Thursday 31 December 2015

Flat Earth and Zakir Naik exposed PART-3


ZAKIR NAIK:-
(video duraration 12:55 to 13:30)
ज़ाकिर भाई यहाँ दो क़ुरान की आयत दिया और विज्ञान समझा रहा है , और कह रहा है की 1400 साल पहले ये विज्ञान क़ुरआन में कैसे आया । वो आयात और विज्ञान है ...

QURAN 21:30 (zakir naik's BIG-BANG THEORY?)

Have those who disbelieved not considered that the heavens and the earth were a joined entity, and We separated them and made from water every living thing? Then will they not believe?

अल-अंबिया (Al-'Anbya'):30 - क्या उन लोगों ने जिन्होंने इनकार किया, देखा नहीं कि ये आकाश और धरती बन्द थे। फिर हमने उन्हें खोल दिया। और हमने पानी से हर जीवित चीज़ बनाई, तो क्या वे मानते नहीं?

QURAN 79:30 (zakir naik,s spherical earth theory)

zakir naik:-Earth is geo-spherical in shapeThe Qur’an mentions the actual shape of the earth in the following verse:“And we have made the earth egg shaped”. [Al-Qur’an 79:30]
The Arabic word Dahaha means egg shaped. It also means an expanse. Dahaha is derived from Duhiya which specifically refers to the egg of an ostrich which is geospherical in shape, exactly like the shape of the earth.
---------------------------------------------------------

समीक्षा :- मित्रो ज़ाकिर नाइक की दोनों बाते , दोनों विज्ञान , क़ुरान में कही भी नहीं है ।
बिगबैंग थ्योरी वाला आयत मेरे वैज्ञानिक दिमाग से बाहर चला गया,खैर फिर भी आगे हम उसकी समीक्षा जरूर करेंगे । फिलहाल हम ये देखते है की अल्लाह ने पृथ्वी को चपटी बनाई है या फिर GEO-SPHERICAL SHAPE में ???

Qur'an 79:30 Translations

Yusuf Ali: And the earth, moreover, hath He extended (to a wide expanse); 
Pickthal: And after that He spread the earth,  
Arberry: and the earth-after that He spread it out, 
Shakir: And the earth, He expanded it after that. 
Sarwar: After this, He spread out the earth, 
Hilali/Khan: And after that He spread the earth;  
Malik: After that He spread out the earth, 
Maulana Ali: And the earth, He cast it after that. 
Free Minds: And the land after that He spread out.

अन-नाजीयत (An-Nazi`at):30 - और धरती को देखो! इसके पश्चात उसे फैलाया;
मित्रो मैंने इतने इस्लामिक विद्वान का TRANSLATION दिया , पर किसी ने भी पृथ्वी को EGG SHAPE नहीं कहा , सिर्फ ज़ाकिर नाइक ने इसे EGG SHAPE कहा । चलिए फिर भी देखता हूँ ।

चलिए फिर से ज़ाकिर नाइक के प्रमाणों पर नजर डालते है ,

The Arabic word Dahaha means egg shaped. It also means an expanse. Dahaha is derived from Duhiya which specifically refers to the egg of an ostrich which is geospherical in shape, exactly like the shape of the earth.

QURAN 79:30 Transliteration: Waal-arda baAAda thalika dahaha
ज़ाकिर नाइक का कहना है की "दहाहा का मतलब अंडाकार है" और "फैलाना भी है" , लेकिन अल्लाह यहाँ पे बता रहा है की पृथ्वी अंडाकार है वो भी OSTRICH के अंडे की तरह ।

तर्क यहाँ पे ये है की "दहाहा" शब्द DERIVED हुआ है "दुहिया" शब्द से , और दुहिया शब्द  ROOT WORD है,
मतलब इसी शब्द से अनेक शब्द DERIVED होती है और "दहाहा" शब्द भी इसी से DERIVED हुई है ।
और दुहिया शब्द OSTRICH के EGG को refers करता है , और ostrich egg "geospherical shape"
में होता है लगभग , तो यहाँ अल्लाह पृथ्वी को "geo-spherical" बता रहा है ।

:) मित्रो यहाँ पे ARABIC GRAMMAR की बात आ गयी है , तो हमें अब अरबी व्याकरण की भी ज्ञान ले लेनी चाहिए .....
ostrich egg in arabic word call :-
"daewat bidat alnnaeama" 

 तो मित्रो duhiya  शब्द का मतलब ostrich egg नहीं होता , लेकिन ज़ाकिर नाइक ये भी बोल रहा है की ये duhiya शब्द refers करता है "ostrich egg" को  which is geospherical in shape ....

ज़ाकिर नाइक का दूसरा पॉइंट लेके हम आगे बढ़ते है -
Dahaha is derived from Duhiya ?? 

मित्रो ये दूसरा झूठ था , अरबी व्याकरण में "दुहिया" शब्द root word नहीं है । 

प्रमाण देखे और समझे :--arabic में , हर एक शब्द अपने root से derived हुई है , और root word में ज्यादा से ज्यादा three letters ही होते है , और उसका तरीका इस तरह से होता है , एक example देखे निचे ,For example, "ka-ta-ba" (to write) is the root for many words such as kitab (book), maktaba (library), katib (author), maktoob (written), kitabat (writings) et cetera.

चलिए अब देखते duhiya word को , तो भाई duhiya word "root -word" नहीं है , अरबी व्याकरण में ये "NOUN" है ।
और एक noun को root word कहना "biggest gramatical error" है । 


ज़ाकिर भाई को ARABIC GRAMMAR का भी ज्ञान नहीं है । 


अब सवाल आता है की फिर "dahaha" का root word "duhiya" नहीं है , क्योकि duhiya तो noun है ।
तो फिर क्या है इसका root word , और duhiya अगर noun है , तो इसका भी root word होगा ???


जी तो दोनों word "duhiya" और "dahaha" का एक ही root word है , पर derived होने के बाद सभी ही अलग अलग मीनिंग देते है , इसी process से अनेक शब्द रचना होती है , जैसा की एक example ऊपर दिया गया । 

[ "da-ha-wa" is a root word ............... ] 

जैसा की मैंने एक ऊपर में example दिया था  "ka-ta-ba" वैसे ही ये दूसरा root word है "da-ha-wa"
और 
"da-ha-wa" से ही दोनों "duhiya" और "dahaha" derived हुआ है ।Furthermore, Duhiya does not even mean the egg of an ostrich.मित्रो अगर आप फिर भी आँख बंद करकर मान ले की नहीं जबरदस्ती हम कहेंगे की "duhiya" ही root word है ?
तो मित्रो हमें पता है आप लोग ऐसी बेवकूफी नहीं करेंगे , पर मुस्लिम मित्र जरुर करेंगे , तो उनके लिए मैं तैयार हूँ ,
ये झूठ मानने के लिए लेकिन फिर भी arbi grammar में "duhiya" का meaning "ostrich egg" नहीं होता है। 


तो मित्रो ज़ाकिर भाई का शुरुआत में ही झूठ पकड़ा गया , इसका मतलब हुआ की , जब "duhiya" word
"dahaha" word का root word ही नहीं है , तो फिर "dahaha" word जो mention है quran 79:30 में
उसका मतलब तो यही हुआ "spread out like a carpet" .... जैसा की अनेक मुस्लिम विद्वान translation
दिया है (ऊपर देख ले मैंने 10 विद्वानो का translation दिया है)

तो ज़ाकिर भाई अल्लाह को ज्ञान ही नहीं की पृथ्वी का shape क्या है , क्योकि वो creator ही नहीं है ।
अल्लाह सिर्फ मोहम्मद के दिमाग की उपज है । अब मैं आपको क़ुरान से सारे आयते दिखाता हूँ , जिसमे
अल्लाह EARTH को चपटी ,चौकोर ,चटाई की तरह ही बनाई है । 


This is what the most respected dictionaries have to say on this subject:

(1).  Lisan Al Arab
الأُدْحِيُّ و الإدْحِيُّ و الأُدْحِيَّة و الإدْحِيَّة و الأُدْحُوّة مَبِيض النعام في الرمل , وزنه أُفْعُول من ذلك , لأَن النعامة تَدْحُوه برِجْلها ثم تَبِيض فيه وليس للنعام عُشٌّ . و مَدْحَى النعام : موضع بيضها , و أُدْحِيُّها موضعها الذي تُفَرِّخ فيه .ِ
Translation: Al-udhy, Al-idhy, Al-udhiyya, Al-idhiyya, Al-udhuwwa:
The place in sand where an ostrich lays its egg. That's because the ostrich spreads out the earth with its feet then lays its eggs there, an ostrich doesn't have a nest.
الدَّحْوُ البَسْطُ . دَحَا الأَرضَ يَدْحُوها دَحْواً بَسَطَها . وقال الفراء في قوله والأَرض بعد ذلك دَحاها قال : بَسَطَها ; قال شمر : وأَنشدتني أَعرابية : الحمدُ لله الذي أَطاقَا
بَنَى السماءَ فَوْقَنا طِباقَا
ثم دَحا الأَرضَ فما أَضاقا
قال شمر : وفسرته فقالت دَحَا الأَرضَ أَوْسَعَها ; وأَنشد ابن بري لزيد بن عمرو بن نُفَيْل : دَحَاها , فلما رآها اسْتَوَتْ
على الماء , أَرْسَى عليها الجِبالا
و دَحَيْتُ الشيءَ أَدْحاهُ دَحْياً بَسَطْته , لغة في دَحَوْتُه ; حكاها اللحياني . وفي حديث عليّ وصلاتهِ , اللهم دَاحِيَ المَدْحُوَّاتِ يعني باسِطَ الأَرَضِينَ ومُوَسِّعَها , ويروى ; دَاحِيَ المَدْحِيَّاتِ . و الدَّحْوُ البَسْطُ . يقال : دَحَا يَدْحُو و يَدْحَى أَي بَسَطَ ووسع 
Translation: To daha the earth: means to spread it out. 
Then it mentions a couple of Arabic poems that confirm this meaning. 
Anyone who can read Arabic will find this to be the definitive proof that Daha means to spread out.
(2). Al Qamoos Al Muheet
(دَحَا): الله الأرضَ (يَدْحُوهَا وَيَدْحَاهَا دَحْواً) بَسَطَها
Translation: Allah daha the Earth: He spread it out.
(3). Al Waseet
دَحَا الشيءَ: بسطه ووسعه. يقال: دحا اللهُ الأَرض 
Translation: To daha something: means to spread it out. For example: Allah daha the Earth.

-----------------------------------------------------------------------
मित्रो ऊपर मैंने कुछ अरबी poem और dictionary से example दिया की अरबी में daahaha word का meaning "spread out" ही लिया है , और क़ुरान के translation में भी सभी विद्वान यही meaning लिया है ।
मित्रो "dahaha" word का "ostrich egg" से कोई लेना देना ही नहीं है, न ही "duhiya" का ostrich egg से लेना देना है ?


अब क़ुरान की तरफ चलते है , 
Qur'an 88:20والى الارض كيف سطحتWa-ila al-ardi kayfa sutihatAnd at the Earth, how it is spread out?
Notice the word سَطَّحَ . If you do a word search in an Arabic Qur'an text file you will find the word سطحت , feminine for سَطَّحَ
سَطَّحَ = outspread , unfold , unroll , roll , lengthen , level , range , pave , pervade , circulate , grade , reach , even , level off , spread out , prostrate , plane , outstretch, flat , flatten , even , smoothen.
Qur'an 91:6والارض وماطحاهاWaal-ardi wama tahahaBy the Earth and its (wide) expanse
fur'an 2:22الذي جعل لكم الارض فراشا والسماء بناء وانزل من السماء ماء فاخرج به من الثمرات رزقا لكم فلا تجعلوا لله اندادا وانتم تعلمونAllathee jaAAala lakumu al-arda firashan waalssamaa binaan waanzala mina alssama-i maan faakhraja bihi mina alththamarati rizqan lakum fala tajAAaloo lillahi andadan waantum taAAlamoona
Who has made the earth your couch, and the heavens your canopy; and sent down rain from the heavens; and brought forth therewith Fruits for your sustenance; then set not up rivals unto Allah when ye know (the truth). 
Qur'an 2:22 The word translated as canopy is binaa or binaan ( بِنَاء ). This word means "building". The heavens are as a multi-story building over the earth. There are seven layers or stories to this building called the heavens. The heavens are built on a "flat" foundation called "the earth". The tafsir of 'ibn Kathir confirms this:These Ayat indicate that Allah started creation by creating earth, then He made heaven into seven heavens. This is how building usually starts, with the lower floors first and then the top floors, 
Qur'an 18:86حتى اذا بلغ مغرب الشمس وجدها تغرب في عين حمئة ووجد عندها قوما قلنا ياذا القرنين اما ان تعذب واما ان تتخذ فيهم حسناHatta itha balagha maghriba alshshamsi wajadaha taghrubu fee AAaynin hami-atin wawajada AAindaha qawman qulna ya tha alqarnayni imma an tuAAaththiba wa-imma an tattakhitha feehim husnan
Until, when he reached the setting of the sun, he found it set in a spring of murky water: Near it he found a People: We said: "O Zul-qarnain! (thou hast authority,) either to punish them, or to treat them with kindness." 
Qur'an 18:86 This verse on the setting of the sun in murky water supports that the earth is flat in the Qur'an.
Qur'an 18:47ويوم نسير الجبال وترى الارض بارزة وحشرناهم فلم نغادر منهم احداWayawma nusayyiru aljibala watara al-arda barizatan wahasharnahum falam nughadir minhum ahadanOne Day We shall remove the mountains, and thou wilt see the earth as a level stretch, and We shall gather them, all together, nor shall We leave out any one of them. 

:) तो मित्रों , अब और कितना प्रमाण दू , इस ज़ाकिर नाइक फ्रॉड का पोल खोलने के लिए ?

अब ज़ाकिर नाइक का big-bang theory अगले part -4 में देखेंगे ;)
ADMIN- MANISH KUMAR (ARYA)

Wednesday 30 December 2015

चाँद मियां (साईं बाबा) exposed


{सर्वाधिकार सुरक्षित:- प्रस्तुत लेख का मंन्तव्य साँई के प्रति आलोचना का नही बल्कि उनके प्रति स्पष्ट जानकारी प्राप्त करने का है। लेख मेँ दिये गये प्रमाणोँ की पुष्टि व सत्यापन “साँई सत्चरित्र” से करेँ, जो लगभग प्रत्येक साईँ मन्दिरोँ मेँ उपलब्ध है। चूँकि भारतवर्ष मेँ हिन्दू पौराणिक लोग अवतारवाद मेँ ईश्वर को साकार रूप मेँ स्वीकार करते हैँ। अतएव यहाँ पौराणिक तर्कोँ के द्वारा भी सत्य का विश्लेषण किया गया है।}

आज आर्यावर्त मेँ तथाकथित भगवानोँ का एक दौर चल पड़ा है। यह संसार अंधविश्वास और तुच्छ ख्याति- सफलता के पीछे भागने वालोँ से भरा हुआ है।
“यह विश्वगुरू आर्यावर्त का पतन ही है कि आज परमेश्वर की उपासना की अपेक्षा लोग गुरूओँ, पीरोँ और कब्रोँ पर सिर पटकना ज्यादा पसन्द करते हैँ।”
आजकल सर्वत्र साँई बाबा की धूम है, कहीँ साँई चौकी, साँई संध्या और साँई पालकी मेँ मुस्लिम कव्वाल साँई भक्तोँ के साथ साँई जागरण करने मेँ लगे हैँ। मन्दिरोँ मेँ साँई की मूर्ति सनातन काल के देवी देवताओँ के साथ सजी है। मुस्लिम तान्त्रिकोँ ने भी अपने काले इल्म का आधार साँई बाबा को बना रखा है व उनकी सक्रियता सर्वत्र देखी जा सकती है। इन सबके बीच साँई बाबा को कोई विष्णु का ,कोई शिव का तथा कोई दत्तात्रेय का अवतार बतलाता है।
परन्तु साँई बाबा कौन थे? उनका आचरण व व्यवहार कैसा था? इन सबके लिए हमेँ निर्भर होना पड़ता है “साँई सत्चरित्र” पर!
जी हाँ ,दोस्तोँ! कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीँ जो रामायण व महाभारत का नाम न जानता हो? ये दोनोँ महाग्रन्थ क्रमशः श्रीराम और कृष्ण के उज्ज्वल चरित्र को उत्कर्षित करते हैँ, उसी प्रकार साईँ के जीवनचरित्र की एकमात्र प्रामाणिक उपलब्ध पुस्तक है- “साँईँ सत्चरित्र”
इस पुस्तक के अध्ययन से साईँ के जिस पवित्र चरित्र का अनुदर्शन होता है,
क्या आप उसे जानते हैँ?
चाहे चीलम पीने की बात हो, चाहे स्त्रियोँ को अपशब्द कहने की?
चाहे माँसाहार की बात हो, या चाहे धर्मद्रोह, देशद्रोह व इस्लामी कट्टरपन की….
इन सबकी दौड़ मेँ शायद ही कोई साँई से आगे निकल पाये। यकीन नहीँ होता न?
तो आइये चलकर देखते हैँ…
इसके लिए शिरडी साँई के विषय मेँ व्याप्त भ्रान्तियोँ की क्रमबध्द समीक्षा करना चाहेँगे।…
[A] क्या साँईं ईश्वर या कोई अवतारी पुरूष है?
साईं बाबा का जीवन काल 1835 से 1918 तक था , उनके जीवन काल के मध्य हुई घटनाये जो मन में शंकाएं पैदा करती हैं की क्या वो सच में भगवान थे , क्या वो सच में लोगो का दुःख दूर कर सकते है?
प्रश्नः
{1}भारतभूमि पर जब-जब धर्म की हानि हुई है और अधर्म मेँ वृध्दि हुई है, तब-तब परमेश्वर साकाररूप मेँ अवतार ग्रहण करते हैँ और तबतक धरती नहीँ छोड़ते, जबतक सम्पूर्ण पृथ्वी अधर्महीन नहीँ हो जाती। लेकिन साईँ के जीवनकाल मेँ पूरा भारत गुलामी की बेड़ियोँ मे जकड़ा हुआ था, मात्र अंग्रेजोँ के अत्याचारोँ से मुक्ति न दिला सका तो साईँ अवतार कैसे?
{2}राष्ट्रधर्म कहता है कि राष्ट्रोत्थान व आपातकाल मेँ प्रत्येक व्यक्ति का ये कर्तव्य होना चाहिए कि वे राष्ट्र को पूर्णतया आतंकमुक्त करने के लिए सदैव प्रयासरत रहेँ, परन्तु गुलामी के समय साईँ किसी परतन्त्रता विरोधक आन्दोलन तो दूर, न जाने कहाँ छिप कर बैठा था,जबकि उसके अनुयायियोँ की संख्या की भी कमी नहीँ थी, तो क्या ये देश से गद्दारी के लक्षण नहीँ है?
{3}यदि साँईँ चमत्कारी था तो देश की गुलामी के समय कहाँ छुपकर बैठा था?
{4}भारत का सबसे बड़ा अकाल साईं बाबा के जीवन के दौरान पड़ा
>(a) 1866 में ओड़िसा के अकाल में लगभग ढाई लाख भूंख से मर गए
>(b) 1873 -74 में बिहार के अकाल में लगभग एक लाख लोग प्रभावित हुए ….भूख के कारण लोगो में इंसानियत ख़त्म हो गयी थी|
>(c ) 1875 -1902 में भारत का सबसे बड़ा अकाल पड़ा जिसमें लगभग 6 लाख लोग मरे गएँ|
साईं बाबा ने इन लाखो लोगो को अकाल से क्यूँ पीड़ित होने दिया यदि वो भगवान या चमत्कारी थे? क्यूँ इन लाखो लोगो को भूंख से तड़प -तड़प कर मरने दिया?
{5} साईं बाबा के जीवन काल के दौरान बड़े भूकंप आये जिनमें हजारो लोग मरे गए
(a) १८९७ जून शिलांग में
(b) १९०५ अप्रैल काँगड़ा में
(c) १९१८ जुलाई श्री मंगल असाम में
साईं बाबा भगवान होते हुए भी इन भूकम्पों को क्यूँ नहीं रोक पाए?…क्यूँ हजारो को असमय मारने दिया ?
[B]साँई माँसाहार का प्रयोग करता था व स्वयं जीवहत्या करता था?
प्रमाण:-
(1)मस्जिद मेँ एक बकरा बलि देने के लिए लाया गया। वह अत्यन्त दुर्बल और मरने वाला था। बाबा ने उनसे चाकू लाकर बकरा काटने को कहा।
-:अध्याय 23. पृष्ठ 161.
(2)तब बाबा ने काकासाहेब से कहा कि मैँ स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूँगा।
-:अध्याय 23. पृष्ठ 162.
(3)फकीरोँ के साथ वो आमिष(मांस) और मछली का सेवन करते थे।
-:अध्याय 5. व 7.
(4)कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल अर्थात् नमकीन पुलाव।
-:अध्याय 38. पृष्ठ 269.
(5)एक एकादशी के दिन उन्होँने दादा कलेकर को कुछ रूपये माँस खरीद लाने को दिये। दादा पूरे कर्मकाण्डी थे और प्रायः सभी नियमोँ का जीवन मेँ पालन किया करते थे।
-:अध्याय 32. पृष्ठः 270.
(6)ऐसे ही एक अवसर पर उन्होने दादा से कहा कि देखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है? दादा ने योँ ही मुँहदेखी कह दिया कि अच्छा है। तब बाबा कहने लगे कि तुमने न अपनी आँखोँ से ही देखा है और न ही जिह्वा से स्वाद लिया, फिर तुमने यह कैसे कह दिया कि उत्तम बना है? थोड़ा ढक्कन हटाकर तो देखो। बाबा ने दादा की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मेँ डालकर बोले -”अपना कट्टरपन छोड़ो और थोड़ा चखकर देखो”।
-:अध्याय 38. पृष्ठ 270.
प्रश्न:-
{1}क्या साँई की नजर मेँ हलाली मेँ प्रयुक्त जीव ,जीव नहीँ कहे जाते?{2}क्या एक संत या महापुरूष द्वारा क्षणभंगुर जिह्वा के स्वाद के लिए बेजुबान नीरीह जीवोँ का मारा जाना उचित होगा?{3}सनातन धर्म के अनुसार जीवहत्या पाप है।
तो क्या साँई पापी नहीँ?{4}एक पापी जिसको स्वयं क्षणभंगुर जिह्वा के स्वाद की तृष्णा थी, क्या वो आपको मोक्ष का स्वाद चखा पायेगा?{5}तो क्या ऐसे नीचकर्म करने वाले को आप अपना आराध्य या ईश्वर कहना चाहेँगे? 
[C] साँई हिन्दू है या मुस्लिम? व क्या हिन्दू- मुस्लिम एकता का प्रतीक है?
कई साँईभक्त अंधश्रध्दा मेँ डूबकर कहते हैँ कि साँई न तो हिन्दू थे और न ही मुस्लिम। इसके लिए अगर उनके जीवन चरित्र का प्रमाण देँ तो दुराग्रह वश उसके भक्त कुतर्कोँ की झड़ियाँ लगा देते हैँ।
ऐसे मेँ अगर साँई खुद को मुल्ला होना स्वीकार करे तो मुर्देभक्त क्या कहना चाहेँगे?
जी, हाँ!
प्रमाणः
(1)शिरडी पहुँचने पर जब वह मस्जिद मेँ घुसा तो बाबा अत्यन्त क्रोधित हो गये और उसे उन्होने मस्जिद मेँ आने की मनाही कर दी। वे गर्जन कर कहने लगे कि इसे बाहर निकाल दो। फिर मेधा की ओर देखकर कहने लगे कि तुम तो एक उच्च कुलीन ब्राह्मण हो और मैँ निम्न जाति का यवन (मुसलमान)। तुम्हारी जाति भ्रष्ट हो जायेगी।
-:अध्याय 28. पृष्ठ 197.
(2)मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैँ तो एक फकीर(मुस्लिम, हिन्दू साधू कहे जाते हैँ फकीर नहीँ) हूँ।मुझे गंगाजल से क्या प्रायोजन?
-:अध्याय 32. पृष्ठ 228.
(3)महाराष्ट्र मेँ शिरडी साँई मन्दिर मेँ गायी जाने वाली आरती का अंश-
“गोपीचंदा मंदा त्वांची उदरिले!
मोमीन वंशी जन्मुनी लोँका तारिले!”
उपरोक्त आरती मेँ “मोमीन” अर्थात् मुसलमान शब्द स्पष्ट आया है।
(4)मुस्लिम होने के कारण माँसाहार आदि का सेवन करना उनकी पहली पसन्द थी।
प्रश्नः
{1}साँई जिन्दगी भर एक मस्जिद मेँ रहा, क्या इससे भी वह मुस्लिम सिध्द नहीँ हुआ? यदि वह वास्तव मेँ हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक होता तो उसे मन्दिर मेँ रहने मेँ क्या बुराई थी?{2}सिर से पाँव तक इस्लामी वस्त्र, सिर को हमेशा मुस्लिम परिधान कफनी मेँ बाँधकर रखना व एक लम्बी दाढ़ी, यदि वो हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक होता तो उसे ऐसे ढ़ोँग करने की क्या आवश्यकता थी?
क्या ये मुस्लिम कट्टरता के लक्षण नहीँ हैँ?{3}वह जिन्दगी भर एक मस्जिद मेँ रहा, परन्तु उसकी जिद थी की मरणोपरान्त उसे एक मन्दिर मेँ दफना दिया जाये, क्या ये न्याय अथवा धर्म संगत है? “ध्यान रहे ताजमहल जैसी अनेक हिन्दू मन्दिरेँ व इमारते ऐसी ही कट्टरता की बली चढ़ चुकी हैँ।”{4}उसका अपना व्यक्तिगत जीवन कुरान व अल-फतीहा का पाठ करने मेँ व्यतीत हुआ, वेद व गीता नहीँ?, तो क्या वो अब भी हिन्दू मुस्लिम एकता का सूत्र होने का हक रखता है?{5}उसका सर्वप्रमुख कथन था “अल्लाह मालिक है।”परन्तु मृत्युपश्चात् उसके द्वितीय कथन “सबका मालिक एक है” को एक विशेष नीति के तहत सिक्के के जोर पर प्रसारित किया गया। यदि ऐसा होता तो उसने ईश्वर-अल्लाह के एक होने की बात क्योँ नहीँ की?


अन्य प्रमुख आक्षेप:
साईं एक टूटी हुयी मस्जिद में रहा करते थे और सर पर कफनी बंधा करते थे. सदा ” अल्लाह मालिक” एवं ” सबका मालिक एक” पुकारा करते थे ये दोनों ही शब्द मुस्लिम धर्म से संभंधित हैं.साईं  का जीवन चरित्र उनके एक भक्त हेमापंदित ने लिखा है. वो लिखते हैं की
बाबा एक दिन गेहूं पीस रहे थे. ये बात सुनकर गाँव के लोग एकत्रित हो गए और चार औरतों ने उनके हाथ से चक्की ले ली और खुद गेहूं पिसना प्रारंभ कर दिया. पहले तो बाबा क्रोधित हुए फिर मुस्कुराने लगे. जब गेंहूँ पीस गए त्तो उन स्त्रियों ने सोचा की गेहूं का बाबा क्या  करेंगे और उन्होंने उस पिसे हुए गेंहू को आपस में बाँट लिया. ये देखकर बाबा अत्यंत क्रोधित हो उठे और अप्सब्द कहने लगे -” स्त्रियों क्या तुम पागल हो गयी हो? तुम किसके बाप का मॉल हड़पकर ले जा रही हो? ” फिर उन्होंने कहा की आटे को ले जा कर गाँव की सीमा पर दाल दो. उन दिनों गाँव मिएँ हैजे का प्रकोप था और इस आटे को गाँव की सीमा पर डालते ही गाँव में हैजा ख़तम हो गया.  (अध्याय १ साईं सत्चरित्र )

१. मान्यवर सोचने की बात है की ये कैसे भगवन हैं जो स्त्रियों को गालियाँ दिया करते हैं हमारी संस्कृति में  तो स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है और कहागया है की यात्रा नार्यस्तु पुजनते रमन्ते तत्र देवता . आटा  गाँव के चरों और डालने से कैसे हैजा दूर हो सकता है?  फिर इन भगवान्  ने केवल शिर्डी में ही फैली हुयी बीमारइ के बारे में ही क्यूँ सोचा ? क्या ये केवल शिर्डी के ही भगवन थे?

. साईं सत्चरित्र के लेखक ने इन्हें क्रिशन का अवतार बताया गया है और कहा गया है की पापियों  का नाश करने के लिए उत्पन्न हुए थे परन्तु इन्हीं के समय में प्रथम विश्व युध्ध हुआ था और केवल यूरोप के ही ८० लाख सैनिक इस युध्द में मरे गए थे और जर्मनी के ७.५ लाख लोग भूख की वजह से मर गए थे. तब ये भगवन कहाँ थे. (अध्याय 4 साईं सत्चरित्र )

. १९१८ में साईं   बाबा की मृत्यु हो गयी. अत्यंत आश्चर्य  की   बात है की जो इश्वर अजन्मा है अविनाशी है वो भी मर गया.  भारतवर्ष में जिस समय अंग्रेज कहर धा  रहे थे. निर्दोषों को मारा जा रहा था अनेकों प्रकार की यातनाएं दी जा रहीं थी अनगिनत बुराइयाँ समाज में व्याप्त थी उस समय तथाकथित भगवन बिना कुछ किये ही अपने लोक को वापस चले गए. हो सकता है की बाबा की नजरों में   भारत के स्वतंत्रता सेनानी अपराधी  थे और ब्रिटिश समाज सुधारक !

४. साईं  बाबा चिलम भी पीते थे. एक बार बाबा ने अपने चिमटे को जमीं में घुसाया और उसमें  से अंगारा बहार निकल आया और फिर जमीं में जोरो से प्रहार किया तो पानी निकल आया और बाबा ने अंगारे से चिलम  जलाई और पानी से कपडा गिला किया और चिलम पर लपेट लिया. (अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) बाबा नशा करके क्या सन्देश देना चाहते थे और जमीं में चिमटे से अंगारे निकलने का क्या प्रयोजन था क्या वो जादूगरी दिखाना कहते थे?  इस प्रकार के किसी कार्य  से मानव जीवन का उद्धार तो नहीं हो सकता हाँ ये पतन के साधन अवश्य हें .

५. शिर्डी में एक पहलवान था उससे बाबा का मतभेद हो गया और दोनों में कुश्ती हुयी और बाबा हार गए(अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) . वो भगवान् का रूप होते हुए भी अपनी ही कृति मनुष्य के हाथों पराजित हो गए?

. बाबा को प्रकाश से बड़ा अनुराग था और वो तेल के दीपक जलाते थे और इस्सके लिए तेल की भिक्षा लेने के लिए जाते थे एक बार लोगों ने देने से मना  कर दिया तो बाबा ने पानी से ही दीपक जला दिए.(अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) आज तेल के लिए युध्ध हो रहे हैं. तेल एक ऐसा पदार्थ है जो आने वाले समय में समाप्त हो जायेगा इस्सके भंडार सीमित हें  और आवश्यकता ज्यादा. यदि बाबा के पास ऐसी शक्ति थी जो पानी को तेल में बदल देती थी तो उन्होंने इसको किसी को बताया क्यूँ नहीं?

७. गाँव में केवल दो कुएं थे जिनमें से एक प्राय सुख जाया करता था और दुसरे का पानी खरा था. बाबा ने फूल डाल  कर  खारे  जल को मीठा बना दिया. लेकिन कुएं का जल कितने लोगों के लिए पर्याप्त हो सकता था इसलिए जल बहार से मंगवाया गया.(अध्याय 6 साईं सत्चरित्र) वर्ल्ड हेअथ ओर्गानैजासन    के अनुसार विश्व की ४० प्रतिशत से अधिक लोगों को शुध्ध पानी पिने को नहीं मिल पाता. यदि भगवन पीने   के पानी की समस्या कोई समाप्त करना चाहते थे तो पुरे संसार की समस्या को समाप्त करते लेकिन वो तो शिर्डी के लोगों की समस्या समाप्त नहीं कर सके उन्हें भी पानी बहार से मांगना पड़ा.  और फिर खरे पानी को फूल डालकर कैसे मीठा बनाया जा सकता है?

8. फकीरों के साथ वो मांस और मच्छली का सेवन करते थे. कुत्ते भी उनके भोजन पत्र में मुंह डालकर स्वतंत्रता पूर्वक खाते थे.(अध्याय 7 साईं सत्चरित्र ) अपने स्वार्थ वश किसी प्राणी को मारकर  खाना किसी इश्वर का तो काम नहीं हो सकता और कुत्तों के साथ खाना खाना किसी सभ्य मनुष्य की पहचान भी नहीं है.
अमुक चमत्कारों को बताकर जिस तरह उन्हें  भगवान्  की पदवी दी गयी है इस तरह के चमत्कार  तो सड़कों पर जादूगर दिखाते हें . काश इन तथाकथित भगवान् ने इस तरह की जादूगरी दिखने की अपेक्षा कुछ सामाजिक उत्तथान और विश्व की उन्नति एवं  समाज में पनप रहीं समस्याओं जैसे बाल  विवाह सती प्रथा भुखमरी आतंकवाद भास्ताचार अआदी के लिए कुछ कार्य किया होता!

9.साँईँ के चमत्कारिता के पाखंड और झूठ का पता चलता है, उसके “साँईँ चालिसा” से।
दोस्तोँ आईये पहले चालिसा का अर्थ जानलेते है:-
“हिन्दी पद्य की ऐसी विधा जिसमेँ चौपाईयोँ की संख्या मात्र 40 हो, चालिसा कहलाती है।”
क्या आपने कभी गौर किया है?.?……
कि साँईँ चालिसा मेँ कितनी चौपाईयाँ हैँ?
यदि नहीँ, तो आज ही देखेँ….
जी हाँ, कुल 100 or 200.
तनिक विचारेँ क्या इतने चौपाईयोँ के होने पर भी उसे चालिसा कहा जा सकता है?
नहीँ न?…..
बिल्कुल सही समझा आप लोगोँ ने….
जब इन व्याकरणिक व आनुशासनिक नियमोँ से इतना से इतना खिलवाड़ है, तो साईँ केझूठे पाखंडवादी चमत्कारोँ की बात ही कुछ और है!
कितने शर्म की बात है कि आधुनिक विज्ञान के गुणोत्तर प्रगतिशिलता के बावजूद लोग साईँ जैसे महापाखंडियोँ के वशिभूत हो जा रहे हैँ॥
क्या इस भूमि की सनातनी संताने इतनी बुद्धिहीन हो गयी है कि जिसकी भी काल्पनिक महिमा के गपोड़े सुन ले उसी को भगवान और महान मानकर भेडॉ की तरह उसके पीछे चल देती है ?
इसमे हमारा नहीं आपका ही फायदा है …. श्रद्धा और अंधश्रद्धा में फर्क होता है, श्रद्धालु बनो …. भगवान को चुनो …
Reality of Shirdi Sai
Truth Of Sai Baba
1 – साई को अगर ईश्वर मान बैठे हो अथवा ईश्वर का अवतार मान बैठे हो तो क्यो?आप हिन्दू है तो सनातन संस्कृति के किसी भी धर्मग्रंथ में साई महाराज का नाम तक नहीं है।तो धर्मग्रंथो को झूठा साबित करते हुये किस आधार पर साई को भगवान मान लिया ?( और पौराणिक ग्रंथ कहते है कि कलयुग में दो अवतार होने है ….एक भगवान बुद्ध का हो चुका दूसरा कल्कि नाम से अंतिम चरण में होगा……. ।){ वेदों में तो अवतारवाद नहीं हैं |}
2 – अगर साई को संत मानकर पूजा करते हो तो क्यो? क्या जो सिर्फ अच्छा उपदेश दे दे या कुछ चमत्कार दिखा दे वो संत हो जाता है?साई महाराज कभी गोहत्या पर बोले?, साई महाराज ने उस समय उपस्थित कौन सी सामाजिक बुराई को खत्म किया या करने का प्रयास किया?ये तो संत का सबसे बड़ा कर्तव्य होता है ।और फिर संत ही पूजने है तो कमी थी क्या ?फकीर ही मिला ?
3- अगर सिर्फ दूसरों से सुनकर साई के भक्त बन गए हो तो क्यो? क्या अपने धर्मग्रंथो पर या अपने भगवान पर विश्वास नहीं रहा ?
4 – अगर आप पौराणिक हो और अगर मनोकामना पूर्ति के लिए साई के भक्त बन गए हो तो तुम्हारी कौन सी ऐसी मनोकामना है जो कि  भगवान शिवजी , या श्री विष्णु जी, या कृष्ण जी, या राम जी पूरी नहीं कर सकते सिर्फ साई ही कर सकता है?तुम्हारी ऐसी कौन सी मनोकामना है जो कि वैष्णो देवी, या हरिद्वार या वृन्दावन, या काशी या बाला जी में शीश झुकाने से पूर्ण नहीं होगी ..वो सिर्फ शिरडी जाकर माथा टेकने से ही पूरी होगी।
5– आप खुद को राम या कृष्ण या शिव भक्त कहलाने में कम गौरव महसूस करते है क्या जो साई भक्त होने का बिल्ला टाँगे फिरते हो …. क्या राम और कृष्ण से प्रेम का क्षय हो गया है …. ?
6– ॐ साई राम ……..ॐ हमेशा मंत्रो से पहले ही लगाया जाता है अथवा ईश्वर के नाम से पहले …..साई के नाम के पहले ॐ लगाने का अधिकार कहा से पाया? जय साई राम ………. श्री मे शक्ति माता निहित है ….श्री शक्तिरूपेण शब्द है ……. जो कि अक्सर भगवान जी के नाम के साथ संयुक्त किया जाता है ……. तो जय श्री राम में से …..श्री तत्व को हटाकर ……साई लिख देने में तुम्हें गौरव महसूस होना चाहिए या शर्म आनी चाहिये?
संत वही होता है जो लोगो को भगवान से जोड़े , संत वो होता है जो जनता को भक्तिमार्ग की और ले जाये , संत वो होता है जो समाज मे व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए पहल करे … इस साई नाम के मुस्लिम पाखंडी फकीर ने जीवन भर तुम्हारे राम या कृष्ण का नाम तक नहीं लिया , और तुम इस साई की काल्पनिक महिमा की कहानियो को पढ़ के इसे भगवान मान रहे हो … कितनी भयावह मूर्खता है ये ….महान ज्ञानी ऋषि मुनियो के वंशज आज इतने मूर्ख और कलुषित बुद्धि के हो गए है कि उन्हे भगवान और एक साधारण से मुस्लिम फकीर में फर्क नहीं आता ?
यह संसार अंधविश्वास और तुच्छ ख्यादी एवं सफलता के पीछे  भागने वालों से भरा पड़ा हुआ है. दयानंद सरस्वती, महाराणा प्रताप, शिवाजी, सुभाष चन्द्र बोस, सरदार भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, सरीखे लोग जिन्होंने इस देश के लिए अपने प्राणों को न्योच्चावर कर दीये  लोग उन्हिएँ भूलते जा रहे हैं और साईं बाबा जिसने  भारतीय स्वाधीनता संग्राम में न कोई योगदान दिया न ही सामाजिक सुधार  में कोई भूमिका रही उनको समाज के कुछ लोगों ने भगवान्  का दर्जा दे दिया है. तथा उन्हें योगिराज श्री कृष्ण और मायादापुरुशोत्तम श्री राम के अवतार के रूप में दिखाकर  न केवल इन  महापुरुषों का अपमान किया जा रहा अपितु नयी पीडी और समाज को अवनति के मार्ग की और ले जाने का एक प्रयास किया जा रहा है.

आवश्यकता इस बात की है की है की समाज के पतन को रोका जाये और जन जाग्रति लाकर वैदिक महापुरुषों को अपमानित करने की जो कोशिशे की जा रही,  उनपर अंकुश लगाया जाये.

Remember…. सर्वाधिकार सुरक्षित