ॐ शांति "एकम सदविप्र: बहुधा वदन्ति" ॐ शांति
इतिहास में ये अंकित है की मोहम्मद के 40 वर्ष के होने से पहले इस्लाम और अल्लाह का कोई नाम भी नी सुना था । मोहम्मद खुद एक काफिर की जिंदगी जी रहा था , उसकी पहली शादी यहूदी कन्या से हुई , वो भी यहूदी रीती-रिवाज के साथ , मोहम्मद के चाचा "UMAR-BIN-E-HASSAM" एक बहुत बड़े शिवभक्त रहे थे , और उनकी मृत्यु भी शिवलिंग की रक्षा में ही गई थी , मोहम्मद ने खुद चाचा का क़त्ल किया था ।
अब सवाल ये है की अगर इस्लाम एक शांति का महजब है (हम यहाँ महजब इसलिए कह रहे है क्योंकि धर्म एक ही होता है , इंसानो द्वारा तो महजब बनते है) तो फिर इस शांति प्रिय महजब को फ़ैलाने में अशांति क्यों हुई ? क्यों कत्लेआम से ही इस्लाम फैला ? क्यों छोटी सी बात पर मोहम्मद ने अपने चाचा को ही मार डाला ? क्या पैगम्बर ऐसा होता है ? क्या अल्लाह ने उसे अपना ही घर संसार को नष्ट करने का हुक्म दिया था ?
अगर अल्लाह ने मोहम्मद को ऐसा करने कहा ? तो क्या अल्लाह "ईशवर" हो सकता है ? क्या ये शैतानो वाली हरकते ईशवर करवा सकता ? आज विश्व में अशांति किस महजब ने फैलाई है ?
एक किताब "क़ुरान" में किसी बात का लिखवा देना फिर सबलोग मोहम्मद की कोई भी बात को बिना सोचे समझे मान लेना , किसी लालच-वश। ... ये सभी आधारहीन बातें 7वी सदी के लिए ठीक थी , क्योंकि उस समय विज्ञान उतना नहीं आगे आया था , लोगो की चिंतन शक्ति उतनी नहीं थी ।
पर वही सब बेवकूफियां इस विज्ञान के युग में अगर की जाए , वो भी 21वी शताब्दी में ? तो क्या आज भी मनुष्य उतना ही बेवकूफ है ? जितना की 7वी शताब्दी में अरब देश में था ?
नहीं है ।
अब सवाल ये है की अगर इस्लाम एक शांति का महजब है (हम यहाँ महजब इसलिए कह रहे है क्योंकि धर्म एक ही होता है , इंसानो द्वारा तो महजब बनते है) तो फिर इस शांति प्रिय महजब को फ़ैलाने में अशांति क्यों हुई ? क्यों कत्लेआम से ही इस्लाम फैला ? क्यों छोटी सी बात पर मोहम्मद ने अपने चाचा को ही मार डाला ? क्या पैगम्बर ऐसा होता है ? क्या अल्लाह ने उसे अपना ही घर संसार को नष्ट करने का हुक्म दिया था ?
अगर अल्लाह ने मोहम्मद को ऐसा करने कहा ? तो क्या अल्लाह "ईशवर" हो सकता है ? क्या ये शैतानो वाली हरकते ईशवर करवा सकता ? आज विश्व में अशांति किस महजब ने फैलाई है ?
एक किताब "क़ुरान" में किसी बात का लिखवा देना फिर सबलोग मोहम्मद की कोई भी बात को बिना सोचे समझे मान लेना , किसी लालच-वश। ... ये सभी आधारहीन बातें 7वी सदी के लिए ठीक थी , क्योंकि उस समय विज्ञान उतना नहीं आगे आया था , लोगो की चिंतन शक्ति उतनी नहीं थी ।
पर वही सब बेवकूफियां इस विज्ञान के युग में अगर की जाए , वो भी 21वी शताब्दी में ? तो क्या आज भी मनुष्य उतना ही बेवकूफ है ? जितना की 7वी शताब्दी में अरब देश में था ?
नहीं है ।
- मनुष्य कौन है ?
तो हमें सच्चे धर्म की तलाश करनी हो तो हम भी पहले मनन-चिंतन ही करेंगे , जाचेंगे परखेंगे की किसकी बातों में कितनी सच्चाई है । ऐसे ही एक किताब में कुछ भी लिखवा देने से उसको सच नहीं मानेंगे , जबतक की वो सत्य की कसौटी पर खड़ा न उतरे ।
आइए मोहम्मद साहब की जीवनी और क़ुरान की इतिहास पर प्रकाश डाले , लोगो को जागरूप करे और सत्य को अपनाए ।
सभी धर्म बराबर कैसे हो सकते ? क्या चोर -पुलिस इसलिए बराबर कहे जा सकते की दोनों ही इंसान है ? क्या आरोपी-न्यायधीश बराबर हो सकते है ? नहीं ना ? फिर ये बात किसने फैलाई की सभी धर्म बराबर होते है और हमें सबका सम्मान करना चाहिए ? अगर ऐसी बात है तो हमें चोर को उसके चोरी करने पर सम्मान देना चाहिए और अपराधी को उसके घिनौने अपराध के लिए सम्मान देना चाहिए ?
सबसे पहले ये जाने की ईश्वर एक ही है (वेदों के अनुसार) और उनका दिया धर्म भी एक ही है । ईश्वर इस तरह की बेतुकी बाते करेगा की "मैं मालिक हूँ,तुमलोग मेरे नौकर हो ? तुम लोग ढाढ़ी रखो , मूंछ मत रखो ? हमको सूअर से नफरत है ? तुमलोग टोपी पहनो ? और अगर मेरी जिद्द को नहीं मानोगे तो तुमसब को जहन्नुम की आग में दाल दूंगा ? ETC ETC .......
चलिए इस्लामिक CONCEPT पे आते है ।
१. इस्लाम- "पहला इंसान मुसलमान ही था, हजरत आदम मुस्लिम थे ।
आर्य सन्देश- आपने यह बात किस तर्क पे कहे ? क्या विज्ञान ने किसी खोज में इस बात को सिद्ध किया है ? क्या विज्ञान ने ये कहा की सबसे पहले एक ही इंसान आया जो की ३० फुट का था और उसी इंसान की पसली से एक औरत आई "हव्वा" ?
इस क़ुरान की बातों में आपको कितनी सच्चाई लग रही ? यह बेतुकी बातें दुनिया भर के मुसलमान इसीलिए मानते है क्योंकि ये बाते मोहम्मद साहब ने क़ुरान में लिखवाई ? यही मुस्लमान का तर्क है। अरे भाई मेरे , मोहम्मद साहब झूठ भी तो बोल सकते थे ? मोहम्मद साहब तो खुद एक काफिर थे , ४० वर्ष के होने के बाद वो मुसलमान बने , फिर उन्होंने मन-गनन कहानियाँ रची , उन्होंने कोई सबूत नई दिया की वो जो भी कह रहे है , वो सच कैसे है ?
उन्होंने सिर्फ इतना बोले की मैं पढ़ा -लिखा नहीं हूँ ? मैं गवाँर हूँ ? मुझे क़ुरान की आयते अल्लाह बुलवा रहा ? और कुछ मूर्खो ने विस्वास भी कर लिया , की अल्लाह ऐसा कोई प्राणी सातवें आसमान में बैठता भी है ?
चलिए अब हम इसी तर्क को मान कर , इसका खंडन करते है :)
- क्या मोहम्मद साहब अनपढ़ थे ?
अनपढ़ रसूल को लिखना पड़ा !
इस्लाम असल में अरबी साम्राज्यवादी नीतियों का नाम है . जिसे मुहम्मद साहब ने प्रारंभ किया था .वह किसी न किसी तरह से सम्पूर्ण विश्व पर हुकूमत करना चाहते थे .लेकिन दूसरे क्षेत्रों को जीतने के लिए सेना की जरुरत होती है . जो उनके पास नहीं थी . इसलिए मुहम्मद ने ढोंग और पाखंड का सहारा लिया ..जैसे पहले तो खुद को अल्लाह का रसूल साबित करने के लिए यह अफवाह फैला दी कि मैं तो अनपढ़ हूँ . और जो भी मैं कुरान के माध्यम से कहता हूँ वह अल्लाह के वचन हैं ..जैसे पहले तो खुद को अल्लाह का रसूल साबित करने के लिए यह अफवाह फैला दी कि मैं तो अनपढ़ हूँ . और जो भी मैं कुरान के माध्यम से कहता हूँ वह अल्लाह के वचन हैं
अनपढ़ रसूल
1-अल्लाह ने अनपढ़ ही बनाया
कुरान-”और उसी अल्लाह ने अनपढ़ लोगों के बीच में एक अनपढ़ रसूल को उठाया जो हमारी आयतें सुनाता है “सूरा – जुमुआ 62 :2
“जो लोग उस अनपढ़ रसूल के पीछे चलते हैं , जो न लिख सकता है और न पढ़ सकता है , तो पायेंगे कि उसकी बातें तौरैत और इंजील से प्रमाणित होती हैं “सूरा -अल आराफ 7 :157
“हे रसूल न तुम कोई किताब लिख सकते हो और न पढ़ सकते हो . यदि ऐसा होता तो लोग तुम पर शक करते “सूरा -अनकबूत 29 :49
क़ुरान के अनुसार मुहम्मद साहब जीवन भर अनपढ़ ही बने रहे ,जैसा कि इन आयतों में दिया गया है ,
लेकिन मुसलमान रसूल के अनपढ़ होने को उनमे कमी मानने की जगह उनका चमत्कार बताते हैं .नहीं तो उन पर यह आरोप लग जाता की कुरान उन्ही ने लिखी होगी ।
अब देखे प्रमाणिक हदीसो से सबूत
अब देखे प्रमाणिक हदीसो से सबूत
“अल बरा ने कहा जब रसूल उमरा के लिए मक्का जा रहे थे , रास्ते में उनको कुरैश के लोगों ने घेर लिया . और कहा पहले जब तक तुम हमारी नहीं मानोगे , तुम्हें मक्का में नहीं घुसने देंगे ‘और जब रसूल सभी शर्तें मान कर आखिरी में ” रसूल अल्लाह ” लिखने लगे तो कुरैश ने घोर आपत्ति जताई .तब रसूल ने कागज हाथ में लिया और खुद लिख दिया “हाजा मा मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह कद वाकिफत अलैहि هذا ما محمد بن عبد الله قد وافقت عليه”यानी यही बातें हैं , जिन पर मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह सहमत है .(This is what Muhammad bin Abdullah has agreed upon )
Sahih Bukhari-Volume 3, Book 49, Number 863
पहले ये परख ले की जो इंसान बेतुकी बाते कर रहा है , उस इंसान में कितनी सच्चाई है ?
आगे और भी इस्लामिक तथ्यों का का खंडन किया जाएगा ।
कोई अल्लाह , कोई रसूल सब नी होता ।
ये सब एक मन-गनन कहानियाँ है । इसे कहानियों की तरह ही ले ।
ADMIN- MANISH ARYA
पहले ये परख ले की जो इंसान बेतुकी बाते कर रहा है , उस इंसान में कितनी सच्चाई है ?
आगे और भी इस्लामिक तथ्यों का का खंडन किया जाएगा ।
कोई अल्लाह , कोई रसूल सब नी होता ।
ये सब एक मन-गनन कहानियाँ है । इसे कहानियों की तरह ही ले ।
ADMIN- MANISH ARYA