मुक़र्रर किया गया जो सब वजूद (अस्तित्त्व) वालों के लिए खुशियों और हिदायतों से भरपूर है”
इसलिए कुंताप का मतलब मक्का है.
अग्निवीर:
१. जाकिर भाई से यह गुजारिश है कि किसी लुगात (शब्दकोष) में कुंताप का मतलब “पेट के छिपे हुए पुर्जे” दिखा दें!
२. अगर मान भी लिया जाए कि जाकिर भाई एम बी बी एस की खोज ठीक है तो इन “छिपे हुए पुर्जों” का नाफ (नाभि) से क्या ताल्लुक है? पेट में आंत, लीवर वगैरह तो छुपे होते हैं लेकिन केवल नाफ ही छुपी नहीं होती! तो फिर कुंताप =छुपा हुआ का मतलब नाफ=न छुपा हुआ कैसे होगा?
३. वैसे गोल धरती का ‘बीच’ उसके अन्दर होता है न कि उसकी सतह पर! तो जब मक्का भी सतह पर है तो वह गोल धरती की नाभि नहीं हो सकती, लेकिन चपटी (flat) धरती की जरूर हो सकती है! अब फैसला जाकिर भाई पर है कि चपटी धरती पर रहना है कि गोल धरती पर! वैसे बताते चलें कि इस्लाम धरती को गोल मानता ही नहीं. इसी वजह से पूरी कुरान में एक भी आयत ऐसी नहीं जिसमें धरती को गोल माना गया है!
(इस्लाम में मक्का को इतना ऊंचा दर्जा दिए जाने के पीछे कुछ तारीखी वजूहात (ऐतिहासिक कारण) हैं. इस्लाम के वजूद से पहले भी मक्का की पूजा होती थी और वो लोगों में इतनी गहराई से बैठी थी कि मुहम्मद साहब इसका विरोध करके अपना मजहब नहीं फैला सकते थे. यही वजह है कि सातवें आसमान पर बैठे अल्लाह की इबादत करने का दावा करने वाले मुसलमान भाई दिन में पांच बार काबा को सर झुकाते हैं और जिन्दगी में एक बार वहां जाकर उसके चक्कर काटने से जन्नतनशीं होने के सपने देखते हैं! काबा को चूमना, उसके चक्कर काटना वगैरह सब बातें मक्का के मुशरिक पहले से ही करते थे और मुहम्मद साहब को भी इसको जारी रखना पड़ा, भले ही ये बातें सच्चे अल्लाह की इबादत से दूर हैं.)
४. जाकिर भाई का मन्तक (तर्क) कहता है
कुंताप = पेट के छिपे हुए पुर्जे = नाफ (नाभि) = केंद्र = धरती का केंद्र = मक्का
इसलिए, 
कुंताप = मक्का
तो अब जाकिर भाई के इस मन्तक से देखते हैं कि क्या होता है
जहर = मौत = पूरा आराम = अमन चैन (शांति या peace ) = इस्लाम (जाकिर साहब खुद ही कहते हैं की इस्लाम का मतलब peace होता है, अपने कार्यक्रम का नाम भी Peace कान्फरेन्स रखा है)
इसलिए, जहर = इस्लाम
हम अपने दानिशमंद (बुद्धिमान) भाईयों और बहनों से पूछते हैं कि जाकिर भाई के मन्तक इस्लाम का रुतबा (स्तर) बढाने वाले हैं या उसका मजाक बनाने वाले?
जाकिर भाई:
कुछ लोगों ने इस कुंताप सूक्त के तर्जुमे (अनुवाद) किये हैं, जैसे एम ब्लूमफील्ड, प्रोफ़ेसर राल्फ ग्रिफिथ, पंडित राजाराम, पंडित खेम करण वगैरह.

अग्निवीर:
१. इन लोगों में से पहले दो तो ईसाई मजहब फैलाने के मकसद से किताबें लिखने वाले ईसाई थे. वेद के मामलों में ऐसे लोगों के मनमाने मतलब कोई मायने नहीं रखते.

२. वैसे इन लोगों ने कभी भी किसी मंत्र में मक्का या मुहम्मद या इनसे जुड़ी किसी बात का जिक्र तक नहीं किया! केवल एक लफ्ज़ “ऊँट” ही था जो इन लोगों के तर्जुमे और जाकिर भाई के तर्जुमे में एक सा है! जाकिर भाई ने सब मन्त्रों में जहाँ कहीं भी “ऊँट” आया है वहां जबरदस्ती मक्का और मुहम्मद को घसीट लिया है. यह अभी आगे साबित हो जाएगा. इस लेख को पढने वाले भाई बहन इन सब मन्त्रों पर ग्रिफिथ के तर्जुमे को http://www.sacred-texts.com/hin/av/av20127.htm यहाँ पर पढ़ सकते हैं और खुद फैसला कर सकते हैं कि जाकिर भाई सच बोल रहे हैं कि झूठ. हम नीचे पंडित खेम करण के किये तर्जुमे (अनुवाद) को दिखा कर आपसे पूछेंगे कि जाकिर भाई सच के उस्ताद हैं कि झूठ और मक्कारी के! आप इस तर्जुमे कोhttp://www.aryasamajjamnagar.org/atharvaveda_v2/atharvaveda.htm यहाँ पढ़ सकते हैं.
जाकिर भाई:
कुंताप सूक्त मतलब अथर्ववेद [२०/१२७/१-१३] की ख़ास बातें हैं-
मन्त्र १. वह नाराशंस या जिसकी तारीफ़ की जाती है, मुहम्मद है. वह कौरम यानी अमन और उजड़े हुओं का राजकुमार, जो ६००९० दुश्मनों के बीच भी हिफाजत से है.
मन्त्र २. वह ऊँट पर सवार रहने वाला ऋषि है जिसका रथ (chariot) आसमानों को छूता है.
मन्त्र ३. वह मामह ऋषि है जिसको १०० सोने की अशर्फियाँ, १० हार, तीन सौ घोड़े और दस हज़ार गाय दी गयी हैं.
मन्त्र ४. ओ इज्जत देने वाले!

अग्निवीर:
असली तर्जुमा (पंडित खेम करण)

मन्त्र १. नाराशंस मतलब लोगों में तारीफ़ पाने वाला ही असली तारीफ़ को पायेगा. ओ कौरम (धरती पर राज करने वाले), हम बहुत तरह के तोहफे उन जांबाज (वीर) लोगों से पाते हैं जो दहशतगर्द कातिलों को ख़त्म करते हैं.
मन्त्र २,३. उसके रथ में तेज चलने वाले बहुत से ऊँट और ऊंटनी हैं. वह सौ अशर्फियों, दस हारों, तीन सौ घोड़ों और दस हजार गायों को मेहनतकशों (उद्यमी मनुष्यों) को देने वाला है.
मन्त्र ४. इस तरह से अच्छी बातें फैलाते रहो जैसे पंछी सदा पेड़ों से चिल्लाते रहते हैं.
अब तक जाकिर भाई और बाकी के तर्जुमाकारों में यह अंतर है कि जाकिर भाई ने कुछ लफ्ज़ अपनी तरफ से डालकर मुहम्मद पैगम्बर के वेदों में होने का रास्ता बनाया है जबकि औरों को जैसे यह खबर भी नहीं कि अरब में कोई तारीफ़ पाने लायक पैगम्बर अभी अभी होकर गुजरा है! हाँ एक बात जो दोनों तर्जुमों में एक सी है और वो है “ऊँट“!
अब देखें कि जाकिर भाई आगे क्या कहते हैं!
जाकिर भाई:
इस संस्कृत के लफ्ज़ नाराशंस का मतलब है “तारीफ पाया हुआ”, जो कि अरबी के लफ्ज़ “मुहम्मद” का तर्जुमा ही है.
अग्निवीर: १. अरबी बिस्मिल्लाह यानी “बिस्मिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम” को हिंदी में बदलने पर “दयानंद की जय” ऐसा मतलब निकलता है! इसका मतलब यह हुआ कि कुरान दयानंद की तारीफ़ से ही शुरू होती है! तो फिर हमारे मुसलमान भाइयों को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए अगर कल हिन्दू यह कहने लगें कि कुरान में दयानंद के आने की भविष्यवाणी है!
२. और नाराशंस से मुहम्मद तक का सफ़र ऐसा ही है जैसा सफ़र जहर से इस्लाम तक था! जहर = मौत = पूरा आराम = अमन चैन = इस्लाम
इसलिए, जहर = इस्लाम
जाकिर भाई:
संस्कृत के लफ्ज़ “कौरम” का मतलब है “अमन को फैलाने और बढाने वाला”. पैगम्बर मुहम्मद “अमन के राजकुमार” थे और उन्होंने इंसानियत और भाईचारे का ही पैगाम दिया. “कौरम” का मतलब उजड़ा हुआ भी होता है. मुहम्मद साहब भी मक्का से उजाड़े गए और मदीने में जाना पड़ा.
अग्निवीर:
१. “कौरम” का मतलब है “जो धरती पर अमन से राज करता है”. अब देखें, तारीख (इतिहास) गवाह है कि पैगम्बर मुहम्मद की जिंदगी खुद कितनी अमन चैन में गुजरी थी! कितनी अमन की लड़ाईयां उन्होंने लड़ीं, कैसे मक्का फतह किया और किस अमन का पैगाम कुरान में काफिरों के लिए दिया है, यह सब बताने की जरूरत नहीं!
२. वैसे जिस तरह मुहम्मद साहब मक्का से उजाड़े गए, उसी तरह कृष्ण जी भी मथुरा से उजाड़े गए और उन्हें द्वारिका में जाना पड़ा. कृष्ण के मायने भी “तारीफ किये गए” और “शांति दूत” मतलब अमन का पैगाम देने वाले हैं, फिर तो ये मन्त्र उन पर भी लागू होता है!
३. और कौरम से मुहम्मद तक का सफ़र भी ऐसा ही है जैसा सफ़र जहर से इस्लाम तक था! जहर = मौत = पूरा आराम = अमन चैन = इस्लाम
इसलिए, जहर = इस्लाम
जाकिर भाई:
वह ६००९० दुश्मनों से बचाया जाएगा, जो कि मक्का की उस वक़्त की आबादी थी.

अग्निवीर:हमारा सवाल है कि कौन से आबादी नापने की तकनीक से जाकिर भाई ने अब से चौदह सौ साल पहले की मक्का की आबादी खोज निकाली? कहीं यह कोई इल्हाम तो नहीं?
जाकिर भाई:
वह पैगम्बर ऊँट की सवारी करेगा. इससे यह जाहिर होता है कि यह कोई हिन्दुस्तानी ऋषि नहीं हो सकता, क्योंकि किसी ब्राह्मण को ऊँट की सवारी करना मनु के उसूलों के खिलाफ है. [मनुस्मृति ११/२०२]

अग्निवीर:
१. पंडित खेम करण के तर्जुमे के हिसाब से उस रथ में बीस ऊँट और ऊंटनी होंगे. अगर यह बात है तो कौन सी सीरत और हदीसों में लिखा है कि मुहम्मद साहब ऐसे किसी रथ पर सवार भी हुए थे? और क्या पूरी इंसानी तारीख में केवल पैगम्बर मुहम्मद ही वाहिद (इकलौते) इंसान थे जो ऊँट की सवारी करते थे? अगर नहीं तो आपको इस मन्त्र में सिर्फ उनका नाम ही क्यों सूझा?
२. मन्त्र एक राजा के बारे में है ना कि ब्राह्मण के बारे में. तो इसलिए मनु के उसूल इस मन्त्र पर घटते ही नहीं क्योंकि मनु का श्लोक ब्राह्मण के लिए ही है!
जाकिर भाई:
मन्त्र में ऋषि का नाम मामह है. हिन्दुस्तान में किसी ऋषि या पैगम्बर का नाम यह नहीं था…… कुछ संस्कृत की किताबें इस पैगम्बर का नाम मोहम्मद बताती हैं…..असल में इससे मिलता जुलता लफ्ज़ और मतलब तो पैगम्बर मुहम्मद पर ही घटता है.

अग्निवीर:
१. मन्त्र में लफ्ज़ “मामहे” है न कि “मामह”! जाकिर भाई ने किस किताब में इसका मतलब मुहम्मद या मोहम्मद देखा यह बात बड़े पते की है क्योंकि-
मन्त्र में “मामहे” लफ्ज़ एक क्रिया (verb) है ना कि कोई संज्ञा/आदमी (noun)! इस पूरे मन्त्र में केवल यही एक क्रिया (verb) है और कोई नहीं! अगर इस लफ्ज़ “मामहे” से किसी आदमी का मतलब लेंगे तो पूरे मन्त्र का कोई तर्जुमा ही नहीं बन सकता क्योंकि फिर इस मन्त्र में कोई क्रिया (verb) ही नहीं बचेगी!
२. और भी, यह क्रिया (verb) दो से ज्यादा लोगों के लिए आई है (बहुवचन), किसी एक आदमी के लिए नहीं! तो इस तरह इस लफ्ज़ से एक आदमी को लेना नामुमकिन है!
जाकिर भाई:
मन्त्र में जो सौ अशर्फियों की बात है, वो मुहम्मद पैगम्बर के साथियों और शुरू के ईमान लाने वालों के लिए है जिस वक़्त मक्का में हालात ठीक नहीं थे….

अग्निवीर:
१. यह एक और मौजजा (चमत्कार) ही समझना चाहिए कि अचानक सोने की अशर्फियाँ मोमिनों में तब्दील हो गयीं! लेकिन जाकिर भाई इस मौजजे का जिक्र कुरान में तो नहीं है, तो क्या अब आप पर भी इल्हाम …..? अल्लाह इमान सलामत रखे!
२. किसी इस्लामी किताब में सहाबा और शुरू के ईमान वालों की गिनती सौ तक नहीं गयी! कुछ सीरत चालीस तक ही बताती हैं. देखेंhttp://www.religionfacts.com/islam/history/prophet.htm
जाकिर भाई:
दस हारों का मतलब यहाँ १० सहाबाओं से है. ये वे हैं जिनको खुद पैगम्बर ने यह खुश खबरी सुनाई कि वे सब जन्नत में दाखिल होंगे-अबू बकर, उमर, उथमान, अली, तल्हा, जुबैर, अब्दुर रहमान इब्न आउफ, साद बिन अबी वकास, साद बिन जैद, और उबैदा…

अग्निवीर:
१. वही मौजजा! गले के हार = सहाबा
२. वैसे ये १० गले के हार मूसा के दस उसूल (Ten Commandments) क्यों न माने जाएँ?
३. यहाँ रुक कर हम अपनी मुसलमान माताओं और बहनों से एक बात कहेंगे. ऊपर दिए गए दस लोगों में से एक भी औरत नहीं है, जिसकी जन्नत जाने की खबर मुहम्मद ने अपन मुहँ से सुनाई थी. आप सोच लें की आपकी इज्जत इस्लाम में कितनी है. हमें इस पर और कुछ नहीं कहना.
जाकिर भाई:
संस्कृत के अल्फाज़ गो का मतलब है लड़ाई के लिए जाना. गाय भी “गो” कही जाती है और वह लड़ाई और अमन दोनों की निशानी है. मन्त्र में दस हज़ार गायों से मुराद असल में मुहम्मद के उन दस हज़ार साथियों से है जो फ़तेह मक्का में उनके साथ थे जो कि दुनिया की पहली ऐसी फ़तेह (जीत) थी जिसमें कोई खून नहीं बहा. जहाँ ये दस हज़ार साथी गाय की तरह ही अच्छी आदत वाले और प्यारे थे वहीँ दूसरी तरफ ये ताकतवर और भयानक थे जैसा कि कुरान के सूरा फतह में आया है कि “जो मुहम्मद के साथ हैं वे काफिरों के खिलाफ ताकतवर हैं, लेकिन आपस में एक दूसरे का ख्याल करने वाले हैं” [कुरान ४८:२९]

अग्निवीर:
१. संस्कृत के कौन से उसूल से गो का मतलब “लड़ाई पर जाना” निकलता है? कहीं जाकिर भाई अंग्रेजी के “go” से तो जाने का मतलब नहीं निकाल रहे? वैसे संस्कृत में गो लफ्ज़ के कई मायने हैं जैसे गाय, धरती, घूमने वाली चीज वगैरह. लेकिन इस मन्त्र में गो का मतलब गाय ही है क्योंकि यहाँ बात लेने देने की है.
गाय का दान करना वैदिक धर्म का बहुत पुराना रिवाज है जो आज भी काफी चलता है. जितने भी वैदिक धर्म के बड़े लोग हुए, वे सब गाय और बाकी जानवरों की हिफाजत करने के लिए जाने जाते थे. यहाँ तक कि गाय वैदिक सभ्यता के रीढ़ की हड्डी समझी जाती है. ईश्वर बहुत जल्द वह दिन दिखाए कि कोई दहशतगर्द कातिल चाहे अल्लाह के नाम पे और चाहे देवी के नाम पे फिर कभी किसी मासूम के गले न चीर सके.
२. खैर, बात यह है कि वेद में हर जगह सब जानवरों की और ख़ास तौर से गाय की हिफाज़त करना राजा और लोगों पर जरूरी बताया गया है. जाकिर भाई के हिसाब से भी गाय मुहम्मद के साथियों की तरह प्यार करने लायक और हिफाज़त करने लायक है. लेकिन मुहम्मद और उनपर ईमान लाने वाले मुसलमान तो गाय के सबसे बड़े मारने वाले लोग हैं. ईद पर गाय काटना बहुत सवाब (पुण्य) देने वाला काम समझा जाता है. तो बात यह है कि अगर दस हजार गायों से मुहम्मद के साथियों से मुराद है तो मुहम्मद या कोई और मुसलमान गाय को नहीं मारते. पर ऐसा नहीं है. यह इस बात की दलील है कि जाकिर भाई की दस हज़ार गाय वाली बात भी मन घड़ंत, संस्कृत के इल्म से बेखबर, और मन्तक पर खारिज हो जाने वाली है.
३. जाकिर भाई के हिसाब से इस मन्त्र में आने वाले लफ्ज़ “गो” का मतलब लड़ाई की निशानी, अमन की निशानी, और लड़ाई के लिए जाना है! यानी एक ही वक़्त में यह लफ्ज़ noun भी है और verb भी! जाकिर भाई इस नए इल्म के खोजकार ठहरते हैं और इस लिए उनको बहुत मुबारकबाद!
जाकिर भाई:
इस मन्त्र में लफ्ज़ “रेभ” आया है, जिसका मतलब है तारीफ़ करने वाला और इसका अरबी में तर्जुमा करने पर “अहमद” बनता है जो मुहम्मद (सल्लo) का ही दूसरा नाम है.

अग्निवीर:
१. और रेभ से मुहम्मद तक का भी सफ़र ऐसा ही है जैसा सफ़र जहर से इस्लाम तक था! जहर = मौत = पूरा आराम = अमन चैन = इस्लाम
इसलिए, जहर = इस्लाम
२. इसी तरह- बिस्मिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम = दयानंद की जय
और क्या कहें इस उल जलूल तर्क पर!
जाकिर भाई:
अथर्ववेद [२०/२१/६]- “ओ सच्चे लोगों के स्वामी! ……जब तुम दस हजार दुश्मनों से बिना लड़ाई किये जीते….”
यह मन्त्र इस्लाम की तारीख की जानी मानी लड़ाई, अहजाब की लड़ाई का जिक्र करता है जो मुहम्मद के जीतेजी ही लड़ी गयी थी. इसमें पैगम्बर बिना किसी लड़ाई के ही जीत गए थे जैसा की कुरान [३३:२२] में लिखा है.
इस मन्त्र में लफ्ज़ “करो” का मतलब है इबादत करने वाला, और जब इसका तर्जुमा अरबी में करते हैं तो यह अहमद बनता है जो मुहम्मद का दूसरा नाम है.
मन्त्र में आये दस हजार दुश्मन असल में मुहम्मद के दुश्मन थे और मुसलमान केवल तादात में तीन हजार थे. और मन्त्र के आखिरी लफ्ज़ “अप्रति नि भाष्या” के मायने हैं कि
दुश्मनों को बिना लड़ाई के ही हरा दिया गया.

अग्निवीर:
असली तर्जुमा (पंडित खेम करण): “ओ सच्चे लोगों को बचाने वाले! तुम उनसे खुश होते हो जो दुश्मनों को लड़ाई में अपनी जांबाजी और हौंसले से सबको खुश कर देते हैं. अपने बेहतरीन कामों से दस हज़ार दुश्मन बिना किसी तकलीफ के हरा दिए गए हैं.”
१. अगर ये मन्त्र अहज़ाब की लड़ाई की बात करता है तो इसमें पैगम्बर के लश्कर (सेना) की तादाद क्यों नहीं दी गयी?
२. मन्त्र में आये लफ्ज़ “दश सहस्र” वेदों में कई ठिकानों पर आये हैं, और इसके मायने बहुत बड़ी तादाद के हैं. कई बार ना गिने जा सकने वाले भी!
३. वैसे इस मन्त्र में “करो” जैसा कोई लफ्ज़ ही नहीं! नजदीक से नजदीक एक लफ्ज़ “कारवे” तो है पर इसका मतलब है “काम करने वाले के लिए” न कि “इबादत करने वाला” जैसा जाकिर भाई ने लिखा है! अब क्योंकि मुहम्मद का कोई नाम “काम करने वाले के लिए” नहीं है तो इस मन्त्र में उनके होने की सब दलील ख़ाक में मिल जाती हैं.
४. असल में यह मन्त्र ख़ास तौर से रूहानी (आध्यात्मिक) लड़ाई, जो हर वक़्त आदमी के जेहन में अच्छाई और बुराई के बीच चलती रहती है, के बारे में बताता है और इसे जीतने का हौंसला भी देता है. इसी वजह से बिना खून खराबे के लड़ाई जीतने की बात है. दूसरी तरफ यह सूक्त लड़ाई में अच्छे दांव पेच लगाकर बिना खून बहाए अपने दुश्मन को जीतने का रास्ता भी दिखाता है. पर इसमें, जैसा कि हम दिखा चुके हैं, कोई तारीखी वाकया (ऐतिहासिक घटना) शामिल नहीं है.
जाकिर भाई:
मक्का के मुशरिकों की हार की दास्ताँ अथर्ववेद [२०/२१/९] में इस तरह है- “ओ इंद्र! तुमने बीस राजाओं और ६००९९ आदमियों को अपने रथ के भयानक पहियों से हरा दिया है जो तारीफ़ किये हुए और अनाथ (मुहम्मद) से लड़ने आये थे”
मक्का की आबादी मुहम्मद की वापसी के वक़्त करीब साथ हज़ार थी. साथ ही मक्का में बहुत से कबीले और उनके सरदार थे. वो कुल मिलाकर करीब बीस सरदार थे जो पूरी मक्का पर हुकूमत करते थे. “अबन्धु” मतलब बेसहारा जो कि तारीफ़ किये हुओं में से है. मुहम्मद ने अल्लाह की मदद से अपने दुश्मनों पर फतह पायी.

अग्निवीर:
१. जाकिर भाई क्या किसी सीरत या हदीस से ये ६०००० आबादी वाली बात बताने की जहमत गवारा करेंगे? या फिर जैसा हमने पहले कहा कि क्या जाकिर भाई पर भी इल्हाम …….! अल्लाह ईमान सलामत रखे!
२. इस मन्त्र का लफ्ज़ दर लफ्ज़ (शब्दशः) तर्जुमा यह है कि ६०००० से ज्यादा दुश्मन और उनके २० राजा भयंकर रथों के पहियों तले रौंद डाले गए. मतलब दुश्मनों के लश्कर में ६०००० सिपाही थे. इसका मतलब यह कि मक्का की पूरी आबादी (जवान, बूढ़े, बच्चे, औरत) सब ही उस लडाई में पहियों तले कुचल डाले गए! तो अगर इस मन्त्र में मुहम्मद है भी तो वह एक भयानक कातिल, जिसने बच्चों, औरतों, बूढों किसी को नहीं छोड़ा, साबित होता है. क्या अब भी कोई मुहम्मद और इस्लाम के अमन के पैगाम पर सवालिया निशान लगा सकता है?
३. असल में, मक्का की लड़ाई एक छोटी सी कबीलों की जंग थी जिसमें हज़ार के आस पास मक्का के और तीन सौ के आस पास मुहम्मद के मुजाहिदीन शामिल थे. तो इस लड़ाई में ६०००० की बात सोचना नामाकूल बात है.

२. ऋग्वेद में मुहम्मद (सल्लo)

जाकिर भाई:
इसी तरह की भविष्यवाणी ऋग्वेद (१/५३/९) में मिलती है.
संस्कृत लफ्ज़ जो यहाँ आया है वो है “सुश्रमा” जिसका मतलब है “तारीफ़ किये जाने के काबिल” जिसका अरबी तर्जुमा मुहम्मद ही है.

अग्निवीर: 
इसका मतलब भी पिछले मन्त्र जैसा ही है यानी उससे भी मुहम्मद पूरी काबा की आबादी का कातिल ठहरता है.
२. मन्त्र में कहीं भी “सुश्रमा” नहीं आया!
३. एक लफ्ज़ “सुश्रवसा” जरूर है जिसका मतलब है “सुनने वाला” और “दोस्त”, जिसका इस मन्त्र में मुहम्मद से कोई ताल्लुक ही नहीं!

३. सामवेद में मुहम्मद (सल्लo)

जाकिर भाई:
पैगम्बर मुहम्मद सामवेद (२/६/८) में भी पाए जाते हैं. “अहमद ने अपने स्वामी से इल्हामी इल्म हासिल किया. मैंने उससे वैसा ही नूर (प्रकाश) हासिल किया जैसा कि सूरज से”. इससे पता चलता है कि
इस पैगम्बर का नाम अहमद है. कई तर्जुमाकारों (भाष्यकारों) ने इसे गलत समझा और इसे अहम् अत ही लिखा और इसका मतलब निकला “मैंने ही अपने पिता से असली इल्म हासिल किया है”.
पैगम्बर को इल्हामी इल्म हासिल हुआ, जो कि शरियत है.
ऋषि को इल्म हुआ मुहम्मद की शरियत से. कुरान [३४:२८] में लिखा है- “हमने तुझे भेजा है सबके लिए न कि किसी एक के लिए, उनको समझाने के लिए और चेतावनी देने के लिए, पर अधिकतर लोग समझते नहीं”

अग्निवीर:
कोई कुछ समझा क्या? पहले हम भी नहीं समझे थे! पर समझ कर अब इस पर लिख रहे हैं. हो सकता है आप हमारी राय देख कर जाकिर भाई की बातों को समझ सकें!
१. जाकिर भाई को पहले यह सीखना चाहिए कि वेदों के हवाले (reference) कैसे दिए जाते हैं. सामवेद के हवाले इस तरह नहीं दिए जाते. इसलिए जब उनको यह मन्त्र सही हवालों के साथ कहीं मिले तो हमारी नजर कर दें, हम इसका भी हल कर देंगे! हमने बहुत खोजा पर यह मंत्र हमे कहीं नहीं मिला.
२. एक बड़ा सवाल यहाँ यह है कि जब वेद अहमद, सहाबा, मुहम्मद के साथियों की तादाद, मक्का की आबादी, उसके सरदारों की गिनती वगैरह बिलकुल ठीक से बताते हैं तो फिर सीधा “मुहम्मद” नाम क्यों नहीं लेते? अल्लाह मियां ने इतनी अफरा तफरी क्यों मचा के रखी है? क्यों नहीं सीधे सीधे इकट्ठे एक ही जगह पर कुछ मन्त्रों में मुहम्मद का नाम और उसकी पूरी सीरत (जीवन चरित्र) डाल देता की काफिरों को यकीन हो जाता कि मुहम्मद ही असली पैगम्बर है और जन्नत की चाबी लिए हुए है?

कुछ आखिरी बातें!

१. क्या अल्लाह को अपने आखिरी रसूल का नाम नहीं पता था कि इशारों में लोगों को समझा रहा था कि ऊँट की सवारी करेगा और ६०००० लोगों को कुचल देगा, वगैरह?

२. अगर हजारों साल पहले ही अल्लाह ने वेद में यह लिख दिया था कि कुछ लोग कुचले जायेंगे और कुछ जन्नत में भेजे जायेंगे तो फिर उसने सबके लिए जन्नत ही जन्नत क्यों नही लिखी?

३. जब वेद की बातें एकदम मुहम्मद (सल्लo) की जिन्दगी से मेल खा रही हैं (जाकिर भाई कि नज़रों में!) तो फिर वेद को इल्हामी किताब मानने में क्या तकलीफ है?

४. अगर वेद इल्हामी है तो जाकिर भाई किताबों के नाम वेद से शुरू न करके तौरेत से क्यों शुरू करते हैं? और कुरान में वेद का नाम क्यों नहीं?

५. अगर वेद इल्हामी नहीं तो झूठी किताब से मुहम्मद और अल्लाह की मजाक उड़ाने की हिमाकत जाकिर भाई ने कैसे की और सब उलेमा इस पर खामोश क्यों हैं?

६. अब जब यह बात खुल गयी है कि वेद में मुहम्मद मानने की कीमत मुहम्मद को एक पूरी कौम का कातिल मानने की है तो क्या अब भी यह सौदा जाकिर भाई को क़ुबूल है?

७. वेदों में मुहम्मद का फलसफा असल में कादियानी मुल्लाओं का है. वैसे भी जाकिर भाई बिना बताये कादियानियों की किताबों से सामान लेकर अपनी किताबें बनाते हैं तो क्या कादियानियों पर उनका घर जैसा हक समझा जाये? अगर ऐसा है तो फिर जाकिर भाई ने आज तक ये राज हमसे क्यों छिपाए रखा कि वो एक कादियानी हैं?
आखिर में हमारी जाकिर भाई और उनके सब साथियों और चाहने वालों से यही गुजारिश है कि सब झूठी भविष्यवाणियों और पैगम्बरों को छोड़ कर अपने असली घर वेद के धर्म में आ जाएँ. जहाँ जन्नत/सुख की चाबी किसी मुहम्मद के पास नहीं पर एक ईश्वर के पास है. जहाँ तारीफ करने के काबिल केवल वही एक ईश्वर है न कि कोई पैगम्बर.
वह एक है, जो कि पूरी कायनात को संभाले रखता है, जो सब के अन्दर घुसा हुआ, सबके बाहर फैला हुआ, हाज़िर नाजिर, बिना जिस्म, सारी कुव्वतों का एक अकेला मालिक, कामिल, न कभी पैदा हुआ, न कभी मरेगा, सदा रहने वाला और सबका सहारा ईश्वर ही है. उसके अलावा और किसी की इबादत हम न करें. [यजुर्वेद]

Admin- Manish Kumar (Arya)

2 comments:

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  2. Ved ke dharm mein kon ishwar hai taarif ke layak? Aur kon hai is dharm mein jiske pas hai sukh-chain ki chabhi ???

    Hume to pta hi nhi hai ki aakhir ved ke dharm mein kon hai asal bhawan.. Har subah yahi sochta hu ki kya Lord Vishnu hai, ya Lord Shiva ya Brahma???

    Kuchh pta nhi chalta...


    Agar aapko itna hi yakin hai ki Ved ke dharm mein koi ek bhagwan, to batana na bhule....

    I am waiting.....

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