Wednesday 13 January 2016

ISLAMIC WEBSITE की समीक्षा,वैदिक धर्म पर




ये ब्लॉग IRF (islamic research foundation) WEBSITE को expose करने के लिए बनाई जा रही है ।
http://www.irf.net/Hinduism.html
इस link में हर claim झूठा है , स्वाभाविक है , की अगर इस्लाम का प्रचार करना हो तो सनातन वैदिक धर्म को निचे करना ही पड़ेगा , चाहे कितना भी झूठ बोलना पड़े ।




1 . ////zakir naik claim:- 

 VEDAS:
1. The word Veda is derived from vid which means to know, knowledge par excellence or sacred wisdom. There are four principal divisions of the Vedas (although according to their number, they amount to 1131 out of which about a dozen are available). According to Maha Bhashya of Patanjali, there are 21 branches of Rigveda, 9 types of Atharvaveda, 101 branches of Yajurveda and 1000 of Samveda)./////

Analysis (our response):-


यहाँ ज़ाकिर नाइक जी को वेद और वेद की शाखाऍ समझ नहीं आई ,
वेद चार ही है (ऋग्वेद ,यजुर्वेद,अथर्वेद,सामवेद) ..... जिसे "word of GOD" कहते है , फिर इतनी शाखाऍ क्या है ? 


प्रश्न. वेदों की शाखाएं क्या हैं? वेदों की 1131 शाखाएं बतलाई जाती हैं, जो बहुत सी लुप्त हो गई हैं, तब यह कैसे माना जाए कि वेद मूल स्वरुप में ही हैं?

उत्तर. वेदों की शाखाओं का तात्पर्य मूल वेद संहिताओं से नहीं है. वेदों को समझने, उनके अध्ययन आदि तथा वेदों की व्याख्या करने के लिए शाखाएं बनाई गई हैं. समय – समय पर प्रचलित प्रणालियों के अनुसार मन्त्रों के अर्थ सरल करने के लिये शाखाएं मूल मन्त्रों में परिवर्तन करती रहती हैं. किसी यज्ञ विशेष के लिए या अन्य किन्ही कारणों से कई शाखाएं मूल मंत्रों के क्रम को आगे- पीछे भी करती हैं. इसी तरह कुछ शाखाओं में मंत्र तथा ब्राह्मण ग्रंथों का भाग मिला दिया गया है.

मूल चारों वेद संहिताएँ  – अपौरुषेय हैं. वेदों की शाखाएं तथा ब्राह्मण ग्रंथ मनुष्य कृत हैं. उन्हें वहीं तक विश्वासयोग्य माना जा सकता है जहां तक वे वेदों के अनुकूल हैं. मूल मंत्र संहिताओं का परम्परा से जतन किया गया है और विद्वानों ने भी भाष्य उन पर ही किया है.


 तो ज़ाकिर भाई की प्रश्नो और उसके समझ को आपलोग जान ही गए होंगे :))

2. //////now next zakir naik claim:-
2. The Rigveda, the Yajurveda and the Samveda are considered to be more ancient books and are known as Trai Viddya or the ‘Triple Sciences’. The Rigveda is the oldest and has been compiled in three long and different periods of time. The 4th Veda is the Atharvaveda, which is of a later date./////Analysis (our response):-

ये ज़ाकिर नाइक का दिमाग है "त्रयविद्या" अर्थात तीन ही किताब और इससे मतलब निकाल लिया की अथर्वेद बाद में आया ? आईये त्रयविद्या वेद को क्यों कहा गया , जब की वेद तो चार है ?

प्रश्न:- क्या वेद तीन हैं और क्या अथर्ववेद बाद में सम्मिलित किया गया था?

संस्कृत वांग्मय में कई स्थानों पर ऐसा प्रतीत होता हैं की क्या वेद तीन हैं? क्यूंकि वेदों को त्रयी विद्या के नाम से पुकारा गया हैं और त्रयी विद्या में ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद इन तीन का ग्रहण किया गया हैं.
उदहारण में शतपथ ब्राह्मण ६.१.१.८, शतपथ ब्राह्मण १०.४.२.२२, छान्दोग्य उपनिषद् ३.४.२, विष्णु पुराण ३.१६.१
परन्तु यहाँ चार वेदों को त्रयी कहने का रहस्य क्या हैं?
इस प्रश्न का उत्तर चारों वेदों की रचना तीन प्रकार की हैं. वेद के कुछ मंत्र ऋक प्रकार से हैं, कुछ मंत्र साम प्रकार से हैं और कुछ मंत्र यजु: प्रकार से हैं. ऋचाओं के सम्बन्ध में ऋषि जैमिनी लिखते हैं पादबद्ध वेद मन्त्रों को ऋक या ऋचा कहते हैं (२.१.३५), गान अथवा संगीत की रीती के रूप में गाने वाले मन्त्रों को साम कहा जाता हैं (२.१.३६), और शेष को यजु; कहा जाता हैं. (२.१.३७)
ऋग्वेद प्राय: पद्यात्मक हैं, सामवेद गान रूप हैं और यजुर्वेद मुख्यत: गद्य रूप हैं और इन तीनों प्रकार के मंत्र अथर्ववेद में मिलते हैं. इस प्रकार के रचना की दृष्टि से वेदों को त्रयी विद्या कहाँ गया हैं.
इसका प्रमाण भी स्वयं आर्ष ग्रन्थ इस प्रकार से देते हैं
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ये चारों वेद श्वास- प्रश्वास की भांति सहज भाव से परमात्मा ने प्रकट कर दिए थे- शतपथ ब्राह्मण १४.५.४.१०, छान्दोग्य उपनिषद् ७.१.२ और छान्दोग्य उपनिषद् ७.७.१
इसी प्रकार बृहदअरण्यक उपनिषद् (४.१२), तैत्रय उपनिषद् (२.३), मुंडक उपनिषद (१.१.५), गोपथ ब्राह्मण (२.१६), आदि में भी वेदों को चार कहाँ गया हैं.

अब वेदो से प्रमाण:-(१)सबके पूज्य,सृष्टीकाल में सब कुछ देने वाले और प्रलयकाल में सब कुछ नष्ट कर देने वाले उस परमात्मा से ऋग्वेद उत्पन्न हुआ, सामवेद उत्पन्न हुआ, उसी से अथर्ववेद उत्पन्न हुआ और उसी से यजुर्वेद उत्पन्न हुआ हैं- ऋग्वेद १०.९०.९, यजुर्वेद ३१.७, अथर्ववेद १९.६.१३(२).ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद स्कंभ अर्थात सर्वाधार परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं- अथर्ववेद १०.७.२०


3. /// now next zakir naik claim:-
3. There is no unanimous opinion regarding the date of compilation or revelation of the four Vedas. According to Swami Dayanand, founder of the Arya Samaj, the Vedas were revealed 1310 million years ago. According to other scholars, they are not more than 4000 years old. ////


Analysis (our response):-

सबसे पहली बात , किसी के कुछ सिर्फ कह देने से , बाते मान्य नहीं होगी , इसको सत्य की कसौटी पर परखना होगा ।
वेद का काल क्या है ?

वेद के अनुसार वेद का काल आदि सृष्टि का ही है(जैसा ऋषि दयानंद जी ने calculate करके बताये )  , वेद का सही अर्थ है "ज्ञान" (ऊपर ज़ाकिर नाइक भी explain किया है ,इस बात को )... और वेद का प्रकाश ईश्वर ने आदि सृष्टि में ही चार ऋषियों के आत्मा में किया , संस्कृत देववाणी भाषा में । 

लोग यहाँ पे कंफ्यूज रहते है की ये भाषा और लीपी क्या है ? आप सुन रहे है , बोल रहे है , समझ रहे है ,उसे भाषा कहते है , चाहे वो कोई भी भाषा हो , लेकिन आप उस चीज़ को कही लिखना चाहते हो ?
तो आपको लिपि की जरुरत पड़ेगी (जैसे आज देवनागरी लिपि में संस्कृत भाषा है), ये जरूरी नहीं की आज आप जिस लिपि में संस्कृत देख रहे है , उसी लिपि में लाखो साल पहले भी संस्कृत हो , हो सकता है लाखो साल पहले "ब्राह्मी लिपि" में भी संस्कृत लिखा गया हो , लिपि से तात्पर्य है लिखने का तरीका/Design .

या ऐसा भी बहुत जगह अंकित है , की ये संस्कृत भाषा में जो भी वेद मन्त्र है , वो दूसरे ऋषियों से याद रखवाई जाती थी , थोड़ा थोड़ा सभी ऋषियों को बाँट दी जाती थी , और ऐसे ही वेदो की रक्षा की गयी । वेदो में परिवर्तन न ही हो सकती , न ही किया जा सकता , हमारे ऋषियों ने अनेक फार्मूला निकाल रखा था , वेदो को बचाने के लिए । 

वेदों में परिवर्तन क्यों नहीं हो सकता? ( यहाँ देख सकते है)

वेद का काल क्या है ?
वेदों के विषय में उनकी उत्पत्ति को लेकर विशेष रूप से विद्वानों में मतभेद हैं.कुछ मतभेद पाश्चात्य विद्वानों में हैं कुछ मतभेद भारतीय विद्वानों में हैं जैसे:-
1. वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?

स्वामी दयानंद जी ने अपने ग्रंथों में ईश्वर द्वारा वेदों की उत्पत्ति का विस्तार से वर्णन किया हैं. ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के पुरुष सूक्त (ऋक 10.90, यजु 31 , अथर्व 19.6) में सृष्टी उत्पत्ति का वर्णन हैं. परम पुरुष परमात्मा ने भूमि उत्पन्न की, चंद्रमा और सूर्य उत्पन्न किये, भूमि पर भांति भांति के अन्न उत्पन्न किये,पशु आदि उत्पन्न किये. उन्ही अनंत शक्तिशाली परम पुरुष ने मनुष्यों को उत्पन्न किया और उनके कल्याण के लिए वेदों का उपदेश दिया. इस प्रकार सृष्टि के आरंभ में मनुष्य की उत्पत्ति के साथ ही परमात्मा ने उसे वेदों का ज्ञान दे दिया. इसलिए वेदों की उत्पत्ति का काल मनुष्य जाति की उत्पत्ति के साथ ही हैं.
स्वामी दयानंद की इस मान्यता का समर्थन आपको ऋषि मनु और ऋषि वेदव्यास की ग्रन्थ से भी मिलेगा ।

परमात्मा ने सृष्टी के आरंभ में वेदों के शब्दों से ही सब वस्तुयों और प्राणियों के नाम और कर्म तथा लौकिक व्यवस्थायों की रचना की हैं. (मनु 1.21)
स्वयंभू परमात्मा ने सृष्टी के आरंभ में वेद रूप नित्य दिव्य वाणी का प्रकाश किया जिससे मनुष्यों के सब व्यवहार सिद्ध होते हैं (वेद व्यास,महाभारत शांति पर्व 232/24)
स्वामी दयानंद ने वेद उत्पत्ति विषय में सृष्टी की रचना काल को मन्वंतर,चतुर्युगियों व वर्षों के आधार पर संवत 1933 में 1960852977 वर्ष लिखा हैं अर्थात आज संवत 2072 में इस सृष्टी को 1960853116 वर्ष हो चुके हैं.

पाश्चात्य विद्वानों में वेद की रचना के काल को लेकर आपस में भी अनेक मतभेद हैं जैसे
मेक्स मूलर – 1200 से 1500 वर्ष ईसा पूर्व तक
मेकडोनेल- 1200 से 2000 वर्ष ईसा पूर्व तक
कीथ- 1200 वर्ष ईसा पूर्व तक
बुह्लर- 1500 वर्ष ईसा पूर्व
हौग – 2000 वर्ष ईसा पूर्व तक
विल्सन- 2000 वर्ष ईसा पूर्व तक
ग्रिफ्फिथ- 2000 वर्ष ईसा पूर्व तक
जैकोबी- 3000 वर्ष 4000 वर्ष ईसा पूर्व तक
इसका मुख्य कारण उनके काल निर्धारित करने की कसौटी हैं जिसमें यह विद्वान वेद की कुछ अंतसाक्षियों का सहारा लेते हैं. जैसे एक वेद मंत्र में भरता: शब्द आया हैं इसे महाराज भारत जो कुरुवंश के थे का नाम समझ कर इन मन्त्रों का काल राजा भरत के काल के समय का समझ लिया गया. इसी प्रकार परीक्षित: शब्द से महाभारत के राजा परीक्षित के काल का निर्णय कर लिया गया.
अगर यहीं वेद के काल निर्णय की कसौटी हैं तो कुरान में ईश्वर के लिए अकबर अर्थात महान शब्द आया हैं. इसका मतलब कुरान की उस आयत की रचना मुग़ल सम्राट अकबर के काल की समझी जानी चाहिए.
इससे यह सिद्ध होता हैं की वेद के काल निर्णय की यह कसौटी गलत हैं.

अंतत मेक्स मूलर ने भी हमारे वेदों की नित्यत्व के विचार की पुष्टि कर ही दी जब उन्होंने यह कहाँ की “हम वेद के काल की कोई अंतिम सीमा निर्धारित कर सकने की आशा नहीं कर सकते.कोई भी शक्ति यह स्थिर नहीं कर सकती की वैदिक सूक्त ईसा से 1000 वर्ष पूर्व, या 1500 वर्ष या 2000 वर्ष पूर्व अथवा 3000 वर्ष पूर्व बनाये गए थे. 
सन्दर्भ- Maxmuller in Physical Religion (Grifford Lectures) page 18 “

वेद का यह जो कल स्वामी दयानंद बताते हैं, वह इस कल्प की दृष्टी से हैं. यूँ तू हर कल्प के आरंभ में परमात्मा वेद का ज्ञान मनुष्यों को दिया करते हैं. भुत काल के कल्पों की भांति भविष्य के कल्पों में भी परमात्मा वेद का उपदेश देते रहेगें. परमात्मा में उनका यह देवज्ञान सदा विद्यमान रहता हैं. परमात्मा नित्य हैं इसलिए वेद भी नित्य हैं. इस दृष्टि से वेद का कोई काल नहीं हैं.


4. /// now next zakir naik claim:-
4. Similarly, there are differing opinions regarding the places where these books were compiled and the Rishis to whom these Scriptures were given. Inspite of these differences, the Vedas are considered to be the most authentic of the Hindu Scriptures and the real foundations of the Hindu Dharm////

Analysis (our response):-

मुझे प्रॉब्लम इस बात से है की , यहाँ ज़ाकिर नाइक क़ुरान को अल्लाह की किताब बतलाता है , लेकिन वेद को ऋषि की लिखी बतलाता है? means man-made?

वेदों के ईश्वरीय ज्ञान होने की वेद स्वयं ही अंत साक्षी जैसे-
१. सबके पूज्य,सृष्टीकाल में सब कुछ देने वाले और प्रलयकाल में सब कुछ नष्ट कर देने वाले उस परमात्मा से ऋग्वेद उत्पन्न हुआ, सामवेद उत्पन्न हुआ, उसी से अथर्ववेद उत्पन्न हुआ और उसी से यजुर्वेद उत्पन्न हुआ हैं- ऋग्वेद १०.९०.९, यजुर्वेद ३१.७, अथर्ववेद १९.६.१३

२. सृष्टी के आरंभ में वेदवाणी के पति परमात्मा ने पवित्र ऋषियों की आत्मा में अपनी प्रेरणा से विभिन्न पदार्थों का नाम बताने वाली वेदवाणी को प्रकाशित किया- ऋग्वेद १०.७१.१

३. वेदवाणी का पद और अर्थ के सम्बन्ध से प्राप्त होने वाला ज्ञान यज्ञ अर्थात सबके पूजनीय परमात्मा द्वारा प्राप्त होता हैं- ऋग्वेद १०.७१.३
४. मैंने (ईश्वर) ने इस कल्याणकारी  वेदवाणी को सब लोगों के कल्याण के लिए दिया हैं- यजुर्वेद २६.२

५. ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद स्कंभ अर्थात सर्वाधार परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं- अथर्ववेद १०.७.२०

६. यथार्थ ज्ञान बताने वाली वेदवाणियों को अपूर्व गुणों वाले स्कंभ नामक परमात्मा ने ही अपनी प्रेरणा से दिया हैं- अथर्ववेद १०.८.३३

७. हे मनुष्यों! तुम्हे सब प्रकार के वर देने वाली यह वेदरूपी माता मैंने प्रस्तुत कर दी हैं- अथर्ववेद १९.७१.१

८. परमात्मा का नाम ही जातवेदा इसलिए हैं की उससे उसका वेदरूपी काव्य उत्पन्न हुआ हैं- अथर्ववेद- ५.११.२.

आइये ईश्वरीय के सत्य सन्देश वेद को जाने
वेद के पवित्र संदेशों को अपने जीवन में ग्रहण कर अपने जीवन का उद्धार करे.

Admin - Manish Kumar (Arya)

zakir-naiks-quran-says-2+2=5 (ये भी देखे)

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