आधुनिक परमाणु बम का सफल परिक्षण 16 जुलाई 1945 को New Mexico के एक दूर दराज स्थान में किया गया | इस बम का निर्माण अमेरिका के एक वैज्ञानिक Julius Robert Oppenheimer के नेतृत्व में किया गया |इन्हें परमाणु बम का जनक भी कहा जाता है | इस एटम बम का नाम उन्होंने त्रिदेव (Trinity) रखा |
{त्रिदेव (ट्रिनीटी) नाम क्यो?
परमाणु विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया में 235 भार वला यूरेनियम परमाणु,बेरियम और क्रिप्टन तत्वों में विघटित होता है। प्रति परमाणु 3 न्यूट्रान मुक्त होकर अन्य तीन परमाणुओं का विखण्डन करते है। कुछ द्रव्यमान ऊ र्जा में परिणित हो जाता है। आइंस्टाइन के सूत्र
ऊ र्जा = द्रव्यमान * (प्रकाश का वेग)२ {E=MC^2}
के अनुसार अपरिमित ऊ र्जा अर्थात उष्मा व प्रकाश उत्पन्न होते है।
के अनुसार अपरिमित ऊ र्जा अर्थात उष्मा व प्रकाश उत्पन्न होते है।
1893 में जब स्वामी विवेकानन्द अमेरिका में थे,उन्होने वेद और गीता के कतिपय श्लोकों का अंग्रेजी अनुवाद किया था। यद्यपि परमाणु बम विस्फोटट कमेटी के अध्यक्ष ओपेन हाइमर का जन्म स्वामी जी की मृत्यु के बाद हुआ था किन्तु राबर्ट ने श्लोकों का अध्ययन किया था। वे वेद और गीता से बहुत प्रभावित हुए थे। वेदों के बारे में उनका कहना था कि पाश्चात्य संस्कृति में वेदों की पंहुच इस सदी की विशेष कल्याणकारी घटना है। उन्होने जिन तीन श्लोकों को महत्व दिया वे निम्र प्रकार है।
1 . राबर्ट औपेन हाइमर का अनुमान था कि परमाणु बम विस्फोट से अत्यधिक तीव्र प्रकाश और उच्च ऊ ष्मा होगी, जैसा कि योगिराज कृष्ण द्वारा अर्जुन को विराट स्वरुप के दर्शन देते समय उत्पन्न हुआ होगा।
राबर्ट औपन का कहना था की गीता सही हो या न हो पर उसमे सिखने के बहुत से ज्ञान है ।
गीता के ग्यारहवें अध्याय के बारहवें श्लोक में लिखा है-
राबर्ट औपन का कहना था की गीता सही हो या न हो पर उसमे सिखने के बहुत से ज्ञान है ।
गीता के ग्यारहवें अध्याय के बारहवें श्लोक में लिखा है-
दिविसूर्य सहस्य भवेयुग पदुत्थिता
यदि मा सदृशीसा स्यादा सस्तस्य महात्मन:
अर्थात- आकाश में हजारों सूर्यों के एक साथ उदय होने से जो प्रकाश उत्पन्न होगा वह भी वह विश्वरुप परमात्मा के प्रकाश के सदृश्य शायद ही हो।
2 . औपेन हाइमर ने सोचा कि इस बम विस्फोट से बहुत अधिक लोगों की मृत्यु होगी,दुनिया में विनाश ही विनाश होगा। उस समय उन्हे गीता के ग्यारहवें अध्याय के ३२ वें श्लोक में वर्णित बातों का ध्यान आया-
कालोस्स्मि लोकक्षयकृत्प्रवृध्दो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत:।
ऋ तेह्यपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येह्यवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा:।।
अर्थात- मैं लोको का नाश करने वाला बढा हुआ महाकाल हूं। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं,अत: जो प्रतिपक्षी सेना के योध्दा लोग हैं वे तेरे युध्द न करने पर भी नहीं रहेंगे अर्थात इनका नाश हो जाएगा।
राबर्ट का बम भी विश्व संहारक और महाकाल ही था।
3 . औपेन हाइमर ने सोचा कि बम विस्फोट से जहां कुछ लोग प्रसन्न होंगे तो जिनका विनाश हुआ है वे दु:खी होंगे विलाप करेंगे,जबकि अधिकांश तटस्थ रहेंगे। इस विनाश का जिम्मेदार खुद को मानते हुए वे दुखी हुए तभी उन्हे गीता के द्वितीय अध्याय के सैंतालिसवें श्लोक का भावार्थ ध्यान आया।
श्लोक निम्र प्रकार है-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संङ्गोह्यस्त्वकर्माणि।।
अर्थात- तेरा कर्म करने का ही अधिकार है,फल का नहीं। अत: तू कर्मो के फल का हेतु मत हो,तेरी आसक्ति सिर्फ कर्म करने में ही होनी चाहिए।
तीनों श्लोकों के भावार्थ के आधार पर ही राबर्ट ने बम का नाम त्रिदेव (ट्रिनीटी) रखा। ये बात उन्होने कई बार अमेरिकी पत्रकार वार्ता और टीवी इण्टरव्यू में स्वीकार की थी।
साभार: http://sarkarigupshup.com/mp/?p=49
इसके अतिरिक्त 1933 में उन्होंने अपने एक मित्र Arthur William Ryder, जोकि University of California, Berkeley में संस्कृत के प्रोफेसर थे, के साथ मिल कर भगवद गीता का पूरा अध्यन किया और परमाणु बम बनाया 1945 में | परमाणु बम जैसी किसी चीज़ के होने का पता भी इनको भगवद गीता तथा महाभारत से ही मिला, इसमें कोई संदेह नहीं | Robert Oppenheimer ने इस प्रयोग के बाद प्राप्त निष्कर्षों पर अध्यन किया और कहा की विस्फोट के बाद उत्पन विकट परिस्तियाँ तथा दुष्परिणाम जो हमें प्राप्त हुए है ठीक इस प्रकार का वर्णन भगवद गीता तथा महाभारत आदि में मिलते है |
इसके पश्चात खलबली मच गई तथा महाभारत और गीता आदि पर शोध किया गया और उन्होंने बताया की कई अन्य परमाण्विक बमों के अतिरिक्त एक "ब्रह्माश्त्र" नामक अस्त्र का वर्णन मिलता है जो इतना संहारक था की उस के प्रयोग से कई हजारो लोग व अन्य वस्तुएं न केवल जल गई अपितु पिघल भी गई|
इस शोध पर लिखी गई कई किताबो में से एक है ।
The Atoms of Kshatriyas
(यहाँ देखें) यहाँ देखे पर click करे ।
The Atoms of Kshatriyas
(यहाँ देखें) यहाँ देखे पर click करे ।
रामायण में भी मेघनाद से युद्ध हेतु श्रीलक्ष्मण ने जब ब्रह्माश्त्र का प्रयोग करना चाहा तब श्रीराम ने उन्हें यह कह कर रोक दिया की अभी इसका प्रयोग उचित नही अन्यथा पूरी लंका साफ़ हो जाएगी |
इसके अतिरिक्त प्राचीन भारत में परमाण्विक बमों के होने के प्रमाणों की कोई कमी नही है । सिन्धु घाटी सभ्यता (मोहन जोदड़ो, हड़प्पा आदि) में अनुसन्धान से ऐसी कई नगरियाँ प्राप्त हुई है जो लगभग 5000 से 7000 ईसापूर्व तक अस्तीत्व में थी|
वहां ऐसे कई नर कंकाल इस स्थिति में प्राप्त हुए है मानो वो सभी किसी अकस्मात प्रहार में मारे गये हों तथा इनमें रेडिएशन का असर भी था |
तथा कई ऐसे प्रमाण जो यह सिद्ध करते है की किसी समय यहाँ भयंकर ऊष्मा उत्पन्न हुई जो केवल परमाण्विक बम से ही उत्पन्न हो सकती है |
राजस्थान में जोधपुर से पश्चिम दिशा में लगभग दस मील की दूरी पर तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ पर रेडियोएक्टिव्ह राख की मोटी सतह पाई जाती है। वैज्ञानिकों ने उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला है जिसके समस्त भवन और लगभग पाँच लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी परमाणु विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे। एक शोधकर्ता के आकलन के अनुसार प्राचीनकाल में उस नगर पर गिराया गया परमाणु बम जापान में सन् 1945 में गिराए गए परमाणु बम की क्षमता के बराबर का था।
मुंबई से उत्तर दिशा में लगभग 400 कि.मी. दूरी पर स्थित लगभग 2,154 मीटर की परिधि वाला एक अद्भुत विशाल गड्ढा (crater), जिसकी आयु 50,000 से कम आँकी गई है, भी यही इंगित करती है कि प्राचीन काल में भारत में परमाणु युद्ध हुआ था। शोध से ज्ञात हुआ है कि यह गड्ढा crater) पृथ्वी पर किसी 600.000 वायुमंडल के दबाव वाले किसी विशाल के प्रहार के कारण बना है किन्तु इस गड्ढे (crater) तथा इसके आसपास के क्षेत्र में उल्कापात से सम्बन्धित कुछ भी सामग्री नहीं पाई जाती। फिर यह विलक्षण गड्ढा crater) आखिर बना कैसे? सम्पूर्ण विश्व में यह अपने प्रकार का एक अकेला गड्ढा (crater) है।
महाभारत में सौप्टिक पर्व अध्याय १३ से १५ तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिये गए है|
Great Event of the 20th Century. How they changed our lives ? नामक पुस्तक में हिरोशिमा नामक जापान के नगर पर परमाणु बम गिराने के बाद जो परिणाम हुए उसका वर्णन हैं, दोनों वर्णन मिलते झूलते हैं । यह देख हमें विश्वास होता हैं कि 3 नवंबर 5561 ईसापूर्व (आज से 7574 वर्ष पूर्व ) छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र एटोमिक वेपन अर्थात परमाणु बम ही था ।
महाभारत युद्ध का आरंभ 16 नवंबर 5561 ईसा पूर्व हुआ और 18 दिन चलाने के बाद 2 दिसम्बर 5561 ईसा पूर्व को समाप्त हुआ उसी रात दुर्योधन ने अश्वथामा को सेनापति नियुक्त किया । 3 नवंबर 5561 ईसा पूर्व के दिन भीम ने अश्वथामा को पकड़ने का प्रयत्न किया । तब अश्वथामा ने जो ब्रह्मास्त्र छोड़ा उस अस्त्र के कारण जो अग्नि उत्पन्न हुई वह प्रलंकारी थी । वह अस्त्र प्रज्वलित हुआ तब एक भयानक ज्वाला उत्पन्न हुई जो तेजोमंडल को घिर जाने मे समर्थ थी ।
तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम ।। ८ ।।
इसके बाद भयंकर वायु चलने लगी । सहस्त्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे ।
आकाश में बड़ा शब्द (ध्वनि ) हुआ । पर्वत, अरण्य, वृक्षो के साथ पृथ्वी हिल गई|
सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम । चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा ।। १० ।। अ १४
यहाँ व्यास लिखते हैं कि “जहां ब्रहास्त्र छोड़ा जाता है वहीं १२ वषों तक पर्जन्यवृष्ठी (जीव-जंतु , पेड़-पोधे आदि की उत्पति ) नहीं हो पाती “।
’ब्रह्मास्त्र के कारण गाँव मे रहने वाली स्त्रियों के गर्भ मारे गए, ऐसा महाभारत लिखता है ।
वैसे ही हिरोशिमा में रेडिएशन फॉल आउट के कारण गर्भ मारे गए थे ।
वैसे ही हिरोशिमा में रेडिएशन फॉल आउट के कारण गर्भ मारे गए थे ।
ब्रह्मास्त्र के कारण 12 वर्ष अकाल का निर्माण होता है यह भी हिरोशिमा में देखने को मिलता है ।
आधार: http://www.swadeshi.shreshthbharat.in/scientist-bharat/atom-bomb-missiles-in-mahabharat/
http://www.swadeshi.shreshthbharat.in/…/atom-bomb-missiles…/
http://www.bibliotecapleyades.net/ancientatomicwar/esp_ancient_atomic_07.htm
http://www.bibliotecapleyades.net/…/esp_ancient_atomic_07.h…
http://www.swadeshi.shreshthbharat.in/…/atom-bomb-missiles…/
http://www.bibliotecapleyades.net/ancientatomicwar/esp_ancient_atomic_07.htm
http://www.bibliotecapleyades.net/…/esp_ancient_atomic_07.h…
http://www.bibliotecapleyades.net/ancientatomicwar/esp_ancient_atomic_07.htm
http://www.bibliotecapleyades.net/…/esp_ancient_atomic_07.h…ADMIN - मनीष कुमार (आर्य)
महाभारत एक सत्य घटना है , हो सकता है की उसमे कुछ श्लोक जोड़ा गया हो , एक कहानी तैयार करने ॥
जैसे भगवत गीता में जोड़ा गया , भगवत गीता योगिराज कृष्ण ने कहे थे , जो की वेदो की शिक्षा आश्रम में लिए
थे ,फिर वो अपने वेद विरोधी बातें कैसे कह सकते ??
वेद व्यास द्वारा 77 श्लोक ही मिले थे ,जिसे बाद में 770 कर दिया गया ,फिर 70 श्लोक हटा के 700 कर दिया गया ॥
ये मिलावटी सब के अनेक प्रूफ मिले है की किस किस SCRIPTURE में कहाँ कहाँ मिलावट हुई है ॥
तो जो भी वेद कथन के विपरीत दिखे ,उसकी HISTORY जरूर जांच करे ।
आपको सच्चाई सामने दिखेगी ।
#BACK_TO_VEDAS
No comments:
Post a Comment