Monday 26 October 2015

महाभारत से ही निकला इस्लाम

कुरान की सैकड़ो आयते गीता ,उपनिषदों से चुरायी गयी है..मुफ्ती अब्दुल कयूम की स्वीकारोक्ति.



स्व0 मौलाना मुफ्ती अब्दुल कयूम जालंधरी संस्कृत ,हिंदी,उर्दू,फारसी व अंग्रेजी के जाने-माने विद्वान् थे।
अपनी पुस्तक “गीता और कुरआन “में उन्होंने निशंकोच स्वीकार किया है कि,”कुरआन” की सैकड़ों आयतें गीता व उपनिषदों पर आधारित हैं।

मोलाना ने मुसलमानों के पूर्वजों पर भी काफी कुछ लिखा है । उनका कहना है कि इरानी “कुरुष ” ,”कौरुष “व अरबी कुरैश मूलत : महाभारत के युद्ध के बाद भारत से लापता उन २४१६५ कौरव सैनिकों के वंसज हैं, जो मरने से बच गए थे।


अरब में कुरैशों के अतिरिक्त “केदार” व “कुरुछेत्र” कबीलों का इतिहास भी इसी तथ्य को प्रमाणित करता है। कुरैश वंशीय खलीफा मामुनुर्र्शीद(८१३-८३५) के शाशनकाल में निर्मित खलीफा का हरे रंग का चंद्रांकित झंडा भी इसी बात को सिद्ध करता है।


कौरव चंद्रवंशी थे और कौरव अपने आदि पुरुष के रूप में चंद्रमा को मानते थे। यहाँ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इस्लामी झंडे में चंद्रमां के ऊपर “अल्लुज़ा” अर्ताथ शुक्र तारे का चिन्ह,अरबों के कुलगुरू “शुक्राचार्य “का प्रतीक ही है। भारत के कौरवों का सम्बन्ध शुक्राचार्य से छुपा नहीं है।

इसी प्रकार कुरआन में “आद “जाती का वर्णन है,वास्तव में द्वारिका के जलमग्न होने पर जो यादव वंशी अरब में बस गए थे,वे ही कालान्तर में “आद” कोम हुई।


अरब इतिहास के विश्वविख्यात विद्वान् प्रो० फिलिप के अनुसार २४वी सदी ईसा पूर्व में “हिजाज़” (मक्का-मदीना) पर जग्गिसा(जगदीश) का शासन था।२३५० ईसा पूर्व में शर्स्किन ने जग्गीसी को हराकर अंगेद नाम से राजधानी बनाई। शर्स्किन वास्तव में नारामसिन अर्थार्त नरसिंह का ही बिगड़ा रूप है।

१००० ईसा पूर्व अन्गेद पर गणेश नामक राजा का राज्य था। ६ वी शताब्दी ईसा पूर्व हिजाज पर हारिस अथवा हरीस का शासन था। १४वी सदी के विख्यात अरब इतिहासकार “अब्दुर्रहमान इब्ने खलदून ” की ४० से अधिक भाषा में अनुवादित पुस्तक “खलदून का मुकदमा” में लिखा है कि ६६० इ० से १२५८ इ० तक “दमिश्क” व “बग़दाद” की हजारों मस्जिदों के निर्माण में मिश्री,यूनानी व भारतीय वातुविदों ने सहयोग किया था।

परम्परागत सपाट छत वाली मस्जिदों के स्थान पर शिव पिंडी कि आकृति के गुम्बदों व उस पर अष्ट दल कमल कि उलट उत्कीर्ण शैली इस्लाम को भारतीय वास्तुविदों की देन है।इन्ही भारतीय वास्तुविदों ने “बैतूल हिक्मा” जैसे ग्रन्थाकार का निर्माण भी किया था।
अत: यदि इस्लाम वास्तव में यदि अपनी पहचान कि खोंज करना चाहता है तो उसे इसी धरा ,संस्कृति व प्रागैतिहासिक ग्रंथों में स्वं को खोजना पड़ेगा.

ADMIN-MANISH KUMAR (ARYA)

कुरान को किसने बनाया था?


मुसलमान कुरआन को अल्लाह की किताब यानि ईश्वरीय पुस्तक बताते हैं .और दावा करते हैं कि इसको बनाने वाला मुहम्मद या कोई इंसान नहीं है .जबकि इस बात के कई प्रमाण है कि कुरान के अलग अलग हिस्सों की रचना कई लोगों के द्वारा अलग अलग समय पर की गयी थी .

उन्हीं में से एक व्यक्ति मुहम्मद का उस्ताद “वरका बिन नौफल “भी था .जिसने कुरआन की कई सूरतें
(अध्यायों )की रचना की थी
.


ऐसी ही एक सूरा 19 मरियम भी है .कुरान के गुप्त अक्षरों को खोलने (Decifer ) करने पर कुरान की इस सूरा के लेखक का पता चल गया है .इसके सबूत दिए जा रहे हैं –
अक्सर देखा गया है कि,जब ऎसी किसी महत्वपूर्ण बात को छुपाने की जरूरत होती है तो लोग तरह तरह के गुप्त संकेतों (Code Languages ) का प्रयोग करते हैं .कई बार इस विधि का उपयोग युद्ध के समय किया जाता है ,या लोगों की बुद्धि की परीक्षा के लिए पहेलियों की तरह प्रयोग किया जाता है .ग्रीक ,यहूदी ,ईसाई इस विधि का प्रयोग अक्सर करते आये हैं .क्योंकि इनकी वर्णमाला (Alphabets ) हरेक अक्षर की एक संख्यात्मक कीमत (Numerical Value ) निर्धारित होती है .अर्थात हरेक अक्षर (letter ) एक संख्या (Number )को दर्शाता है .

और कई बार ऐसा भी होता है कि किसी अत्यंत बात को काफी समत तक गुप्त रखने के लिए अक्षरों और संख्याओं के संयोजन से एक कूट शब्द (Code Word ) बना दिया जाता है .कुरान की कई ऐसी सूरा
(Chapters ) हैं ,जिनके प्रारंभ में कुछ अक्षर लिखे हुए हैं .जिनको अलग अलग पढ़ने का रिवाज है ,क्योंकि इन अक्षरों को मिला कर पढ़ने से कोई शब्द नहीं बनता .इसलिए इनको “हुरुफे मुकत्तिआत حُروف مُقطعات (Disjoined Letters )

कहा जाता है मुसलमान इन अक्षरों का अर्थ नहीं जानते हैं ,उन से कहा जाता है कि वह केवल इन अक्षरों पर ईमान रखें .

इसी तरह कुरआन की सूरा संख्या 19 सूरा मरियम की पहिली ही आयत पांच अक्षर लिखे गए है .हम उनकी चर्चा कर रहे है –
वह पांच अक्षरكهيعص इस प्रकार हैं .सूरा -मरियम 19 :
इन अक्षरों को अलग अलग इस तरह पढ़ा जायेगा -(Right to Left ( काफ ,हे ,ये ,ऐन,साद .
इन्हीं पांच गुप्त अक्षरों में सूरा मरियम के लेखक का रहस्य छुपा हुआ है .क्योंकि इस सूरा का लेखक मुहमद का गुरु और मुहमद की प्रथम पत्नी खदीजा का चचेरा भाई वर्का बिन नौफल ورقه بِن نوفل था .
जो ईसाई था मदीना का बिशप भी था .

यह बात लगभग सन 615 की है ,जब मुहम्मद के दुष्ट व्यवहार के कारण मदीना के लोग मुसलमानों की जन के दुश्मन बन गए थे ,और मुसलमानों को मदीना में रहना मुश्किल हो गया था .वह अपनी जान बचने लिए कोई सुरक्षित जगह तलाशने लगे .
उस समय अबीसीनिया (Ethopia ) पर “असमा बिन अल अबजार “का राज्य था जिसे अरबी में नज्जाशी نجّاشي या Negus भी कहा जाता है नज्जाशी कट्टर ईसाई था .वह ईसा मसीह को खुदा का बेटा ,और इलाही الهي यानि अपना प्रभु मनाता था .जबकि मुसलमान ईसा मसीह को सिर्फ एक साधारण सा नबी मानते थे .चूँकि इथोपिया मदीना के पास था ,और वाही एक ऐसी जगह थी जहाँ मुसलमान अपनी जान बचा सकते थे .इसलए मुहमद ने कुछ लोगों को नज्जाशी के पास भेजा ,और उस से मुसलमानों को शरण देने का अनुरोध किया .लेकिन नज्जाशी मुहमद के ईसा मसीह के बारे में विचार जानना चाहता था ,इस लिए उसने मुहम्मद के दूतों को यह कहकर लौटा दिया कि पहिले मुहमद से लिखवा कर लाओ ,कि उसकी किताब (कुरान ) में ईसा मसीह के बारे में क्या लिखा है .
इसलिए मुहम्मद ने अपने गुरु वर्का बिन नौफल से तुरंत एक ऎसी सूरा लिखने को कहा जिसमे ईसा मसीह के बारे में लिखा हो .यह सुनकर वर्का के सामने एक समस्या कड़ी हो गयी .वह ईसाई होने के कारण इसा मसीह को अपना प्रभु मनाता था .वर्का मुहम्मद के क्रूर स्वभाव को जानता था .यदि वह ईसा मसीह को खुदा का बेटा या प्रभु लिख देता तो ,मुहम्मद उसे क़त्ल करा देता ,और अगर वह ईसा मसीह को एक साधारण नबी लिख देता तो उसे ईसाई धर्म से निकाल दिया जाता.और बिशप का पद छोड़ना पड़ता था ,
यही नहीं मरने पर ईसाई कब्रिस्तान में जगह भी नहीं मिलती.इसके लिए वर्का ने एक उपाय निकाल लिया .

पहिले उसने सूरा मरियम के पहिले पांच अक्षर लिख दिए .जिसे मुसलमान नहीं समझ सके .फिर उसने उसी सूरा मरयमمريم में यह आयत भी लिख दी –
“यह है मरयम के बेटे इसा की सच्ची बात जिस पर यह लोग (मुसलमान ) झगडा करते हैं “ذالك عيسي ابن مريم قول الحقّ الّذي فيهِ يمترون सूरा -मरयम 19 :34
इसके बाद जब यह सूरा लेकर अली के भाई जफ़र बिन अबू तालिब और दूसरे मुसलमान नज्जाशी के दरबार में गए और जफ़र ने सूरा मरियम को पढ़ा तो उपस्थित पादरी नौफल के गुप्त अक्षरों का तोड़ (Decifer ) निकाल कर अर्थ समझ गए .कि जरुर यह सूरा (पत्र) किसी अपने ही ईसाई व्यक्ति ने लिखा है .और नज्जाशी ने मुसलमानों को अपने यहाँ रहने की अनुमति दे दी .

अब आपको क्रमश (step by step ) बताते है कि वर्का के दिए गए पांच अक्षरों को किस तरह से खोला
(decifer )किया गया था और वर्का का असली सन्देश क्या था ,जो उसने नज्जाशी को भेजा था

जैसे ही जाफर ने नाज्जाशी के दरबार में सूरा मरियम की पहिली आयत पढी ,तो दरबार में मौजूद ईसाई विद्वान् समझ गए कि इस सूरा में कोई गुप्त सन्देश भेजा गया है .जिसका रहस्य निकालना जरुरी है .इसके लिए अक्षरों की Numerical value निकालनी होगी
1 -यह अक्षर थे -काफ ك =20 +हे ه =5 +ये ي =10 + येन ع + 70 =साद ص =90 .कुल योग =.195
2 -इसके बाद पादरियों ने पांच के दोगुने दस ऐसे अक्षर लिए जिनकी value भी 195 ही हो .और कोई सार्थक शब्द भी बन जाये .

3 -इसके बाद यह दस अक्षर – اअलिफ़ ل लाम م मीम سसीन ي ये ح हे अलिफ़ اलाम ل हे ه ये ي लिए .फिर इनके अंक जोड़ लिए
जैसे -1 +30 +40 +60 +10 +8 +1 +30 +5 +10 =195
4 -अब इन दस अक्षरों से यह शब्द المسيح الهي बन गया .”अल मसीह इलोही “अर्थात “Messiah is my Lord “मसीह मेरा प्रभु है ! ”

इलोही אלֺהיִ हिब्रू शब्द है बाइबिल में इसका जगह जगह ईश्वर या प्रभु और स्वामी के लिए प्रयोग किया जाता है .जैसे ईश्वर के के लिए भगवान भी कहा जाता है
सूरा मरियम के इन पांच अक्षरों रहस्य खुल जाने से यह बात सिद्ध होती है कि कुरान की सूरा मरियम मुहमद के इसाई उस्ताद “वर्क बिन नौफल “द्वारा लिखी गयी थी .

जैसे उसने कुरान की दूसरी सूरतें और आयतें लिखी थीं चूँकि वर्का बाइबिल का विद्वान् था और बाइबिल की कहानियों को मुहम्मद की बोली यानि कुरैश की अरबी में लिखा करता था .इस लिए नाज्जाशी को भिजवाने वाला पत्र (सूरा मरियम ) मुहमद ने वर्क से लिखवाया था .


आज वर्का द्वारा अरबी में लिखी गयी बाइबिल के हिस्से इथोपिया में मौजूद है .इसके बारे में "HINDU RASHTRA" ब्लॉग में दिनांक 9 /8 /2010 को एक लेख “मुहम्मद का उस्ताद वर्का बिन नौफल ‘शीर्षक से प्रकाशित किया गया था .
यह एक निर्विवाद सत्य है कि कुरान कोई ईश्वरीय किताब नहीं है .बल्कि मनुष्यों द्वारा बनाई मनगढ़ंत किताब है जिसे कई लोगों ने मिलकर बनाया है .और कुछ हिस्से बाइबिल से नक़ल किये गए है .

कुछ आयशा ने गढ़ी है जल्द ही इस विषय पर विस्तार से जानकारी दी जाएगी .


अतः कुरान को ईश्वरीय पुस्तक या आसमानी किताब मानने की भारी भूल कदापि नहीं करें .


ADMIN- MANISH KUMAR (ARYA)

ईश्वर ने हमें क्यों बनाया ?



अयं अग्निर्वीर्तमो. (यजुर्वेद १५.५२)
I am Agniveer. I am Best. [Yajurved 15/52]


इस सृष्टि में सर्वत्र व्याप्त अद्बुत नियमितता पर एक दृष्टिक्षेप ही काफ़ी है किसी महान नियंता की सत्ता को प्रमाणित करने के लिए | यह हस्ती इस परिपूर्णता से काम करती है कि वैज्ञानिक भी उसके शाश्वत नियमों को गणितीय समीकरणों में बांध पाएँ हैं | यह महान सत्ता प्रकाश वर्षों की दूरी पर स्थित दो असम्बद्ध कणों को भी
इस सुनिश्चित रीति से गति प्रदान करती है कि गुरुत्वाकर्षण के सार्वभौमिक सिद्धांत का कभी भी अतिक्रमण
नहीं हो सकता है |

वैज्ञानिक जानते हैं कि दो दूरस्थ कण गुरुत्वाकर्षण के नियमानुसार निकट आते हैं – परन्तु वह क्या कारण है जो उन्हें पास आने और योजनाबद्ध तरीके से सम्मिलित रूप में गतिमान होने की प्रेरणा देता है – यह बताने में वैज्ञानिक भी समर्थ नहीं हैं |

इस ब्रह्माण्ड को चलाने वाले ऐसे अन्य अनेक सिद्धांत हैं जिन में से कुछ के गणितीय समीकरणों को आधुनिक वैज्ञानिक बूझ पाएँ हैं, परन्तु अभी भी असंख्य रहस्य विस्तार से खोले जाने बाकी हैं |

अलग-अलग लोग इस हस्ती को अलग-अलग नामों से बुलाते हैं | वैज्ञानिकों के लिए यह ‘सृष्टि के नियम’ हैं,
और ‘वेद’- विश्व की प्राचीनतम पुस्तक उसे अन्य अनेक नामों के साथ ही ‘ओ३म्’ या ‘ईश्वर’ कहती है |

किसी संकीर्ण मनोवृत्ति के अदूरदर्शी एवं छिद्रान्वेषी व्यक्ति को यह संपूर्ण जगत पूरी तरह निष्प्रयोजन लग
सकता है, जो सिर्फ घटनाओं के आकस्मिक संयोग से उत्पन्न हुआ हो | अब यह अलग बात है कि उसका
इस नतीजे पर पहुँचना ही यह प्रमाणित कर रहा है कि  वह इस आकस्मिकता में भी नियमितता और उद्देश्य
को खोजना चाहता है |

बहरहाल, हम इस लेख में उसकी अवास्तविक सोच की चीरफाड़ नहीं करेंगे | हम यहां इस मौलिक प्रश्न पर विचार करेंगे जो कि इस विलक्षण विश्व के सौंदर्य और विचित्रताओं को देखकर अधिकतर यथार्थवादी (अज्ञेयवादी + आस्तिक) व्यक्तिओं के मन में उदित होता है – ईश्वर ने हमें क्यों बनाया?




बहुत से मत-सम्प्रदाय इस मूलभूत सवाल का जवाब देने की कोशिश करते हैं और अधिकतर लोग इसी तलाश में एक सम्प्रदाय से दूसरे सम्प्रदाय की ख़ाक छानते फिरते हैं|

अवधारणा 1 : ईश्वर ने हमें बनाया जिससे कि हम उसे पूजें |

बहुत से धार्मिक विद्वानों का यह दावा है कि उसने हमें इसीलिए बनाया जिससे हम उसकी पूजा / इबादत कर सकें | ये सब अवधारणा इस्लाम और बाइबिल वालो की रही है ??

अगर ऐसा मानें तो –
a. ईश्वर एक दम्भी, चापलूसी पसंद तानाशाह से अधिक और कुछ नहीं रह जाता |

b. यह सिद्ध करता है कि ईश्वर अस्थिर है | वह अपनी आदतें बदलता रहता है इसलिए जब वह अनादि काल से अकेला था तो अचानक उसके मन में इस सृष्टि की रचना का ख्याल आया |

मान लीजिये, अगर हम यह कहें कि, उसने किसी एक समय-बिंदु  ‘t1’ पर हमारी रचना का निश्चय किया |
अब क्योंकि समय अनादि है और ईश्वर भी हमेशा से ही था- इसलिए यह समय ‘t1’ या अन्य कोई भी समय
‘t2’, ‘t3’ इत्यादि समय के मूल (जो की अनंत (infinite) दूरी पर है) से सम-दूरस्थ हैं |

इसीलिए जब वह ‘t1’ समय पर अपनी मर्जी बदल सकता है तो कोई कारण नहीं कि वह ‘t2’, ‘t3’ या अन्य किसी भी समय पर अपनी मर्जी ना बदल सके | साथ ही, यह निश्चय भी नहीं किया जा सकता कि – उसने इस ‘t1’ समय से पहले कभी हमें (या अन्य किसी प्रजाति को) उत्पन्न और नष्ट न किया हो |

जिन सभी सम्प्रदायों का यह दावा है कि अल्लाह ने हमें इसलिए बनाया जिससे कि हम उसकी इबादत कर सकें, वह भी अल्लाह की परिपूर्णता में विश्वास रखतें हैं | यदि अल्लाह पूर्ण है तो वह सभी समय-बिन्दुओं पर अपना काम एक सी निपुणता और एक से नियमों से करेगा |

परिपूर्णता से तात्पर्य है कि वह निमिषमात्र भी अपनी आदतों में बदलाव नहीं लाता | अतः यदि  ईश्वर / अल्लाह / गौड ने हमें ‘t1’ समय पर बनाया है तो अपनी पूर्णता बनाये रखने के लिए उसे हमें अन्य समय-अवधि पर भी इसी तरह बनाना होगा | क्योंकि वह हमें दो बार तो बना नहीं सकता इसलिए उसको हमें पहले विनष्ट करना होगा ताकि फिर से हमें बना सके | अब अगर वह हमें इसी तरह बनाता और बिगाड़ता रहा तो वह यह कैसे सुनिश्चित कर पायेगा कि हम नष्ट होने के बाद भी उसकी इबादत करते रहेंगे |

इसका मतलब तो यह है कि, या तो अल्लाह समय के साथ ही अपनी मर्जी भी बदलता रहता है या फिर उसने हमें इबादत करने के लिए बनाया ही नहीं है|

शंका: जब उसने खुद हमारा निर्माण किया है, तो वह हमें दुःख भोगने पर मजबूर क्यों करता है ?

समाधान - यह सबसे ज्यादा हैरत में डालने वाला सवाल है, जिसका संतोषजनक समाधान कोई भी मत-सम्प्रदाय नहीं दे सके | यह अनीश्वरवाद (नास्तिकता) का जनक है | मुसलमानों में यह मान्यता है कि, अल्लाह के पास उसके सिंहासन के नीचे ” लौहे महफूज” नाम की एक किताब है, जिस में सभी जीवों के भविष्य के क्रिया-कलापों की जानकारी पूर्ण विस्तार से दी हुई है | पर इससे जीवों की कर्म-स्वातंत्र्य के अधिकार का हनन होता है | यदि मेरे कर्म पूर्व लिखित ही हैं, तो मुझे काफ़िर होने की सज़ा क्यों मिले ? और अल्लाह ने पहले से ही “लौहे महफूज” में काफिरों के लिए सज़ा भी क्यों तय कर रखी है ?

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मुलसमान धर्मंप्रचारक इस विरोधाभास का जवाब चतुराई से देते हैं | जैसे की नव्य पैगम्बर जाकिर नाइक इसके जवाब में कहता है, ” एक कक्षा में सभी प्रकार के विद्यार्थी होते हैं | कुछ होशियार होते हैं और प्रथम क्रमांक पाते हैं और कुछ असफल हो जाते हैं  | अब एक चतुर शिक्षक यह पहले से ही जान सकता है कि कौन सा विद्यार्थी किस क्रमांक को प्राप्त करेगा | इसका मतलब यह नहीं होता कि शिक्षक अपने विद्यार्थियों को निश्चित तरीके से ही कार्य करने पर बाध्य कर रहा है |  इसका अर्थ सिर्फ यह है कि शिक्षक यह जानने में पूर्ण सक्षम है कि  कौन क्या करेगा | और क्योंकि अल्लाह सर्वाधिक बुद्धिमान है, वह भविष्य में घटित होने वाली हर चीज़ को जानता है |”
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बहुत ही स्वाभाविक लगने वाले इस जवाब में यह बड़ा छिद्र है – शिक्षक अपने विद्यार्थियों के कार्य का पूर्वानुमान सिर्फ तभी लगा सकते हैं जबकि वह उनके पूर्व और वर्त्तमान कार्यों का मूल्यांकन कर चुके हों | पर अल्लाह की बात करें तो उसने स्वयं ही तय कर रखा है कि कौन विद्यार्थी जन्मतः ही बुद्धिमान होगा और कौन मूर्ख !
हालाँकि, मोहनदास गाँधी का जन्म 2 अक्तूबर 1869  को हुआ था, अल्लाह ने उनके जन्म से लाखों वर्ष पहले ही यह तय कर दिया था कि यह बालक एक हिन्दू रहेगा परन्तु मुस्लिमों के प्रति अत्यधिक झुकाव रखते हुए उनका तुष्टिकरण करने में प्रथम क्रमांक पाएगा और फिर भी काफ़िर ही कहलाएगा और दोजख (नरक) के ही लायक समझा जाएगा, बतौर पवित्र मुस्लिम मुहम्मद अली के |  अतः गाँधीजी के पास उनके लिए पूर्व निर्धारित मार्ग पर चलने के अलावा और कोई चारा ही नहीं था |

यह शिक्षक-विद्यार्थी का तर्क तभी जायज है यदि अल्लाह आत्मा का निर्माण करने के बाद उसे पूर्ण विकसित होने का मौका दे- जब तक वह अपने लिए सही निर्णय करने में सक्षम ना हो जाए; बजाय इसके की अल्लाह पहले से ही “लौहे महफूज” में उनके कर्मों को निर्धारित कर दे | इससे तो अल्लाह अन्यायी साबित होता है|
कृपया “Helpless destiny in Islam” तथा “God must be crazy” इन लेखों का अवलोकन करें |

(ऊपर के दिए हुए "blue" लाइन पर click करे)


अवधारणा 2 : उसने हमें परखने के लिए बनाया है |

हम पहले ही इस धारणा को “God must be crazy” में अनेक उदाहरणों के द्वारा निरस्त कर चुके हैं |  फिर भी यदि यह माना जाए कि वह हमारी परीक्षा ही ले रहा है, तब तो उसके पास “लौहे महफूज” होना ही नहीं चाहिए या यूँ कहें कि तब वह पहले से ही हमारा भविष्य जान ही नहीं सकता | क्योंकि भविष्य जानता है तो परीक्षा की आवश्यकता ही क्या रह जाती है ? और यदि ऐसा कहें कि वह दोनों कार्य कर रहा है तो उसका यह बर्ताव एक निरंकुश तानाशाह की तरह है जिसे तमाशे करना पसंद है |

तो आखिर उसने हमें बनाया ही क्यों ???
इस उलझाने वाले सवाल के जवाब में दी जानेवाली सभी अविश्वसनीय कैफियतों को हम निष्प्रभावी कर चुकें हैं | यदि परखने के लिए नहीं और पूजने के लिए भी नहीं, तो और क्या कारण हो सकता है हमें बनाने का ? यह हमें ख़ुशी या आनंद देने के लिए तो हो नहीं सकता क्योंकि इस दुनिया में बहुत सी निर्दयी और क्रूर घटनाओं को हम घटित होते हुए देखते हैं – यहां तक कि लोग इस बेदर्द दुनिया से तंग आकर आत्महत्या तक कर लेते हैं |
चाहे ख़ुशी देने के लिए हो या दुःख देने के लिए या फिर परीक्षा लेने के लिए हो, उसने हमें बनाया ही क्यों ? क्या वह सिर्फ अपने एकाकीपन का लुत्फ़ ही नहीं उठा सकता था ? क्या जरुरत थी कि पहले हमें बनाये और फिर हमें अपने इशारों पर नचाए | विवश होकर यह कहने के आलावा और कोई रास्ता नहीं बचता कि “अल्लाह बेहतर जानता है”  या  “खुदा जाने”  या  “ईश्वर ही जाने उसके खेल”  या फिर  “गोली मार भेजे में” |

बौद्ध धर्मं प्रयोगात्मक है, वह तो इस सवाल से कोई सरोकार ही नहीं रखता | वह कहता है कि इस प्रकार के प्रश्नों के बारे में सोचने से पहले हमें मन को साध कर इन्द्रिय निग्रह द्वारा अपनी प्रज्ञा का स्तर ऊँचा उठाना चाहिए | दुनिया की चकाचौंध में फंसे हुए व्यक्ति के लिए जो कि इससे परे कुछ भी देखने या समझने में असमर्थ है, यह एक बहुत ही व्यावहारिक सुझाव है | इस सबके बावजूद, हमारे अंतस में कहीं ना कहीं यह प्रश्न सुलगता रहता है

 – ईश्वर ने हमें बनाया क्यों ?
जब तक इस प्रश्न का संतोषप्रद जवाब नहीं मिल जाता – सभी कुछ निरुद्देश्य लगता है और कोई भी चीज़ मायने नहीं रखती |

यह सच है कि इसका सही जवाब सिर्फ ईश्वर ही जानता है परन्तु मानव जाती के प्रथम ग्रंथ – ‘वेद’ इस पेचीदा सवाल पर पर्याप्त प्रकाश डालतें हैं ताकि आगे हम इसकी गहराई में उतर सकें |

वेद स्पष्ट और निर्णायक रूप से कहतें हैं कि ईश्वर ने हमें नहीं बनाया |
और क्योंकि ईश्वर ने हमें कभी बनाया ही नहीं, वह हमें नष्ट भी नहीं करता | जीवात्मा का सृजन और नाश ईश्वर के कार्यक्षेत्र में नहीं आता | अतः जिस प्रकार ईश्वर अनादि और अविनाशी है, उसी प्रकार हम भी हैं | हमारा अस्तित्व ईश्वर के साथ हमेशा से है और आगे भी निरंतर रहेगा |

प्रश्न: यदि ईश्वर ने हमें नहीं बनाया तो वह करता क्या है?
उत्तर: ईश्वर वही करता है जो वह अब कर रहा है | वह हमारा व्यवस्थापन (पालन, कर्म-फल प्रबंधन आदि) करता है |

प्रश्न: तब उसने यह विश्व और ब्रह्माण्ड क्यों बनाया ?
उत्तर: ईश्वर ने इस जगत और ब्रह्माण्ड के हेतु (मूल कारण) का निर्माण नहीं किया | इस जगत का मूल कारण ‘प्रकृति’ हमेशा से ही थी और आगे भी हमेशा रहेगी |

प्रश्न: जब ईश्वर ने इस विश्व को और हमें नहीं बनाया, तो वह करता क्या है – यह एक दुविधा है ?
उत्तर: जैसा पहले बताया जा चुका है, वह हमारा प्रबंधन करता है | विस्तृत रूप में देखा जाए तो – जिस तरह कुम्हार मिटटी और पानी से बर्तन बनता है, उसी तरह ईश्वर इस निर्जीव प्रकृति का रूपांतरण कर यह विश्व / ब्रह्माण्ड बनाता है | फिर वह इस इस ब्रह्माण्ड में जीवात्माओं का संयोजन करता है|

प्रश्न: यह सब वह क्यों करता है ?
उत्तर: यह सब वह करता है ताकि जीवात्मा कर्म करके आनंद प्राप्त कर सके | इसलिए वह जीवात्मा को ब्रह्माण्ड के साथ इस प्रकार संयुक्त करता है जिससे कर्म के सिद्धांत हर समय पूर्णतया बने रहें | इस प्रकार, जीवात्मा अपने कर्मों द्वारा आनंद को बढ़ा या घटा सकता है |

प्रश्न: हमें ख़ुशी देने के लिए उसे इतना प्रपंच करने कि क्या आवश्यकता है ? क्या वो सीधे तौर पर हमें ख़ुशी नहीं दे सकता ?
उत्तर: ईश्वर अपने गुणधर्म के विपरीत कुछ नहीं करता | जैसे, वह स्वयं को न तो कभी नष्ट कर सकता है और न ही नया ईश्वर बना सकता है | जीवात्मा के भी कुछ लक्षण हैं – वह चेतन है, सत् है परन्तु आनंद से रहित है | वह स्वयं कुछ नहीं कर सकता | ये उस मायक्रोप्रोसेसर की तरह है जो सिर्फ मदर बोर्ड और पॉवर सप्लाय से जुड़ने पर ही कार्य कर पाता है |अतः ईश्वर ने कंप्यूटर सिस्टम नुमा ब्रह्माण्ड को बनाया जिससे कि मायक्रोप्रोसेसर नुमा जीवात्मा कार्य कर पाए और अपने सामर्थ्य का उपयोग कर आनंद को प्राप्त करे |

प्रश्न: कर्म का सिद्धांत कैसे काम करता है ?

उत्तर: कृपया ‘FAQ on Theory of Karma’ का भी अवलोकन  करें  | मूलतः जीवात्मा के ६ गुण हैं : इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुःख,और ज्ञान | इन सब के मूल में जीव की इच्छा शक्ति और परम आनंद ( मोक्ष ) प्राप्त करने का उद्देश्य है | जब भी जीवात्मा अपने स्वाभाविक गुणों के अनुरूप कार्य करेगा उसके गुण अधिक मुखरित होंगे और वह अपने लक्ष्य के अधिक निकट पहुंचता जाएगा | किन्तु, यदि वह अस्वाभाविक व्यवहार करेगा तो उसके गुणों की अभिव्यक्ति कम होती जाएगी साथ ही वह लक्ष्य से भटक जाएगा | अतः अपने कार्यों के अनुसार जीवात्मा चित्त (जीवात्मा का एक लक्षण ) की विभिन्न अवस्थाओं को प्राप्त करता है |

ईश्वर जीवात्मा के इस लक्षण के अनुसार, उसे ऐसा वातावरण प्रदान करता है | जिससे उसकी इच्छापूर्ति एवं लक्ष्य प्राप्ति में सहायता हो | अतः परमानन्द कार्यों का परिणाम है, कार्य विचारों का, विचार ज्ञान का एवं ज्ञान इच्छा शक्ति का परिणाम है | इससे विपरीत भी सही है – यदि कार्य गलत होंगे तो ज्ञान कम होता जाएगा – परिणामस्वरूप इच्छाशक्ति घट जाएगी | और जब कोई अत्यधिक बुरे कर्म करे तो ईश्वर ऐसे जीवात्माओं को अ-मानव ( अन्य विविध प्राणी ) प्रजाति में भेजता है, जहाँ वे अपनी इच्छा शक्ति का प्रभावी उपयोग न कर पाएँ | यह जीवात्मा के चित्त में जमे मैल की शुद्धि के लिए है | यह प्रक्रिया मृत्यु से बाधित नहीं होती | मृत्यु इस यात्रा में मात्र एक छोटा विराम या पड़ाव है, जहाँ आप अपने वाहन से उतरकर भोजन पानी से सज्ज हो कर नयी शुरुआत करते हैं |

प्रश्न: इसे एक ही बार में समझना काफ़ी कठिन है , कृपया संक्षेप में समझाइये –

उत्तर:
a) ईश्वर, जीव और प्रकृति तीनों शाश्वत सत्ताएं हैं जो हमेशा से थी और हमेशा ही रहेंगी | यह त्रैतवाद का
सिद्धांत है |

b) ईश्वर कभी जीव या प्रकृति का सृजन अथवा नाश नहीं करता | वह तो सिर्फ एक उत्कृष्ट प्रबंधक की तरह आत्मा और प्रकृति का संयोजन इस तरह करता है ताकि जीव अपने प्रयत्न से कर्म – फ़ल के अनुसार मोक्ष प्राप्त कर सके |

c) हमारे साथ घटित होने वाली सारी घटनाएं दरअसल हमारे प्रयत्न के फ़लस्वरूप हैं जो हम अंतिम क्षण तक करते हैं | और हम अपने प्रारब्ध को हमारे वर्तमान और भविष्य के कर्मों द्वारा बदल सकते हैं |

d) मृत्यु कभी अंतिम विराम नहीं होती | वह तो हमारी अबाध यात्रा में एक अल्प-विराम (विश्रांति) है |

e) जब हम ईश्वर को निर्माता कहते हैं तो उसका अर्थ है कि वह जीव और प्रकृति को साथ लाकर संयोजित एवं व्यवस्थित आकार प्रदान करता है |  वह जीवों की मदद की लिए ही ब्रह्माण्ड की व्यवस्था करता है | अंततः विनष्ट कर के पुनः निर्माण  की नयी प्रक्रिया शुरू करता है | यह सम्पूर्ण निर्माण- पालन- विनाश की प्रक्रिया उसी तरह है जैसे रात के बाद दिन और दिन के बाद रात आती है | ऐसा कोई समय नहीं था  जब  यह प्रक्रिया नहीं थी या ऐसा कोई समय होगा भी नहीं जब यह प्रक्रिया न हो या बंद  हो जाय |  इसलिए, यही कारण है कि वह ब्रह्मा (निर्माता), विष्णु (पालनहार) और  शिव (प्रलयकर्ता) कहलाता है |

f) ईश्वर का कोई गुण नहीं बदलता, अतः वह हमेशा जीव के कल्याण के लिए ही कार्य करता है |

g) जीवात्मा के पास स्वतंत्र इच्छा है, पर वह उसके ज्ञान के अनुसार है जो उसके कर्मों पर आश्रित है | यही कर्म सिद्धांत का मूलाधार है|

h) ईश्वर सदैव हमारे साथ है ।  हमें अपनी अंतरात्मा की आवाज सुननी चाहिए और हर क्षण सत्य का स्वीकार तथा असत्य का परित्याग करना चाहिए | सत्य की चाह ही जीवात्मा का गुण तथा इस जगत का प्रयोजन है |
जब हम सत्य का स्वीकार करने लगते हैं तो हम तेजी से हमारे अंतिम लक्ष्य – मोक्ष की तरफ़ बढ़ते हैं |

सारांश में, ईश्वर ने हमें अभाव से कभी नहीं बनाया – उसने इस अद्भुत संसार की रचना हमारे लिए की, हमारी सहायता करने के लिए की | और हम इस प्रयोजन की पूर्ति – सत्य की खोज करके पूरी कर सकते हैं |
यही वेदों का मुख्य सन्देश और यही जीवन का सार तत्व  है |

प्रश्न: एक अंतिम सवाल – इस बात पर कैसे यकीन करें कि यह सत्य है और कोई नव निर्मित
सिद्धांत नहीं ?

उत्तर: इस पर यकीन करने के अनेक कारण हैं, जैसे –
यहां कही गई प्रत्येक बात वेदानुकूल है | जो कि संसार की प्राचीनतम और अपरिवर्तनीय पुस्तक है | नीचे दिए गये पाठ का अवलोकन करने से आप अनेक संदर्भ विस्तार से देख सकते हैं |

यह सिद्धांत सहज बोध और जीवन के नित्य प्रति के अवलोकन के अनुसार है |
यह आखें मूंदकर किसी सिद्धांत को मानने की बात नहीं है | कर्म के सिद्धांत तो सर्वत्र क्रियान्वित होते हुए दिखायी देते हैं | दूर क्यों जाएं? आप मात्र ३० दिनों तक सकारात्मक, प्रसन्न एवं उत्साही बनकर देखिये | नकारात्मक एवं बुरे कर्मों को अपने से दूर रखिये -और फिर देखिये आप क्या अनुभव करते हैं | इस छोटे से प्रयोग से ही देखिये आप के जीवन में आनंद का स्तर कहां तक पहुँचता है | जिन्हें किसी ने नहीं देखा ऐसे चमत्कार की कहानियों या विकासवाद के सिद्धांत से तो यह अधिक विश्वसनीय है |

वेद उसका अन्धानुकरण करने के लिए कभी नहीं कहते | इस सिद्धांत के इस क्रियात्मक पक्ष को हर विवेकशील व्यक्ति स्वीकार करेगा  – कि ज्ञानपूर्वक सत्य का ग्रहण करें और असत्य को त्यागें | Religion of Vedas में वर्णित अच्छे कार्यों को करें | स्मरण रखें कि वेदों का मार्ग अत्यधिक  संगठित और प्रेरणादायी है | जिसमें विश्वास करने की कोई अनिवार्यता नहीं है |  वेदों का अभिप्राय यह है – जैसे ही आप स्वतः सत्य को स्वीकार और असत्य को छोड़ना शुरू करते हैं चीजें स्वतः आप के सामने स्पष्ट हो जाती हैं | यदि आप इस से आश्वस्त नहीं हैं तो चाहे इसे कुछ भी कहें, पर इससे अधिक तार्किक, सहज- स्वाभाविक और प्रेरणात्मक सिद्धांत और कोई नहीं है – ” ईश्वर हमेशा से है तथा हरदम हमारी  पालन करता है और हमारे कर्म स्वातंत्र्य का सम्मान करते हुए अपने स्वाभाव से हटे बिना, हमारे कल्याण के लिए ही कार्य करता है और हमें अवसर भी प्रदान करता है | ”


नोट: इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए सत्यार्थ प्रकाश के 7 ,8  और 9  वें अध्याय का स्वाध्याय अवश्य करें | 129  वर्ष पुरानी भाषा होते हुए भी इस पुस्तक में अमूल्य एवं अलभ्य सिद्धांत वर्णित हैं |

हिंदी आवृत्ति: http://agniveer.com/wp-content/uploads/2010/09/satyarth_prakash_opt4.pdf
जो व्यक्ति ध्यान पूर्वक इन तत्वों को समझ सके और आत्मसात करे उसे स्वयं के उद्धार के लिए अन्य किसी की आवश्यकता नहीं है |

सत्यमेव जयते!

ADMIN- MANISH KUMAR (ARYA)

Sunday 25 October 2015

ऋषि दयानंद का ही वेद भाष्य सर्वोतम क्यूँ ?


- योगी और वेदार्थ -

वैदिक संस्कृत सम्बन्धी एक सबसे अधिक प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण व्याकरण का नियम अष्टाध्यायी अ० 3 पाद 1 सूत्र 85 में दिया है वह यह है - व्यत्ययो बहुलम्। 
इस सूत्र का अर्थ है कि - वेदों में शब्दादी का बदलना होता है और कहीं विकल्प से होता है और कहीं नहीं
होता है।

[ लौकिक संस्कृत की व्याकरण के अनुसार उस में शब्दादी को बदलना असम्भव है ]
इस अष्टाध्यायी के सूत्र का भाष्य करते हुए महाभाष्य में पतञ्जलि ॠषि ने एक कारिका (एक प्रकार का श्लोक) लिखी है जो वेदों के प्रत्येक प्रेमी को जानना चाहिए जिससे कि स्पष्ट रूप से ज्ञात हो जाता है कि वेदों के शब्दादी में क्या क्या बदल सकता है। वह कारिका निम्नलिखित है :

सुप्तिङुपग्रहलिंगनराणां कालहलच्स्वरकर्तृयङां च।
व्थत्ययमिच्छसि शास्त्रकृदेषांसोsपि च सिध्यति बाहुलकेम।।


अर्थ - शास्त्रकार इनमें (जो नीचे लिखे हैं) यदि(वेदार्थ हेतु) व्यत्यय अर्थात् बदलने की इच्छा करे तो वह बदल सकता है। और वह बदलना सूत्र में जो [बहुलम्] शब्द है उससे सिद्ध होता है।

वेदार्थ हेतु उपरोक्त कारिकानुसार निम्नलिखित बातें बदल सकती हैं -
१. सुप् = सुबन्त अर्थात् कारक (cases) सब बदल सकते हैं सम्बन्ध (अर्थात् possessive case) भी
बदल सकता है। जैसे मानो वेद में रामः=(कर्ता)राम ने लिखा है। तो व्यत्यय से इसका अर्थ और कारकों
में हो सकता है। अर्थात् रामः=रामने का अर्थ निम्न लिखित कार्य कर सकता है अर्थात् 'राम को (कर्म रामम्)' 'रामसे (अपादान रामात्)' 'राम से (करण रामेण)' 'राम में (अधिकरण रामे)' 'राम के लिए (सम्प्रदान रामाय)'
'हे राम (सम्बोधन)' और आप कह सकते हैं कि इस अर्थ में वास्तव में यह शब्द था व्यत्यय करके वेदार्थ कर्ता
ने ऐसा प्रयोग किया है।


२. तिङ् =तिङन्त अर्थात् धातु के रूप बदले जा सकते हैं। अर्थात् क्रिया बदली जा सकती है।

३. उपग्रह = अर्थात् वेद में परस्मैपद धातु का आत्मनेपद और आत्मनेपद का परस्मैपद हो सकता है (यह दो क्रियाओं के रूप चलाने के मार्ग हैं)।
४. लिङ्ग =अर्थात् वेद में स्त्रीलिंग का पुल्लिंग और पुल्लिंग का स्त्रीलिंग, इसी प्रकार इन दोनों का नपुंसकलिंग और उसका यह दोनों बदल कर हो सकते हैं।

५. नर =अर्थात् वेद में पुरुष भी बदल सकते हैं अर्थात् उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष और प्रथम पुरुष, एक दूसरे में परिवर्तित हो सकते हैं।
उदाहरणार्थ:
यजुर्वेद अ० 7 मन्त्र 45 पर महीधर भाष्य में -- मंत्र में 'विपश्य' शब्द लिखा है जिसका अर्थ है
'तू देख'

[अर्थात् मध्यम पुरुष एक वचन आज्ञा imperative mood में ]
परन्तु महीधर लिखते हैं - "विपश्य विपश्यामि विलोकयामि। व्यत्ययो बहुलम् इति उत्तमपुरुषस्थाने पश्येति मध्यमः पुरुषः।।"
अर्थात् उसका अर्थ 'मैं देखता हूँ' ऐसा करते हैं।
६. काल=वेद में वर्तमान, भूत, भविष्यत् एक दूसरे में बदल सकते हैं। जैसे कहीं लिखा हो कि ईश्वर पृथ्वी को धारण किए हुए था, सो वेदार्थकर्ता अर्थ कर सकता है कि ईश्वर पृथ्वी धारण कर रहा है इत्यादि।
७. हल् =अर्थात् व्यञ्जन सब एक दूसरे में बदल सकते हैं द् का ध,क् का प् इत्यादि।
८. अच् =अर्थात् स्वर एक दूसरे में बदल सकते हैं अ का इ, उ का ए, इत्यादि हो सकते हैं।
९. स्वर =उदात्त, अनुदात्त स्वरित् मन्त्रों, के उच्चारण के स्वर (जो मन्त्रों के शब्दों पर लकीरें बना कर लिखे जाते हैं) वह परस्पर बदल सकते हैं।
१०. कर्तृ और यङ् प्रत्ययहार शेष कृदंततद्धितादि और बहुत सी बातें बदल सकती हैं।
अब आप स्वयं विचारें कि जिस भाषा के अक्षर तक बिल्कुल बदल सकते हैं उस भाषा के ग्रंथ अर्थात् वेदशास्त्र के मन्त्रों का यथावत् तात्पर्य्य और अर्थ ईश्वर जो उसका कर्त्ता है या ॠषि जो समाधिस्थ होकर ईश्वर का साक्षात् करते हैं, जान सकते हैं, वस्तुतः ॠषि कोटि का व्यक्ति ही मन्त्रदृष्टा हो सकता है, सिवाय उनके और कौन जान सकता है।

हमारे पौराणिक पण्डित अज्ञानवश प्रायः यह कह उठते हैं कि देखो शब्द का रूप और था परन्तु स्वामी दयानंद ने अर्थ दूसरे रूप के किए।
जैसे परमात्मा की बनाई हुई सब वस्तुओं को यथार्थ रूप में सिवाय योगी के और कोई नहीं समझ सकता,
ठीक उसी प्रकार वेद का अर्थ भी सिवाय योगी के और कोई नहीं कर या समझ सकता है।


स्वामी दयानंद एक वैसे ही अधिकारी पुरुष थे। जितना बुद्धिमान् मनुष्य होगा वैसा ही अर्थ व्याकरण के अनुसार कर सकता है। स्वामी दयानंद बुद्धिमत्ता किस स्तर की थी, सो उनके व मध्यकालीन वेदभाष्यकारों के भाष्य के सहअध्ययन से स्पष्ट हो जाता है।

स्वामी दयानंद का पूर्णतः नैरुक्तिक शैली का वेदभाष्य है। स्वामी दयानंद ने वैदिक व्याकरण का अपने भाष्य में बहुत ही सहारा लिया है। महीधर आदि के भाष्य ऐतिहासिक शैली के भाष्य थे व वैदिक व्याकरण का न्यून सहारा ही लिया, लौकिक संस्कृत व्याकरण का सहयोग लिया, इसलिए स्वामी दयानंद का भाष्य ही विशेष रूप से उत्तम है।

सो ऐसा व्याकरणाचार्य जन उनके भाष्यों के सह-अनुसंधान से समझ सकते हैं।

तीसरी पौराणिक शैली में तो व्याकरण के बिल्कुल विपरीत तात्पर्य्य ही समझा जाता है। यह शैली वस्तुतः वेदार्थ करने की शैली नहीं किन्तु वेदमन्त्रों का अभिप्राय मात्र समझने की शैली है। इस कारण यह बिल्कुल असत्य और धोखा देने वाली है। वेदमन्त्र के किसी एक शब्द को लेकर उसका यथार्थ किए बिना उस सम्पूर्ण मन्त्र का अभिप्राय समझा जाता है। यथा पं० बालकराम, पं० ज्वालाप्रसाद आदि के भाष्यार्थ। जैसे यजुर्वेद अ० १७ के ४६ वें मंत्र "प्रेता जयता नर....... " के 'प्रेत' शब्द से पिण्डदोक क्रिया आदि में सहायता लेते हैं। अधिक नहीं लिखता। मनीषी लोग इनकी धूर्तता सरलता से पकड़ सकते हैं।


सो विद्वत् जन निर्णय लें कि सायण, महीधर, मैक्समूलर,पं श्रीराम शर्मा (महीधर के अनुयायी), ज्वालाप्रसाद,अम्बिकादत्त इत्यादि के भाष्य हेय क्यों हैं।

Admin- Manish Kumar (arya)

बिना दूध देने वाली गाय भी कामधेनु है |

अभी तक के संसोधन ये पता चला है की " एक रोड पे बेकार फिर रही गाय -- इस भारत देश को बेरोजगार मुक्त , और एक आम आदमी को करोड़-पति , और  देश को प्रदुषण मुक्त , और देश की
आर्थिक स्थिति को हिमालय की उचाई तक ला सकती है ।

अब ज़रा सोचिये मैं सिर्फ बिना कोई काम का रोड पर घूम रहे हुए गाय की बात कहा ।
हमारे देश में " गाय " एक "राष्ट्रिय पशु" के जगह "राजनैतिक पशु" बन गया है ।


आज मैं आपको गाय के राजनैतिक शास्त्र के अलावा गाय के आर्थिक शास्त्र  और सामाजिक शास्त्र  को देखते हुए भी 100 % शुद्ध DNA TEST करेंगे ।

जो ये साबित करेगा की गाय को मारने से ज्यादा फायदा --- गाय को ज़िंदा रखने में है ,गाय का दूध हो या गोबर हो या गौ मूत्र ,गाय मरते दम तक समाज की भलाई का काम निष्काम भाव से करती है , और इसीलिए वेद -पुराणो में गाय को कामधेनु कहा गया है।
गाय का दूध कई तरह के रोगो को रोकने और उनके उपचार में काम आता है ,
और गाय ही मनुष्य के आस -पास एक ऐषा प्राणी है ,जिसका मल -मूत्र भी पवित्र और उपयोगी माना जाता है।  वैज्ञानिक रिसर्च में ये साबित हुआ है की ,गाय के दूध में प्रोटीन ,कार्बोहाइड्रेट्स ,मिनरल्स और विटामिन डी  होता है , जो रोग -प्रतिरोगक छमता ,मानसिक विकास में सहायक होता है

ये भी माना जाता है ,की यज्ञ और हवन के दौरान गाय  के दूध के घी का आहूति इसीलिए दिया जाता है क्योकि इससे हवा में ऑक्सीजन का लेवल बढ़ता है , वैज्ञानिक रिसर्च में ये भी साबित हुआ है की गौ मूत्र में मौजूद तत्वों का सेवन कैंसर और टीवी जैसे बीमारियो में फायदेमंद होता है ,पेट सम्बन्धी बीमारियो में भी आयुर्वेद गौ मूत्र की सेवन की सलाह देता है

और आपको ये बात जानके हैरानी होगी की अमेरिका ने गौ मूत्र उत्पादों से जुड़े 4 पेटेंट ले लिए है  । अमेरिका हर वर्ष भारत से गौ मूत्र आयात करता है ,और उससे कैंसर की दवा बनाता है ,गाय का गोबर भी गौ मूत्र की तरह मूलयवान होता है ,रासायनिक खाद के बदले गोबर से बनी प्राकृतिक खाद कृषि योग्य भूमि की नमी 50 फीसदी तक बढ़ जाती है ,जिससे फसल अच्छी उगती है , गाय की गोबर से बनी बायोगैस अमेरिका और जर्मनी जैसे देशो में गाड़ियों  ईंधन के तोड़ पर इस्तेमाल हो रही है और मसहूर कार निर्माता कंपनी toyota गाय के गोबर से हाइड्रोजन fuel बनाने के तकनीक पर भी इस वक्त काम कर रही है ,यही वजह है की गाय को काम धनु कहा जाता है ।

अब हम आपको इसी गाय के कामधेनु अवतार का पवित्र DNA TEST  दिखाते है ।
इस विश्लेषण को देखने के बाद आप खुद ये तय कर पाएंगे गाय को ज़िंदा रखने में ज्यादा फायदे है
या फिर मार देने में ?


गाय माता व् माँ होने के अलावा वो काम-धेनु है , जो इस देश से बेरोजगारी को ख़त्म कर सकती है ।
गाय वो जानवर है जो इस देश में पेट्रोल ,और डीजल की कीमतों को जमीन पर ला सकती है ,
गाय वो पशु धन है जो इस देश के लाखो गरीब किसानो को आमिर बना सकती है ,कैसे ?
 पिछले हफ्ते दादरी में हुई हिंसा "अख्लाख़-दादरी काण्ड" , और गाय को बचाने में अपनी जान गवा देने
वाले सब-इंस्पेक्टर मनोज कुमार मिश्रा  लेकर बीफ पार्टी मनाने वाले के मूह पे कालिख पोतने  तक की
घटनाओ को देखा ??

देश को शर्मसार करदेने वाली ऐशी घटनाओ को देख कर लगने लगा की एक गाय सिर्फ दो ही कामो के
लिए है ?  या तो पूजा करने के लिए या फिर काट के खाने के लिए। …


लेकिन आप ये जान के हैरान हो जाएंगे की जो गाय दूध नहीं दे पाती ,जिसके हाथ पैर बेकार हो चुके है ,
जिसे बेकार समझ कर रोड पर छोड़ दिया जाता ,जिसे सिर्फ 5 से 6 हजार के लिए मांस का टुकड़ा समझा
जाता है ??

" वो गाय हर महीने एक बेरोजगार को सिर्फ गोबर और गौ मूत्र से 8 -10  हज़ार रूपये का रोजगार दे सकती है (हर महीने) "


देखिये गौ शाला चलाने वाले आनंद राज जी के कथन,प्रधान ,लाडलू गौशाला ,हिसार ।
"गाय का मूत्र 10  रूपये लीटर से भी बेचे तो 10 लीटर के 100  रूपये हो जाते है । और इस हिसाब से सिर्फ
एक गाय महीने के 8-10 हज़ार रूपये घर बैठे दिलवा देती है , ये सिर्फ नाकारा हुआ गाय से फायदे है ,जो
लोगो के नजरो में कोई काम की नहीं दिखती हो ??

अगर दूध भी देती है तो इनकम का तो बता नहीं सकते । सिर्फ एक गाय के ये सब फायदे है ,
चाहे कैसा भी गाय हो ??


ज़रा सोचिये रोड पे बेकार घूमती हुई गाय आपके लिए महीने के 8-10 हजार रूपये का  ATM मशीन है ।

हरियाणा का ये गौ शाला देखिये , इसमें 1180 गाय हैं , जो दूध बिलकुल भी नहीं देती ,सिर्फ गोबर और गौ मूत्र देती है , और यही गोबर और गौ मूत्र 200 से ज्यादा लोगो को रोजगार दे रखी है ।

ये देखिये सिर्फ बेरोजगार गाय से BUSINESS बना के , इनका साल का INCOME 3.5 करोड़ है ???
गौर से देखिये 3.5 करोड़ रूपये ????

इनका कहना है गाय एक चलती फिरती सस्ती फैक्ट्री है जो किसी भी बेरोजगार को घर बैठे CROREPATI
बना सकती है । बेकार कहे जाने वाले गाय को पालिए और मार्केटिंग करिये ।


देखिये गौ मूत्र में कुछ आयुर्वेद विज्ञान लगाने के बाद गौ मूत्र 250 रूपये / लीटर बिकती है ???


हम बस ये बताना चाह रहे है की देश में न जाने कितने लोग बेरोजगार घूम रहे होंगे ??
सामने न जाने कितने बेकार गाय घूम रही होगी ?? अगर ये दोनों मिल जाए तो दोनों का
भला हो जाएगा ।


यानी दूध देना बंद करने के बाद भी गाय कामधेनु बनी रहती है । ये लोगो के लिए न सिर्फ पैसे कमाने का जरिया बनती है बल्कि लोगो का जान भी बचाती है ।

यहाँ देखे , cancer , HIV , Hypotytis B  etc  बीमारियो का 99 % तक ठीक कर देंने का gauranty
पेपर में लिख के दिया जाता है । और इनका कहना है इन्होने गौ मूत्र और आयुर्वेद से अभी तक 100 %
रिजल्ट दिया है । इनका कहना है की हमारे पास पेसेंट को छोड़ दे हम sign करके देंगे की पेसेंट यहाँ 
पूरी तरह से ठीक होके ही जाएगा । यहाँ गौ पद्धाती से इलाज होता है ।

बहुत ही शर्म की बात है की आज पूर्व न्यायाधीश या विधायक सरेआम बीफ खाने का दम भरता है ?
सवाल उठता है , भरकाऊ tweet और लोगो की भावना को आहात पहोचाने के अलावा लोगो की
बेरोजगारी को इस गौ-सेवा पद्धति द्वारा समझा के उनके दुःख दूर नहीं कर सकता ???


गाय का फायदा सिर्फ गौ मूत्र तक ही नहीं है , गाय के गोबर से बनने वाली खाद का तो सबको पता ही होगा ।
जहा गंध होगा ,गोबर होगा वहा मक्खियाँ  ,मच्छर इतियादी आएंगे ही ??
पर यहाँ देखिये गाय के गोबर से बन रही खाद में एक भी मच्चर या मक्खियाँ नहीं है ?

इसकी खेतो में सिचाई से कीड़े मकोड़े सब फसल से दूर भागता है , फसल को बचाने में गाय का गोबर से
बनी खाद बहुत सहायक है ।


अब इससे भी बचे हुए पदार्थ bio -water पर आते है , आप इसे उस तरह से समझ सकते है जैसे गन्ने वाला गन्ने से कितने बार जूस निकालता है ।




ये डॉ संजीवनी है आईये इनकी कथन सुने ,

" खाद  बनने के बाद जो बायो प्रोडक्ट बनता है , इस प्लांट में सॉलिड जो गोबर है उसको अलग निकाल दिया जाता है , और जो liquid water  है उसको अलग निकाल दिया जाता है , जो liquid  water है , उसको यहाँ से टैंक में भर के ले जाते है ,और अपने फॉर्म पर टैंक बनाये हुए है ,उसमे बायो water  को डालते है ,और बैक्टीरिया हम culture करते है ,और वो बॅक्टेरिया हम जब सिचाई करते है ,तो सिचाई के साथ ही हम ये बक्टेरिआ को बायो वाटर के साथ दे देते है ,जो की खेत में चला जाता है ,और खेत में जाने के बाद जो uria हम  है ?जिससे माइक्रोब्स मर गए तो हमने उसको बैक्टीरिया दे दिया ,बेक्टिरया खेत में जाएगा और वो जो अपना काम करेगा , माइक्रोबियल लोड यानी की जो सूक्षम जीव है ज्यादा हो जाएंगे तो जो उसमे केचुवा है वो भी बढ़ रहा है और इससे मिट्टी की हेल्थ अच्छी हो रही है "
ये सब के लिए कोई प्लांट का भी जरुरत नहीं , आम किसान ये  घरो में भी बना सकता है वो भी निशुल्क ।

अफ़सोस की बात है की मिडिया में गाय के मांस खाने व् न खाने को लेकर तो  चर्चा हुई , एक ने तो आग में घी डालते हुए ?? गाय के मरने के बाद की फायदे तक गिना दिए ?? लेकिन गरीबी से खुदखुशी करते किसानो को
ये गाय कैसे बचा सकती है ?? ये किसी ने नहीं बताया ।

वैज्ञानिक रिसर्च के अनुसार गाय ग्लोबल वार्मिंग काम करने में असर दार साबित हो सकती है ।
Alensabry की Research -
एक किलो गाय का गोबर जिस जमींन में पर जाता है , जमीन में 9 लीटर तक पानी सकने की छमता बढ़
जाती है ।

आप imazine करिये एक गाय एक ही जगह पर 8-10 किलो गोबर छोड़ रही है तो, 100 लीटर पानी  moisture के रूप में absorb रहेगा और अगर साल साल ऐषा ही चलते रही तो irrigation water की जरुरत ही नहीं पड़ेगी , दूसरी बात जब वहा moisture होगी तो greenry होगी , यह भूमि को fertilize  भी कर रही है ।
आने वाला समय में गाय का गोबर CNG के रूप में पेट्रोल और डीजल का दुसरा विकल्प  बन सकता
है । इसपर एक प्रोजेक्ट भी शुरू हो गया है ।

 गोबर से बानी नयी तकनीक पर गाड़िया भी भविष्य में चलने जा रही है , CNG तकनीक से । अभी भी छोट- स्तर  पर शुरू हो गयी है ।
methane gas (ch4 )---- गाय के गोबर से 95 % methane gas प्राप्त हो रही है ।

भारत में जितने भी साधन है (गौशाला)  उससे , 85 मिलियन std cubic meter per DAY GAS निकलेगी
और उससे ज्यादा निकलेगा गोबर ,गोबर से बायो कम्पोस्ट , और ये कम्पोस्ट urea  से 10 times अच्छा खाद
है खेतो के लिए । इससे मिटटी की उर्वरक शक्ति हमेसा कायम रहती है , मतलब एक खाद में काम आया
और दुसरा gas भी  निकली । और इस gas में इतनी ताक़त है की पूरे भारत में जितने भी तरह के गाड़िया है ,
बड़े -छोटे सभी गाड़िया ये आराम से चला सकती ।


इतना ही नहीं महँगी होती LPG के जगह आप गोबर से बानी सस्ती bio gas से भी खाना बना सकते है ।
फिलहाल तो उए तकनीक बरी बरी होटल रेस्टोरेंट में उपयोग हो रही है , अगर गाय बची तो आपके घर
तक भी ये तकनीक पहुचेगी ।


  • बिना झंझट का सीधे आपको खाना बनाने के लिए प्राप्त होगी ।
  •  LPG के मुकाबले आपको बहुत ही सस्ती मिलेगी ।
  • power generation में काम आएगी ।
  • खेती के लिए सर्वोत्तम , खेत कभी भी बंजर नहीं होगी ।
  • घर बैठे लखपति ,करोड़पति बन सकते है ।
  • बेरोजगारी खत्म होगी
  • छोटे मोटे धंदे वाले (रोड पर समोसा ,जलेबी बेचने वाले ) भी इसका आराम से उपयोग कर सकेंगे ।
  और अगर सरकार ध्यान दे तो- खेती,ऑटोमोबाइल सेक्टर में गाय के गोबर का बड़ा योगदान रह सकता है ।

अब आप ही बताईये हम किसको गोबर कहे ? गाय के गोबर को कहे या उन विधायक लोगो की बुद्धि को
गोबर कहे जो गाय पर लड़ रहे है और पूरी दुनिया के सामने देश की छवि का ,संस्कृति का गुर-गोबर कर
रहे है ??


ADMIN -Manish Kumar (आर्य) 


Saturday 24 October 2015

कुरान में चन्द्रमा के पास खुद का प्रकाश है ? part -3


Moon Emits Light ?
चन्द्रमा से प्रकाश का उत्सर्जन ?

चन्द्रमा के पास खुद का रोशनी नहीं है , वो तो सिर्फ सूर्य का  रोशनी  "चन्द्रमा" से "reflect" होक धरती तक पहुँचती है । "reflected" का अरबी word होता है "(in`ikaas)" ?? जो की दिए गए क़ुरनिक आयत में नहीं है ।


[[देखे क़ुरआन 71:16]]  ………

وَجَعَلَ الْقَمَرَ فِيهِنَّ نُورًا وَجَعَلَ الشَّمْسَ سِرَاجًا
Wa ja'alal qamara feehinna nooranw wa ja'alash shamsa siraajaa
And hath made the moon a light therein, and made the sun a lamp?
 "और उनमें चन्द्रमा को प्रकाश और सूर्य को प्रदीप बनाया ?

{.....feehinna nooranw.....} ?? ऊपर गौर से देखिये , चन्द्रमा के लिए "(in`ikaas)" शब्द नहीं आया है ।
बल्कि "noor" आया है । "Noor" उसके लिए denote किया जाता है , जो entinity खुद light emit करता है ।
अर्थात जो स्वयं प्रकाश देता है । example - stAR , sUN , a/q to qu'ran Allah ?
The word "Noor" is also used in this verse to show that Allah is the "light" of the universe.
Clearly the author is not implying that Allah reflects light from another source but is the source
of the light.


ये " नूर " शब्द अल्लाह के लिए भी आया है , क़ुरआन 24:35 में , जो बता रहा की---- " अल्लाह आकाशों और धरती का प्रकाश है।  उसके प्रकाश की मिसाल ऐसी है जैसे एक ताक़ है, जिसमें एक चिराग़ है - वह चिराग़ एक फ़ानूस में है। वह फ़ानूस ऐसा है मानो चमकता हुआ कोई तारा है " ??

नोट -- क़ुरआन में ये कही भी नहीं लिखा हुआ है की "अल्लाह किसी अन्य स्रोत से प्रकाश को दर्शाता है ?? बल्कि ये लिखा जरूर है की अल्लाह स्रोत है प्रकाश की ??
[देखे क़ुरआन 24:35]
Allaahu noorus samaawaati wal ard; masalu noorihee kamishkaatin feehaa misbaah; almisbaahu fee zujaajatin azzujaajatu ka annahaa kawkabun durriyyuny yooqadu min shajaratim mubaarakatin zaitoonatil laa shariqiyyatinw wa laa gharbiyyatiny yakaadu zaituhaa yudeee'u wa law alm tamsashu naar; noorun 'alaa noor; yahdil laahu linoorihee mai yashaaa'; wa yadribul laahul amsaala linnaas; wallaahu bikulli shai'in Aleem

अन-नूर (An-Nur):35 - अल्लाह आकाशों और धरती का प्रकाश है।  उसके प्रकाश की मिसाल ऐसी है जैसे एक ताक़ है, जिसमें एक चिराग़ है - वह चिराग़ एक फ़ानूस में है। वह फ़ानूस ऐसा है मानो चमकता हुआ कोई तारा है। - वह चिराग़ ज़ैतून के एक बरकतवाले वृक्ष के तेल से जलाया जाता है, जो न पूर्वी है न पश्चिमी। उसका तेल आप है आप भड़का पड़ता है, यद्यपि आग उसे न भी छुए। प्रकाश पर प्रकाश! - अल्लाह जिसे चाहता है अपने प्रकाश के प्राप्त होने का मार्ग दिखा देता है। अल्लाह लोगों के लिए मिशालें प्रस्तुत करता है। अल्लाह तो हर चीज़ जानता है।


Note- मोहम्मद को लगता था की चाँद खुद प्रकाश देता है । स्वाभाविक है किसी को भी उस वक्त लगता ,  क्योकि ये सब जानकारी अरब के देशो तक ठीक से नहीं पहुँची थी ।

वेदो में सारे जानकारी कही न कही मिलते रहती है । चुकी वेदो में 20,000 से ज्यादा verse है , तो search करना इतना आसान नहीं फिर भी कोशीश जरूर करूंगा की अभी आपको कोई example वेदो से दिखा सकू सकू, बिलकुल मिलता जुलता ।

LIGHT OF MOON

Rig Veda 1.84.15
“The moving moon always receives a ray of light from sun”
[[moov करता हुआ moon हमेशा सूर्य से रोशनी लेता है ]]

Rig Veda 10.85.9
“Moon decided to marry. Day and Night attended its wedding. And sun gifted his daughter “Sun ray” to Moon.”
[[ यहाँ पे अलंकार है , शब्दों को सजाया गया है - " जो बता रहा है की सूर्य अपनी रोशनी चाँद को देता है ,चाँद के पास खुद की रोशनी नहीं है ]]

ECLIPSE
Rig Veda 5.40.5
“O Sun! When you are blocked by the one whom you gifted your own light (moon), then earth gets scared by sudden darkness.”
[[ यहाँ भी शब्दों को सजाने के लिए अलंकार है । ये verse "ग्रहण " को दर्शा रहा है , यहाँ पे बताया जा रहा है  की जब चाँद "सूर्य और पृथ्वी " के बीचो बीच आ जाता है तो  पृथ्वी पर  sudden अँधेरा छा जाता है ]] जो की साफ़ -साफ़ indicate कर रहा है की चन्द्रमा का खुद का प्रकाश नहीं है ।


मैं ये ब्लॉग किसी भी सम्प्रदाय को दुःखी करने नहीं बना रहा बल्कि सत्य की और लाने का बस छोटा सा प्रयास
है, सत्य को जाने, सत्य को पहचाने और सत्य की ओर लोट चले ।

सत्य सनातन वैदिक धर्म की ओर ... वेदो की ओर लोट चले। … आर्य बने और आर्य बनाये ।
कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम (अथर्वेद)


एकमात्र वेद ही है जो आदि सृष्टि में आके ज्ञान के प्रकाश के रूप में सम्पूर्ण मानव जाति की भलाई के लिए आया। हमें वेदो का सम्मान करना चाहिए , यह हमारे लिए परमात्मा का दिया हुआ "बहुमूल्य रत्न" से कम नहीं ।




ADMIN- Manish Kumar (आर्य)

Friday 23 October 2015

क़ुरआन में सूर्य "पृथ्वी" के चक्कर लगाती है (part -2)



क्या सूर्य "पृथ्वी" के चारो और चक्कर लगाती है ?

क़ुरआन में बहुत बार आया है , की सूर्य और चन्द्र एक कक्षा में घुमते है । पर कही भी ये नहीं लिखा हुआ है , की पृथ्वी भी कक्षा में घूमती है ??? ये सीधा -सीधा संकेत दे रहा है की मोहम्मद को लगता था , की पृथ्वी पूरे ब्रह्माण्ड के बीचो -बीच स्थिर है और सूर्य के साथ -साथ सभी "heavenly bodies" पृथ्वी के चारो और चक्कर लगाती है ।
अब इस बात की पुष्टि किया जाएगा , की सच्चाई क्या है ??

//////// (Quran from Android Market)
या-सीन (Ya-Sin):37 - और एक निशानी उनके लिए रात है। हम उसपर से दिन को खींच लेते है। फिर क्या देखते है कि वे अँधेरे में रह गए ।
या-सीन (Ya-Sin):38 - और सूर्य अपने नियत ठिकाने के लिए चला जा रहा है। यह बाँधा हुआ हिसाब है प्रभुत्वशाली, ज्ञानवान का ।
///////
नोट- या-सीन (Ya-Sin):38 - और सूर्य अपने नियत ठिकाने के लिए चला जा रहा है ?? यह वाक्य इशारा कर रहा है की सूर्य अपने ठिकाने से कही जा रहा है ??? अब देखते है क्या सच में मोहम्मद  ये सोचता था की सूर्य पृथ्वी के चारो और चक्कर लगाती है ???

अब देखे -
सहीह मुस्लिम 1:297 :- रात में सूरज कहाँ रहता है ?
 हदीस के अनुसार अस्त होने के बाद सूरज रात भर अल्लाह के सिंहासन के नीचे छुपा रहता है
"अबू जर ने कहा कि एक बार रसूल ने मुझ से पूछा कि क्या तुम जानते हो कि सूर्यास्त के बाद सूरज कहाँ छुप जाता है , तो मैंने कहा कि रसूल मुझ से अधिक जानते है . तब रसूल ने कहा सुनो जब सूरज अपना सफ़र पूरा कर लेता है ,तो अल्लाह को सिजदा करके उसके सिंहासन के कदमों के नीचे छुप जाता है .फिर जब अल्लाह उसे फिर से निकलने का हुक्म देते है , तो सूरज अल्लाह को सिजदा करके वापस अपने सफ़र पर निकल पड़ता है .और यदि अल्लाह सूरज को हुक्म देगा तो सूरज पूरब की जगह पश्चिम से निकल सकता है |

(sahi-bukhari jild 2 kitaab 15 hadees 167)

Reference के लिए ये भी देखे -
[Sahih Muslim 1:297 (for the Arabic and English of this hadith, click  here)]
जहाँ  पे "here" लिखा हुआ है , वहा पे click करे । 

यहाँ पे अभी भी मोमिन भाई लोगो को शायद विस्वास न होगा , क्योकि उसके दिमाग में बैठ गया है की क़ुरआन की आसमानी किताब है । 

चलिए क़ुरआन की ओर आयतो को ऊपर के दिए हुए हवाले से मिलाते है ----

///////या-सीन (Ya-Sin):40 - न सूर्य ही से हो सकता है कि चाँद को जा पकड़े और न रात दिन से आगे बढ़ सकती है। सब एक-एक कक्षा में तैर रहे हैं । ///////
नोट - यहाँ सूर्य भी तैर रही है , और चाँद भी ??  यहाँ पे अल्लाह कह रहा है की सूर्य "चाँद" को नहीं पकर
सकती ,दोनों अपने अपने कक्षा में तैर रहा है ।

इसको हम इस example से समझ सकते है -

" जैसे मान लीजिये कुत्ता (moon)और whale  मछली (sun) दोनों समुन्द्र में race लगाए , और whale मछली(sun) आगे तैर के निकल जाए , और कुत्ता (moon) उसके पीछे -पीछे race में रहे । यहाँ पे कुत्ता (moon)भी तैर के आगे जा रहा है और whale मछली (sun) भी , पर ऐसा कोई समय नहीं आता है की कुत्ता(moon) "whale मछली (sun)" के पास पहुँच के उसके साथ -साथ swim करे और काटे की टक्कर हो ?


///////अश-शम्स (Ash-Shams):1 - साक्षी है सूर्य और उसकी प्रभा,
अश-शम्स (Ash-Shams):2 - और चन्द्रमा जबकि वह उनके पीछे आए,//////
नोट- जैसा की मैंने ऊपर example के साथ समझाया की "सूर्य भी यहाँ चल रही है और चाँद भी" ये दोनों मिलके पृथ्वी के चारो और चक्कर लगाती है (ऐसा क़ुरआन का कहना है) अश-शम्स (Ash-Shams):2 - और चन्द्रमा जबकि वह उनके पीछे आए ??

देखिये सूर्य आगे निकल रहा है और चन्द्रमा उसको पीछा कर रहा है ??
स्वाभाविक है की आप पीछा उसी का कर सकते है , जब आगे वाला कही move करे । यहाँ moon किसके पीछे जा रहा है ?? सूर्य के पीछे । यहाँ और भी साफ़-साफ़ संकेत है की सूर्य आगे कही जा रहा है और उसके पीछे चाँद जा रहा है ।

/////अल-अंबिया (Al-'Anbya'):33 - वही है जिसने रात और दिन बनाए और सूर्य और चन्द्र भी। प्रत्येक अपने-अपने कक्ष में तैर रहा है ।/////
नोट - यहाँ भी दोनों कही swim करके आगे निकल रहा है ।
क्युकी swimming एक जगह  खरे होक नहीं होती , SWIMMING करियेगा तो BODY move करेगी ही । 
ये अलग बात है की ज़ाकिर नाइक जैसा शातिर क़ुरआन की कुछ आयतो को छुपा लेता है और कोई एक आयत को दिखा के उसका मीनिंग चेंज करने का कोसीस करता है ।

अब इसे भी समझते है -
////////अल-कहफ़ (Al-Kahf):86 - यहाँ तक कि जब वह सूर्यास्त-स्थल तक पहुँचा तो उसे मटमैले काले पानी के एक स्रोत में डूबते हुए पाया और उसके निकट उसे एक क़ौम मिली। हमने कहा, "ऐ ज़ुलक़रनैन! तुझे अधिकार है कि चाहे तकलीफ़ पहुँचाए और चाहे उनके साथ अच्छा व्यवहार करे।"///////
//////अल-कहफ़ (Al-Kahf):90 - यहाँ तक कि जब वह सूर्योदय स्थल पर जा पहुँचा तो उसने उसे ऐसे लोगों पर उदित होते पाया जिनके लिए हमने सूर्य के मुक़ाबले में कोई ओट नहीं रखी थी/////

--------- ये इतिहास है यहाँ पे , मोहम्मद ने इसे क़ुरआन में लिखवा दिया , पर ये बात को साफ़ नहीं किया  की ऐशा नहीं होता , अर्थात सूर्य कही भी नहीं जाती , बल्कि पृथ्वी "सूर्य " के चक्कर लगाती है ,इसीलिए ऐसा लगता है की सूर्य कही पे जाके अस्त होती है और अगले दिन दूसरे जगह से फिर से उगती है ।
जैसा की मैंने ऊपर इतने प्रमाण से बताया की "मोहम्मद" को भी लगता था की सूर्य चलायमान है और पृथ्वी के चारो और चक्कर लगाती है ???


ऊपर के सारे प्रमाण क़ुरआन और हदीस से ठीक से पढ़े और विचार करे , क्या मैंने क़ुरआन को कही पे भी
misqyote करने का कोसिस किया ??? बिलकुल भी नहीं , मैंने प्रमाण अनेक तरह से सिर्फ आपके समक्ष
रखा हूँ , क़ुरआन की आयते को आप कही भी मिलाये , मैंने क़ुरआन android market से download
किया है ।

अब फिर भी मोमिन भाई नहीं माने और आँख बंद करके ईमान लाये ??
तो निचे देखिये खुद सऊदी अरब के विद्वान का कथन ---

Saudi cleric claims Sun rotates around the Earth



Saudi cleric claims sun revolves around earth: Proposes geo-centric Islamic theory on Galileo's birthday
A screengrab from the video posted on YouTube shows Saudi cleric Sheikh Bandar al-Khaibari claiming that the Earth is stationary and the sun revolves around it
Saudi cleric claims Sun rotates around the Earth
नोट- असलियत में पृथ्वी "सूर्य" की चारो ओर चक्कर लगाती है , न की सूर्य "पृथ्वी" के चक्कर ???
अब मोहम्मद ने वही बोला जो उसको अरब की धरती से वैसा प्रतीत दीखता था , उसने बस उसमे थोड़ा मन-गलन कहानी जोड़ दिया ।  हमने यहाँ पहले क़ुरआन की आयतो को देखा फिर हमने प्रामाणिक हदीस
में देखा । क्योकि क़ुरआन में अल्लाह (a fake character by mohammad,who does not exist)
वही बोलता है ,जो मोहम्मद को पता रहता है या जिस चीज़ की मोहम्मद को जरुरत रहती है ।


या हो सकता है की ये मान्यताए मोहम्मद ने बाइबिल से कॉपी किया हो , क्युकी यही मान्यता उस समय तक बाइबिल की भी थी । यही कारण रहा की "गैलीलियो( astronomer )" को ईसाई पादरियों ने सज़ा देके जेल में दाल दिया था ?? क्योकि गैलीलियो ने अपनी खोज में बताया की "पृथ्वी" सूर्य के चारो और चक्कर लगाती है ।
जो की आज की विज्ञान और वेदो की द्रिष्टि से सत्य  बात है ।


वेदो में कोई भी किसी भी तरह का ERROR नहीं है । इसी ब्लॉग में आपको वेदो पर लगाए हुए झूठे
आछेप के उत्तर मिल जाएंंगे , analysis के साथ ।

कुरआन की शुरुआत से समीक्षा पार्ट -1  --- जरूर पढ़े ।
admin - Manish kumar (arya)

Wednesday 21 October 2015

बाइबिल समीक्षा /खंडन PART -1

 [१] 
उत्पत्ति 1:1 आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।
उत्पत्ति 1:5 और परमेश्वर ने उजियाले को दिन और अन्धियारे को रात कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ।  इस प्रकार पहिला दिन हो गया


समीक्षा १ :-
बाइबिल का परमात्मा छह: दिन में पूरे यूनिवर्स बनाने का दावा करता है जैसे क़ुरआन में अल्लाह करता है उत्पत्ति 1:5 देखे - यहाँ पे साँझ और सुबह होकर एक दिन समाप्त हो गया । ये साँझ और सुबह क्या है ? ये किसको "refer" करता है ? जवाब होगा घड़ी के 24 hour को "refer" करता है । अब कोई वैज्ञानिक ये बताये की यूनिवर्स मात्र छह: दिन में अर्थात 144 घंटे में कैसे बन सकता है।

अगर इन "verse" में साँझ और सुबह नहीं होती तो हम इसको काल मान सकते थे । ये काल कितने भी
समय का हो सकता था । पर यहाँ सुबह और साँझ हो रही है और 1 दिन complete भी हो गया ,ऐसे ऐसे 6 दिन तक complete  कर दिया गया है ? यह verse साफ़ साफ़ दिन के 24 hour को ही संकेत कर रहा है ।


[२]
उत्पत्ति 1:3 तब परमेश्वर ने कहा, उजियाला हो: तो उजियाला हो गया।
उत्पत्ति 1:5 और परमेश्वर ने उजियाले को दिन और अन्धियारे को रात कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहिला दिन हो गया॥
उत्पत्ति 1:14 फिर परमेश्वर ने कहा, दिन को रात से अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियां हों; और वे चिन्हों, और नियत समयों, और दिनों, और वर्षों के कारण हों।
उत्पत्ति 1:15 और वे ज्योतियां आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देने वाली भी ठहरें; और वैसा ही हो गया।
उत्पत्ति 1:16 तब परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियां बनाईं; उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया: और तारागण को भी बनाया।
उत्पत्ति 1:17 परमेश्वर ने उन को आकाश के अन्तर में इसलिये रखा कि वे पृथ्वी पर प्रकाश दें,
उत्पत्ति 1:18 तथा दिन और रात पर प्रभुता करें और उजियाले को अन्धियारे से अलग करें: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।

उत्पत्ति 1:19 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार चौथा दिन हो गया॥


समीक्षा २ :
verse 3 और 5 देखे , रोशनी पेहला दिन ही बन गयी थी । किसी को नहीं पता की ये रौशनी कहाँ से और कैसे आई । अब जहाँ तक हम जानते है । रोशनी मिलना या रोशनी दिखना ये सब का कारण है - सूर्य , चंद्र ,तारे ? अब देखिये verse 14 से 19 तक , "ये सब रोशनी के कारण है जो" -  रोशनी आने के ठीक 3 दिन बाद अर्थात चौथे दिन परमात्मा ने बनाया ?

हम इसको इस example से समझ सकते है -
मान लीजिये आपका दोस्त आपका घर का पता नहीं जानता हो , और आपके घर आना चाहता हो ,वो आपसे आपके घर का पता मांगे और आप जवाब दे , पहले मेरे घर आओ आराम से खाओ पीओ । फिर जाके तुमको आराम से बैठ के अपने घर का पता दूंगा। क्या ऐसे आपका मित्र आपके घर भी कभी पहुँच पायेगा ???

यही बाइबिल का परमात्मा कर रहा है । रोशनी पहला दिन ही ले आया । सुबह शाम भी कर दिया । और रोशनी का कारण चौथा दिन जाके सूर्य,चंद्र,तारे etc बनाया । तारे से कोई फर्क नहीं परता ।
पर सूर्य से जरूर पर रहा है ।

[३]
उत्पत्ति 1:1 आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।
उत्पत्ति 1:5 और परमेश्वर ने उजियाले को दिन और अन्धियारे को रात कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहिला दिन हो गया॥
उत्पत्ति 1:16 तब परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियां बनाईं; उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया: और तारागण को भी बनाया।
उत्पत्ति 1:19 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार चौथा दिन हो गया॥


समीक्षा ३-
विज्ञान के तहत पृथ्वी " सूर्य " का ही एक टूकरा है । Today science tells us… ‘Earth is part of the parent body…the sun . यह कैसे possible हो सकता है की , पहले दिन ही  पृथ्वी की सृष्टि हो , फिर जाके चौथे दिन सूर्य की सृष्टि ?

हम इसको इस तरह से समझ सकते है ।
बेटा , बाप से पहले ही धरती पर आ गया ????

और दूसरी बात -
Age of earth is 4.5 billion years .
& Age of Sun is 5.0 billion years .

तो ऐसे भी पहले पृथ्वी का existance में आना कही से भी विज्ञान के अनुकूल नहीं ।


[४]
उत्पत्ति 1:11 फिर परमेश्वर ने कहा, पृथ्वी से हरी घास, तथा बीज वाले छोटे छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्ही में एक एक की जाति के अनुसार होते हैं पृथ्वी पर उगें; और वैसा ही हो गया।
उत्पत्ति 1:12 तो पृथ्वी से हरी घास, और छोटे छोटे पेड़ जिन में अपनी अपनी जाति के अनुसार बीज होता है, और फलदाई वृक्ष जिनके बीज एक एक की जाति के अनुसार उन्ही में होते हैं उगे; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।
उत्पत्ति 1:13 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार तीसरा दिन हो गया॥


समीक्षा ४:
पृथ्वी पर हरी हरी घास,छोटे छोटे पेड़,और फलदायी वृक्ष इत्यादि सब तीसरे दिन हुआ । सब सवाल उठता है - परमात्मा ने जब सूर्य चौथे दिन बनाया ।  फिर बिना सूर्य का पेड़-पौधा ,घास , वृक्ष कैसे अस्तित्व में लाया । बिना सूर्य का कोई पेड़-पौधा उग सकता है ????  यह वैज्ञानिक दृष्टि से बिलकुल भी सही नहीं । ऐसा नहीं हो सकता ।


[५]
इब्रानियों 1:10 और यह कि, हे प्रभु, आदि में तू ने पृथ्वी की नेव डाली, और स्वर्ग तेरे हाथों की कारीगरी है।
इब्रानियों 1:11 वे तो नाश हो जाएंगे; परन्तु तू बना रहेगा: और वे सब वस्त्र की नाईं पुराने हो जाएंगे।
भजन संहिता 102:25 आदि में तू ने पृथ्वी की नेव डाली, और आकाश तेरे हाथों का बनाया हुआ है।
भजन संहिता 102:26 वह तो नाश होगा, परन्तु तू बना रहेगा; और वह सब कपड़े के समान पुराना हो जाएगा। तू उसको वस्त्र की नाईं बदलेगा, और वह तो बदल जाएगा;


सभोपदेशक 1:4 एक पीढ़ी जाती है, और दूसरी पीढ़ी आती है, परन्तु पृथ्वी सर्वदा बनी रहती है।
भजन संहिता 78:69 उसने अपने पवित्र स्थान को बहुत ऊंचा बना दिया, और पृथ्वी के समान स्थिर बनाया, जिसकी नेव उसने सदा के लिये डाली है।


समीक्षा ५ -
देखे बाइबिल इब्रानियों 1:10-1:11, भजन संहिता 102:25 -102:26
पृथ्वी का नाश एक न एक दिन हो ही जाएगा । पर परमेश्वर हमेशा बना रहेगा । अर्थात परमेश्वर हमेशा रहेगा । लेकिन उसकी बनाई आकाश,पृथ्वी का नाश हो जाएगा ।

बहुत बढियाँ बिलकुल सत्य वचन ।


अब इसी में देखिये, सभोपदेशक 1:4, भजन संहिता 78:69 ।
एक पीढ़ी जाती है, और दूसरी पीढ़ी आती है, परन्तु पृथ्वी सर्वदा बनी रहती है????
उसने अपने पवित्र स्थान को बहुत ऊंचा बना दिया, और पृथ्वी के समान स्थिर बनाया, जिसकी नेव उसने सदा के लिये डाली है ????

बाइबिल का परमात्मा पर हमें यकीन नहीं । हो सकता है वो बड़ा-बड़ा fake के सब क्रॉस-धारी को बेवकूफ बना रहा हो । कभी बोलता है पृथ्वी ख़त्म हो जायेगी । फिर बोलता है नहीं पृथ्वी हमेसा रहेगी ।

ये बहुत बड़ा contradiction है बाइबिल का । जो सिद्ध करता है कोई अनाड़ी सबको बेवकूफ बनाने के लिए बहुत बड़ा मज़ाक किया । और सभी क्रॉस-धारी पिछले 2000 वर्षो से बेवकूफ बनते आ रहा है ।


[६]
उत्पत्ति 1:29 फिर परमेश्वर ने उन से कहा, सुनो, जितने बीज वाले छोटे छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर  हैं और जितने वृक्षों में बीज वाले फल होते हैं, वे सब मैं ने तुम को दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिये हैं:

समीक्षा ६ -
जितने भी बीज वाले छोटे छोटे पेड़ और जितने वृक्षो में बीज वाले फल है । वो सब बाइबिल का परमात्मा ने भोजन के लिए दिया है ????
अब क्रॉस -धारी इस verse को सत्य प्रमाणित करने के लिए ये सब खा के दिखाए और फिर जिन्दा भी रहे?
there are several poisonous plants like wild berries, stritchi, datura, plants containing alkaloid, polyander, bacaipoid ………
ये सब जहरीला बीज वाले भी पेड़-पौधे है । हो सकता है इसे खाने के बाद आप स्वर्ग को प्राप्त हो जाए ।

इससे क्या पता चला बाइबिल का परमात्मा को ये ज्ञान ही नहीं की अगर सभी बीज वाले पेड़-पौधा जितने भी धरती पर उगे है , खाने लग दिया जाए तो धरती पर शायद एक दिन एक भी क्रॉस धारी जीव नहीं दिखेगा।
सब स्वर्ग में shift हो जाएगा । बाइबिल का परमात्मा अज्ञानी है ।


[७]
मरकुस 16:17 और विश्वास करने वालों में ये चिन्ह होंगे कि वे मेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालेंगे।
मरकुस 16:18 नई नई भाषा बोलेंगे, सांपों को उठा लेंगे, और यदि वे नाशक वस्तु भी पी जांए तौभी उन की कुछ हानि न होगी, वे बीमारों पर हाथ रखेंगे, और वे चंगे हो जाएंगे।


समीक्षा ७ - Bible has a scientific test how to identify a true believer.
जो बाइबिल पर सही में विस्वास रखते है ,उनकी पहचान ~
(a) परमात्मा के नाम से दुष्ट आत्मा को निकालेंगे।
(b) नई नई भाषा बोलेगा ।
(c) साँपो को उठा लेगा ।
(d) अगर वो नाशक वस्तु/जहर इत्यादि पी भी लेगा तो उसको कुछ नहीं होगा ।
(e) वो कोई भी बीमार व्यक्ति पर अगर हाथ रखेगा तो वो चंगा हो जाएगा ,बिलकुल ठीक हो जाएगा ।


दुनियां में पिछले 2000 सालो से ऐसा कोई true Believer ईसाई अभी तक कोई नहीं पैदा लिया ।
जो ये सारे test से पास हो सके । मतलब दुनियां में अभी तक सब fake Christians सब है । कोई भी
true believer नहीं ।
फिर इतना christnity-christinity क्या करते हो ????

इस पोस्ट का जवाब देने से पहले की दो शर्ते है ।
(1) खंडन करने वाले को पूरा पोस्ट का खंडन करना होगा ,कुछ भी शेष न बचे ।
(2) वो true believer वाला में option "d" जहर पी के ज़िंदा रहने वाला test से गुजरना होगा और खुद को सच्चा विस्वासी proof करना होगा ।


[८] What does the Bible say regarding ‘Hydrology’?
उत्पत्ति 9:13 कि मैं ने बादल में अपना धनुष रखा है वह मेरे और पृथ्वी के बीच में वाचा का चिन्ह होगा।
उत्पत्ति 9:14 और जब मैं पृथ्वी पर बादल फैलाऊं जब बादल में धनुष देख पड़ेगा।

उत्पत्ति 9:15 तब मेरी जो वाचा तुम्हारे और सब जीवित शरीरधारी प्राणियों के साथ बान्धी है; उसको  मैं स्मरण करूंगा, तब ऐसा जलप्रलय फिर न होगा जिस से सब प्राणियों का विनाश हो।
उत्पत्ति 9:16 बादल में जो धनुष होगा मैं उसे देख के यह सदा की वाचा स्मरण करूंगा जो परमेश्वर के और पृथ्वी पर के सब जीवित शरीरधारी प्राणियों के बीच बन्धी है।

उत्पत्ति 9:17 फिर परमेश्वर ने नूह से कहा जो वाचा मैं ने पृथ्वी भर के सब प्राणियों के साथ बान्धी है, उसका चिन्ह यही है ।

समीक्षा ८ -
एक बार "Noah" के समय बाइबिल का परमात्मा ने बाढ़ लाके पूरे पृथ्वी को पानी में डूबा दिया था ।
फिर परमात्मा ने Rainbows एक sign आकाश में दिया as a promise की अब दोबारा जल प्रलय नहीं करेगा।

"But today we know very well, that rainbow is due to the refraction of sunlight, with rain or mist"    ऐशा ऐशा न जाने कितना हज़ार Rainbow "Noah" से भी पहले आकाश में हुआ होगा ।
बाइबिल का परमात्मा कहना क्या चाहता है की  "Noah" से पहले "Laws Of Refraction" exist ही नहीं करता था ????

मतलब यही की कोई विज्ञान का ज्ञान नहीं ,तो कुछ भी बकवास बोल दोंगे?


 [९] In the field of medicine
लैव्यवस्था 14:49 और उस घर को पवित्र करने के लिये दो पक्षी, देवदारू की लकड़ी, लाल रंग का कपड़ा और जूफा लिवा लाए,
लैव्यवस्था 14:50 और एक पक्षी बहते हुए जल के ऊपर मिट्टी के पात्र में बलिदान करे,
लैव्यवस्था 14:51 तब वह देवदारू की लकड़ी लाल रंग के कपड़े और जूफा और जीवित पक्षी इन सभों को ले कर बलिदान किए हुए पक्षी के लोहू में और बहते हुए जल में डूबा दे, और उस घर पर सात बार छिड़के। लैव्यवस्था 14:52 और वह पक्षी के लोहू, और बहते हुए जल, और जूफा और लाल रंग के कपड़े के द्वारा घर को पवित्र करे;
लैव्यवस्था 14:53 तब वह जीवित पक्षी को नगर से बाहर मैदान में छोड़ दे; इसी रीति से वह घर के लिये प्रायश्चित्त करे, तब वह शुद्ध ठहरेगा।

समीक्षा ९ -
इसमें समीक्षा करने की कोई शेष नहीं रह गया है । यह तंत्र मन्त्र है । यहाँ पर परमात्मा "चुड़ैल तंत्र"
सीखा रहा है । हम तो इसको अंधविस्वास भी नहीं कहेंगे ।
हम तो कहेंगे ~ बहुत scientific , बहुत scientific ???


[१०]
लैव्यवस्था 12:2 इस्त्राएलियों से कह, कि जो स्त्री गभिर्णी हो और उसके लड़का हो, तो वह सात दिन तक अशुद्ध रहेगी; जिस प्रकार वह ऋतुमती हो कर अशुद्ध रहा करती।
लैव्यवस्था 12:4 फिर वह स्त्री अपने शुद्ध करने वाले रूधिर में तेंतीस दिन रहे; और जब तक उसके शुद्ध हो जाने के दिन पूरे न हों तब तक वह न तो किसी पवित्र वस्तु को छुए, और न पवित्रस्थान में प्रवेश करे।
लैव्यवस्था 12:5 और यदि उसके लड़की पैदा हो, तो उसको ऋतुमती की सी अशुद्धता चौदह दिन की लगे; और फिर छियासठ दिन तक अपने शुद्ध करने वाले रूधिर में रहे।


समीक्षा १० -
लड़का पैदा हो तो स्त्री 7 दिन तक अशुद्ध रहती है । फिर वो स्त्री शुद्ध करने वाले रुधिर में 33 दिन रहे ?
अगर लड़की पैदा हुआ तो , 14 दिन तक स्त्री अशुद्ध रहेगी और 66 दिन तक शुध्दि रुधिर में रहे ?
ये logic क्या है कोई क्रॉस धारी समझा दे ???


ADMIN- MANISH KUMAR (आर्य)