मित्रो हमें किताबो में पढ़ाया जाता है की भारत हजारो सालो से गरीब देश रहा है । हमको तो कुछ नहीं आता था , हमारे पास कोई ज्ञान नहीं था ,हमारे पास कोई तकनिकी नहीं थी ,हम तो सबसे पिछड़े देश थे ,हमको तो सब दुनिया ने दिया है !!??!!
हमें पढ़ाया जाता है की अगर अंग्रेज नहीं आते तो भारत में कोई तकनीक नहीं होता ,अंग्रेज नहीं आते तो शिक्षा नहीं होती ,अंग्रेज नहीं आते तो विज्ञान नहीं होता ,अंग्रेज नहीं आते तो रेल नहीं आती ,अंग्रेज नहीं आयते तो हवाई जहाज नहीं आता ,ऐशी-ऐशी बाते हम बचपन से पढ़ते ,सुनते और चर्चा करते रहते है ?
आपने मनोविज्ञान की बात सुनी ही होगी की "जब एक ही झूठ को बार -बार बोला जाता है ,तो एक दिन वो झूठ सुनते सुनते सच लगने लगता है । तो भारत के बारे में पिछले २५०-३०० वर्षो से एक सफ़ेद झूठ पूरी दुनियाँ में बोला जा रहा है ,की भारत एक गरीब देश ,भारत एक पिछड़ा देश ,भारत एक अवैज्ञानिक देश ,भारत एक ऐसा देश जहा विज्ञान नहीं ,तकनिकी नहीं ,गणित नहीं ,जहा भौतिक शास्त्र नहीं ,रसायन शाश्त्र नहीं ,कुछ भी नहीं !!??!!
भारत एक ऐसा देश जो हर समय दुसरो पर निर्भर ,भारत एक ऐषा देश जिसमे उसकी सभ्यता और संस्कृति में गौरव करने लायक कुछ भी नहीं , और जो कुछ गौरव करने लायक है वो पाखंड है !!??!!
जो कुछ गौरव करने लायक है वो अवैज्ञानिक है ,उसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं !!??!!
इसी तरह की बाते पढ़ते पढ़ते सुनते सुनते हम सब बरे हुए है ।
और हम अपने शिक्षको से पूछते है की आप हमें ऐसे क्यों पढ़ाते है ,तो जवाब आता है की हमें भी किसी ने ऐसे ही पढ़ाया है , तो हमारे शिक्षको के जो शिक्षक रहे है ,उन्होंने भी वैसे पढ़ा और पढ़ाया है !
NOTE - हमारे बीच के आम-आदमी अगर ऐसी बात करे की हम पिछड़े ,हम गरीब etc ..........
तो उसे माफ़ किया जा सकता है , पर कांग्रेस की सरकार में जब प्रधानमन्त्री "मनमोहन सिंह" अगर ऐसी बात करे तो दिल को बहुत चोट पहुँचती है !
हमारे देश के पिछले कई प्रधान-मंत्रियो से मैंने सुना की भारत हमेसा से पिछड़ा, गरीब से गरीब देश है ,
तकनिकी यहाँ नहीं रही ,विज्ञान यहाँ नहीं रही ,शिक्षा यहाँ नहीं रही ,जो कुछ भी हमरे पास है ,वो सब अंग्रेजो की देंन है । भारत के बारे में ये सब बाते सारे दुनिया में हमारे प्रधानमंत्रियों ने बोला है की ……
सफेरो का देश ,लूटेरो का देश ,अँधेरे का देश ,ठगो का देश ,डकैतो का देश ,इस तरह की सारी बाते भारत के बारे में प्रचारित हुई है ?
हमारे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा लंदन के OXFORD की भाषण की याद दिलाना चाहताा हूँ , जो उन्होंने OXFORD UNIVERSITY में दिया और उन्हें DOCTORATE की उपाधि दी जा रही थी -
"और उन्होंने यही कहा की हम अंग्रेजो के आभारी है ,जो अंग्रेज भारत में नहीं आते तो हमको न तो विज्ञान पता था ,न तकनिकी पता थी, न हमारी शिक्षा वयवस्था उच्च होती ,न हमरे पास कोई अर्थवयवस्था होती ,न हमारे पास कृषि वयवस्था होती ,न हमारे पास डाक -तार विभाग होते ,न रेलवे विभाग होता ,वगेरा वगेरा लम्बा भाषण हमारे प्रधान मंत्री ने OXFORD में दी ।
४० मिनट तक वो गुणगान करते रह गए की अंग्रेजो का आना ,भारत के लिए वरदान था ,अगर अंग्रेज नहीं आते तो आज भी हम अँधेरे में ही डूबे रहते !!??!!
जैसा ब्यान हमारे पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने दिया ,ठीक वैसा ही ब्यान हमारे पहले प्रधानमंत्री ने भी दिया था "जवाहर लाल नेहरू" , अपनी संसद में कहा- भारत के संसद में " की अंग्रेजो का भारत में सय्योग नहीं रहता ,तो भारत तो हमेसा अन्धकार और अंधेरो में डूबा हुआ देश ही रहता ??
इसलिए भारत को विकास कराना है तो अंग्रेजो जैसा बनाना है ,भारत को विकास कराना है तो अंग्रेजो के रास्ते पे ही चल के उसको ले जाना है , तक़रीबन इसी तरह के फ़ालतू बाते भारत के विभिन्न तरह के प्रधानमंत्री बोलते चले आये , शर्म और अफ़सोस हमारे देश के लोगो को देते रहे , २ या ३ प्रधानमंत्री को छोड़ दिया जाय तो लगभग सभी प्रधानमंत्री इसी मानसिकता के रहे इस देश में पिछले ६७ वर्षो में ।
एक प्रधान मंत्री थे जिनको भारत के परपराओ पर गर्व होता था तो वो थे "लाल बहादुर शास्त्री " जब वो पहली बार प्रधानमंत्री बने थे ,तो उन्होंने बहुत बड़ा फैशला लिया था ,जो सामान्य रूप से किसी प्रधानमंत्री में सहस में नहीं होता , फैशला उनका ये था की अमेरिका से लाल रंग का गेहूं आता था भारत में ,जिसको अमेरिका में जानवर भी नहीं खाते ,वो हमें दिए जाते थे , हमें खिलाया जाता था ।
श्री शास्त्री जी ने फैशला लिया था की ये गेहूं हमें खाना मंजूर नहीं है , क्योकि अपमानजनक तरीके से आता है ,और रद्दी है ,सबसे खराब है ,और वो गेहूं शास्त्री जी ने अमेरिका से लेना बंद कर दिया था , उस समय भारत में उत्पादन कम था , फिर भी शाश्त्री जी ने इतना बड़ा साहस दिखाया की हम इस तरह का गेहूं नहीं लाएंगे और नहीं खाएंगे , तो कई लोगो ने उन्हें समझाया की शास्त्री जी अगर हम ये गेहूं नहीं खाएंगे तो भूखे मर जाएंगे , तो इतना कड़ा ब्यान उन्होंने दिया था की "हमे भूखे मरना मंजूर है ,लेकिन अपमान-जनक शर्तो पर घटिया गेहूं खाना मंजूर नहीं ।
जब ये बात ये चर्चा चल रही थी ,तो संसद में भयंकर बहस हुई थी , कई सांसदों ने शास्त्री जी से कहा की अगर ये अमेरिका और यूरोप देश न होते तो हम कही के नहीं होते ।
तब शास्त्री जी ने फिर एक कड़ी बात कही थी की अमेरिका और यूरोप के पास कुछ नहीं है ? जो वो भारत को दे सके , हमारे पास ही है जो हम उन्हें दे सकते है । ये बरी बात उन्होंने उस समय कही थी ?
इसी तरह एक और प्रधानमंत्री हुए थे इस देश में था "श्री मोरारजी देसाई " वो भी भरे हुए थे कूट कूट कर भारतीय संस्कृति ,संभ्यता की बातो से और वो कहा करते थे ,की दुनिया में सबसे ज्यादा ज्ञान किसी देश के पास है तो वो भारत के पास है , ये हमारा दुर्भाग्य है की उस ज्ञान को हमलोगो ने दुनिया में अस्थापित करने में पीछे रह गए ।
इसी तरह के एक प्रधान मंत्री और हुए इस देश में ,वो बहुत कम समय के लिए रहे "चंद्रशेखर" ४ महीनो के लिए ही रहे ,लेकिन वो भी कहा करते थे की यूनान की सभ्यताओ से पुरानी सभ्यता हमारी रही है , यूरोप के पास जो कुछ भी तकनीकी और विज्ञान रहा है ,उससे पहले हमने वो तकनिकी और विज्ञान हासिल किया है ,इसीलिए हमे विदेशिओं से कुछ लेने की जरुरत नहीं है ,जरूरत पारी तो उनको कुछ दे देंगे ।
ये गिने चुने २-३ प्रधानमंत्री और आज के वर्तमान प्रधानमंत्री "मोदी जी" को छोड़ बाकी सब प्रधानमन्त्री इस मानसिकता के हुए की भारत के पास कभी कुछ नहीं रहा ,हमने कभी कुछ दुनिया को नहीं दिया , हमने हमेसा दुसरो के सामने हाथ पसार के भीख मांगी है ,चाहे ज्ञान की हो ,चाहे तकनीक की हो ,जो भी है हम दुसरो से लेकर अपने को आगे बढ़ाते रहे ।
[[[ ये बहुत बड़ा भ्र्म है बहुत बड़ा myth है ]]]
इस द्रिष्टि से आज मैं आपके समक्ष कुछ ऐशी जानकारी पेश करना चाहता हूँ जो हमारे दिमाग से सारी मानसिकता बिमारी निकाल देगी , और आज के बाद आपको गर्व होगा की भारत ही विश्वगुरु रहा है ।
चाहे वो ज्ञान के स्तर पर हो ,या वयवस्था के स्तर पर,या नीतियों के ऊपर , किसी भी स्तर पर हो ।
ADMIN - मनीष कुमार (आर्य) ………
भारत ने सम्पूर्ण विश्व को क्या दिया -पार्ट 2 निचे लिंक में जाए । ।
धन्यवाद
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